कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे आज पदभार संभालेंगे. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी मुख्यालय में सुबह 10:30 बजे वह सोनिया गांधी, राहुल गांधी, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में अध्यक्ष पद संभालेंगे. इससे पहले वह सुबह 8 बजे राज घाट, शांति वन, विजय घाट, शक्ति स्थल, वीर भूमि और समता स्थल जाएंगे. खड़गे ने मंगलवार को शाम 6 बजे पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह से उनके आवास पर जाकर मुलाकात की.
खड़गे ने थरूर को 6,825 वोंटों से हराया
कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ शशि थरूर ने दावा ठोका था. इस चुनाव में खड़गे ने शशि थरूर को 6,825 वोट से मात दी थी. खड़गे को 7897 वोट मिले थे. वहीं, शशि थरूर के खाते में 1072 वोट आए थे. मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में कांग्रेस को 24 साल बाद गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष मिला है. इससे पहले सीताराम केसरी गैर गांधी अध्यक्ष रहे थे. कांग्रेस के 137 साल के इतिहास में अध्यक्ष पद के लिए 6वीं बार चुनाव हुए.
खड़गे के अध्यक्ष बनने के हैं कई मायने-
दलित वोट बैंक साधने की कोशिश: पिछले कुछ समय से कांग्रेस की राजनीति में दलित वोटबैंक पर खास जोर दिया जा रहा है. पंजाब चुनाव से ठीक पहले चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने वाला दांव कोई भूला नहीं है. चुनाव में तो कांग्रेस को इसका कोई फायदा नहीं मिला लेकिन चरणजीत सिंह चन्नी के साथ एक तमगा जरूर जुड़ गया- 'पंजाब के पहले दलित सीएम'. अब मल्लिकार्जुन खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना भी पार्टी की दलित राजनीति को नई धार दे सकता है.
परिवारवाद के आरोप से मुक्ति: कांग्रेस को लेकर एक परसेप्शन बन गया है कि वह परिवारवाद की राजनीति करती है. इस परसेप्शन ने पार्टी को कई चुनावों में भारी नुकसान दिया है.
मल्लिकार्जुन खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना इस धारणा को तोड़ने का काम कर सकता है. वैसे भी सोशल मीडिया पर खड़गे की जीत का प्रचार भी इसी तरह से किया जा रहा है कि पार्टी को कई सालों बाद गैर गांधी अध्यक्ष मिला है. अब जितना तेजी से ये संदेश लोगों के बीच जाएगा, पार्टी को लेकर चल रहा एक बड़ा परसेप्शन टूट सकता है.
कर्नाटक चुनाव की तैयारी: कर्नाटक में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. यहां बीजेपी अंदरूनी कलह से जूझ रही है. इसके अलावा राज्य का जातीय समीकरण ऐसा है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बनने से कांग्रेस को पार्टी फायदा पहुंच सकता है. कर्नाटक में दलितों की आबादी 19.5 प्रतिशत है, वहीं 16 फीसदी मुस्लिम हैं. अनुसूचित जनजाति का आंकड़ा भी 6.95 प्रतिशत बैठता है. अब ये आंकड़े कांग्रेस की राजनीति के लिए मुफीद बैठते हैं.
खड़गे के सामने चुनौतियां भी अपार
मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के साथ ही कई चुनौतियां भी उनके साथ आ गई हैं. दरअसल वह ऐसे समय में अध्यक्ष चुने गए हैं जबकि देश के कई राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव हैं. कांग्रेस कई गुटों में बंट चुकी है.
इतना ही नहीं कांग्रेस कई राज्यों में भी दो फाड़ है. राजस्थान का सियासी संकट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. कई राज्यों में कांग्रेस अपना जनाधार खो चुकी है, ऐसे में उनके सामने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले दोबारा अपने जनाधार को पाना होगा और कांग्रेस को एकजुट करने का चैलेंज है.
'बुरे दिनों में दलित को बलि का बकरा बनाया'
वहीं मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष बनाने पर पिछले दिनों मायावती ने कांग्रेस ने निशाना साधा था. उन्होंने कहा था कि कांग्रेस ने हमेशा बाबा साहेब अंबेडकर का अपमान किया. अब पार्टी जब बुरे वक्त में है, तो दलितों को आगे रखने की याद आ गई.
कांग्रेस का इतिहास गवाह है कि इन्होंने दलितों और उपेक्षितों के मसीहा बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और उनके समाज की हमेशा उपेक्षा और तिरस्कार किया. इस पार्टी को अपने अच्छे दिनों में दलितों की सुरक्षा और सम्मान की याद नहीं आती बल्कि बुरे दिनों में इनको बलि का बकरा बनाते हैं.
कर्नाटक के दलित नेता हैं खड़गे
मल्लिकार्जुन खड़गे दलित नेता हैं. वे कर्नाटक के रहने वाले हैं. वे कर्नाटक के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. खड़गे 8 बार विधायक, दो बार लोकसभा सांसद एक बार राज्यसभा सांसद रहे हैं. वे सिर्फ 2019 में लोकसभा चुनाव हारे. वे यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं.