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‘तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है...’ राज्यसभा में गूंजी पाश की ये पंक्तियां

राज्यसभा में आज राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा दूसरे दिन भी जारी रही. आज की बहस की शुरुआत बिहार से RJD सांसद मनोज कुमार झा के वक्तव्य से हुई. इस दौरान उन्होंने कई साहित्यक उदाहरण दिए और पाश की ये पंक्तियां भी पढ़ीं.

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RJD सांसद मनोज कुमार झा (Photo:File)
RJD सांसद मनोज कुमार झा (Photo:File)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पंचतंत्र की ‘सोने का पक्षी’ की कहानी
  • 'मैं भी ख़ाइफ़ नहीं तख़्ता-ए-दार से’
  • देश का लोकतंत्र एक ट्वीट से नहीं होगा कमजोर

राज्यसभा में आज राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा दूसरे दिन भी जारी रही. आज की बहस की शुरुआत बिहार से RJD सांसद मनोज कुमार झा के वक्तव्य से हुई. इस दौरान उन्होंने कई साहित्यिक उदाहरण दिए.

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‘तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है...’
मनोज कुमार झा जब किसानों को रोकने के लिए दिल्ली की सीमाओं पर की गई किलेबंदी का जिक्र कर रहे थे, तो उन्होंने पाश की एक कविता का उदाहरण दिया. उन्होंने पढ़ा...
‘यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना जमीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाए
आंख की पुतली में हां के सिवाय कोई भी शब्द 
अश्लील हो 
और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे 
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है.’

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पंचतंत्र की ‘सोने का पक्षी’ कहानी
मनोज कुमार झा ने जब अपना वक्तव्य शुरू किया तो उन्होंने पंचतंत्र की एक कहानी का भी जिक्र किया. राजा चित्ररत्न और सोने की पक्षी की इस कहानी का संदर्भ तो उन्होंने नहीं बताया लेकिन जब इस पर सदन में टीका-टिप्पणी हुई तो उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि उनके बिहार में एक कहावत है कि ‘दूध में जोड़न ढंग का हो तो दही बढ़िया जमता है.’ इसके बाद उन्होंने कई और चुटीली टिप्पणियां करते हुए सरकार को घेरा. 

विमर्श को कमजोर किया
मनोज कुमार झा ने अपने वक्तव्य में कहा कि देश का लोकतंत्र बहुत मजबूत है. यह किसी के एक ‘ट्वीट’ से कमजोर नहीं होगा. सत्ता पक्ष ने देश में विमर्श को कमजोर किया है. उनके इस बयान को हाल में रिहाना के ट्वीट से जोड़कर समझा जा सकता है.

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मैं भी ख़ाइफ़ नहीं तख़्ता-ए-दार से’
किसानों के मुद्दे पर बोलते हुए मनोज कुमार झा ने राज्यसभा में हबीब जालिब के गीत के साथ अपना वक्तव्य समाप्त किया. 
उन्होंने तरन्नुम में गाया
‘मैं भी ख़ाइफ़ नहीं तख़्ता-ए-दार से
मैं भी मंसूर हूँ कह दो अग़्यार से
क्यूँ डराते हो ज़िंदाँ की दीवार से 
ज़ुल्म की बात को जहल की रात को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता’

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