सुप्रीम कोर्ट में कॉलेजियम को लेकर न्यायपालिका और केंद्र सरकार के बीच तकरार बढ़ती जा रही है. वहीं विपक्ष ने भी न्यायपालिका पर सरकार के दबाव का विरोध शुरू कर दिया है. इस बीच पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने बयान जारी करते हुए कहा- हम न्यायपालिका की पूर्ण स्वतंत्रता चाहते हैं. अब नई तरह की योजना बनाई जा रही है. इसके तहत अगर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में शामिल कर लिया जाता है तो राज्य भी स्पष्ट रूप से अपने CM या सरकार के प्रतिनिधि को कॉलेजियम में शामिल करेगा, लेकिन आखिर में नतीजा क्या होगा?
दरअसल केंद्र सरकार ने गत दिन पहले चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर सुझाव दिया था कि सरकार के प्रतिनिधियों को भी सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में शामिल किया जाना चाहिए. इससे 25 साल पुराने कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही आएगी.
राज्य की सिफारिश का नहीं रह जाएगा महत्व
ममता ने उदाहरण देते हुए समझाया कि मान लीजिए कलकत्ता हाई कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट भेजते हैं तो अब सुप्रीम कोर्ट इसे भारत सरकार को भेजेगा. अब राज्य सरकार की सिफारिश का कोई मूल्य नहीं रह जाएगा और अंत केंद्र सरकार न्यायपालिका में सीधे हस्तक्षेप करेगी, जो कि हम नहीं चाहते. हम सभी के लिए न्याय चाहते हैं. स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए न्याय की मांग करते हैं. न्यायपालिका हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण मंदिर है.
ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि उनके पास निश्चित रूप से कुछ योजना है. न्यायपालिका में जमकर दखलअंदाजी की जा रही है. उनके समर्थकों की लाइन साफ हो गई है. हर जगह लोकतंत्र खतरे में है, यह एजेंसियों के हाथ में चली गई है.
विपक्षी पार्टियां भी कर रहीं केंद्र का विरोध
- कांग्रेस ने किरण रिजिजू द्वारा कॉलेजियम प्रणाली के पुनर्गठन के लिए लिखे पत्र को न्यायपालिका के लिए जहर की गोली बताया है. कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने पिछले दिनों कहा कि पहले उपराष्ट्रपति ने हमला बोला. कानून मंत्री ने हमला किया. हम सब देख रहे हैं. यह न्यायपालिका के साथ सुनियोजित टकराव है, ताकि उसे धमकाया जा सके और उसके बाद उस पर पूरी तरह से कब्जा किया जा सके. कॉलेजियम में सुधार की जरूरत है, लेकिन यह सरकार उसे पूरी तरह से अपने अधीन करना चाहती है. यह उपचार न्यायपालिका के लिए जहर की गोली है.
- राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने रिजिजू के सुझाव पर कहा कि यह बिल्कुल चौंकाने वाला है. यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के विचार को व्यापक रूप से कमजोर करने वाला है और संविधान द्वारा स्थापित शक्ति संतुलन को अस्थिर कर देगा. क्या सरकार प्रतिबद्ध न्यायपालिका के प्रलोभन का विरोध करने में असमर्थ है.
- दिल्ली के सीएम और AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इसे खतरनाक कदम बताया. उन्होंने कहा - यह बेहद खतरनाक है. न्यायिक नियुक्तियों में बिल्कुल भी सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए.
मेधावी लोग जज बनने की अपनी सहमति वापस ले रहे
सरकार जहां कॉलेजियम सिस्टम में बदलाव चाहती है, वहीं सुप्रीम कोर्ट मजबूती के साथ इसके पक्ष में खड़ा है. इस समय सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस मुकेश शाह, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस संजीव खन्ना हैं.
संयोगवश, जस्टिस एस के कौल की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ उस मामले की सुनवाई कर रही है, जिसमें जजों की नियुक्ति के मुद्दे पर सुनवाई हो रही थी. इस मामले पर अंतिम बहस के दौरान जस्टिस कौल ने कहा था, "कोई भी प्रणाली एक आदर्श प्रणाली नहीं है. यह अंततः मनुष्यों द्वारा ही चलाई जाती है, लेकिन यहां चिंता यह है कि सरकार एक ऐसा वातावरण बना रही है जहां मेधावी लोग जज बनने के लिए अपनी सहमति वापस ले रहे हैं."