गणतंत्र दिवस के मौके पर दिए जाने वाले पद्म पुरस्कारों का राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की ओर से सोमवार को ऐलान किया गया है. देश की 7 हस्तियों को पद्म विभूषण, 10 को पद्म भूषण और 102 को पद्मश्री पुरस्कार दिए जाएंगे. इस बार देश के दूसरे सर्वोच्च सम्मान की फेहरिश्त में मुस्लिम चेहरे के तौर पर मौलाना वहीदुद्दीन खान और शिया मौलाना कल्बे सादिक का नाम भी शामिल है. मौलाना वहीदुद्दीन को पद्म विभूषण तो मौलान कल्बे सादिक को मरणोपरांत पद्म भूषण से नवाजा जाएगा.
भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से नवाजे जाने वाले मौलाना वहीदुद्दीन को देश के उन शख़्सियतों के रूप में जाना जाता है जो कि अपने गांधीवादी विचारों के साथ हिंदू और मुस्लिम दोनों समाजों में अहमियत रखते हैं. वहीदुद्दीन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं के भी करीबी माने जाते हैं. वो मुस्लिम समुदाय में आधुनिक सोच वाले मौलानाओं में गिने जाते हैं, जो शुरू से ही तीन तलाक के खिलाफ थे.
मौलाना वहीदुद्दीन ने साल 2004 के चुनाव में वाजपेयी हिमायत कमेटी के गठन में अहम भूमिका अदा की थी, जिसने लोकसभा चुनाव में वाजपेयी के लिए समर्थन जुटाने का काम किया था. मौलाना वहीदुद्दीन मुस्लिम समाज ऐसे पहले शख्स थे, जिन्होंने बयान दिया था कि मुस्लिम समाज को बाबरी मस्जिद से अपना दावा छोड़ देना चाहिए. उनके इस बयान पर मुस्लिम समुदाय में काफी आलोचना हुई थी. ऐसे ही मौलाना कल्बे सादिक भी मुस्लिमों से बाबरी मस्जिद पर दावा छोड़ने की बात कहा था. कल्बे सादिक के बीजेपी और संघ नेताओं से रिश्ते काफी बेहतर रहे हैं और मार्डन सोच वाले मौलानाओं में उन्हें गिना जाता था.
मौलाना वहीदुद्दीन खान
दिल्ली के निजामुद्दीन में रहने वाले मौलाना वहीदुद्दीन खान का जन्म एक जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले बधारिया गांव में हुआ था. वे प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान और शांति कार्यकर्ता हैं के रूप में जाने जाते हैं. इस्सालिमक स्कॉलर के तौर पर पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई है. कुरान को आसान अंग्रेजी में अनुवाद किया और कुरान पर एक टिप्पणी भी लिखी है.
मौलाना वहीदुद्दीन को इस्लामी विद्वान और मशहूर शांतिवादी कार्यकर्ता हैं. पूर्व सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा डेमिर्गुस पीस इंटरनेशनल अवॉर्ड, मदर टेरेसा और राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार(2009), अबूज़हबी में सैयदियाना इमाम अल हसन इब्न अली शांति अवार्ड (2015) से उन्हें सम्मानित किया जा चुका. इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान मौलाना वहीदुद्दीन को साल 2000 में पद्म भूषण से भी नवाजा जा चुका है और अब मोदी सरकार में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया जा रहा.
मौलाना कल्बे सादिक
हिंदू-मुस्लिम एकता और शिया-सुन्नी एकता के प्रबल समर्थक रहे मौलाना कल्बे सादिक को मरणोपरांत पद्म भूषण सम्मान से नवाजा जा रहा है. कल्बे सादिक का 24 नवंबर को 2020 को निधन हुआ था. वह दुनिया भर में अपनी उदारवादी छवि के लिए पहचाने जाते थे. मुस्लिम समाज से रूढ़िवादी परंपराओं को खत्म करने के लिए वे आजीवन लड़ाई लड़ते रहे हैं. उन्होंने न सिर्फ रूढ़िवादियों को विरोध किया, बल्कि शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए.
मौलाना कल्बे सादिक का जन्म 1 जनवरी 1936 को लखनऊ में हुआ था. उनकी शुरुआती तालीम मदरसा नाजमिया में हुई, उसके बाद सुल्तानुल मदरिस से डिग्री हासिल किया. लखनऊ यूनिवर्सिटी से स्नातक किया, फिर अलीगढ़ गए जहां से एमए और पीएचडी किया. लखनऊ से लेकर देश के तमाम जगहों पर उन्होंने कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना कराई. तौहीद-उल मुसलमीन ट्रस्ट के जरिए शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप देने और मार्डन एजुकेशन के लिए यूनिटी और एमयू कॉलेज जैसे शिक्षण संस्थाएं शुरू किया. लखनऊ का एरा मेडिकल को स्थापित कराने में कल्बे सादिक का अहम रोल रहा है.
हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया
देश में हिंदु-मुस्लिम एकता पर भी मौलाना कल्बे सादिक ने जोर दिया. वो जीवन भर सामाजिक सौहार्द के लिए काम करते रहे. उन्होंने कहा था, देश में हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए अगर हरिद्वार के गंगा में भी उन्हें स्नान करना पड़ेगा तो करेंगे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक रहे केसी सुदर्शन और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं के साथ उनके अच्छे संबंध रहे. वो 90 के दशक में ही अयोध्या की बाबरी मस्जिद की जमीन को राममंदिर के लिए देने को तैयार थे, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बाकी लोग तैयार नहीं हुए थे. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और बाद में भी इस समस्या को सुलझाने का प्रयास करते रहे.
मार्डन सोच वाले मौलाना
इस्लाम में कैलेंडर चांद के मुताबिक चलता है. ऐसे में इस्लाम धर्म के त्योहार भी चांद के अनुसार मनाए जाते हैं. ईद के चांद को लेकर अक्सर विवाद पैदा होता रहता था जिसकी वजह से कई बार ऐसा भी हुआ जब दो-दो दिन ईद की नमाज हुई. इस विवाद को खत्म करने के लिए मौलाना डॉ. कल्बे सादिक वैज्ञानिक गणना के आधार पर काफी पहले ही बता देते थे कि ईद का चांद कब दिखेगा. हालांकि अपने इन विचारों के चलते कई बार उन्हें अपने समाज में ही विरोध का भी सामना करना पड़ा. लेकिन कल्बे सादिक का कहना था कि दुनिया चांद पर पहुंच चुकी है और मुसलमान चांद की तारीख को लेकर झगड़ा कर रहा है. हमें विज्ञान और तकनीक का सहारा लेकर आगे बढ़ना चाहिए. मौलाना की इन्हीं आधुनिक सोच के चलते मोदी सरकार ने मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित कर रही है.