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बीएसपी, BRS, बीजेडी, पीडीपी... NDA और INDIA ब्लॉक से बाहर रहे दलों को मिला 'जीरो'

लोकसभा चुनाव में मायावती की बसपा से लेकर केसीआर की बीआरएस और नवीन पटनायक की बीजेडी तक, कई ऐसी पार्टियां थी जो एनडीए और इंडिया ब्लॉक से अलग अकेले चुनाव मैदान में उतरीं. राजनीति में मजबूत दखल रखने वाले ये क्षत्रप इस बार खाली हाथ रह गए.

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जानें किन पार्टियों को लगा सबसे ज्यादा झटका
जानें किन पार्टियों को लगा सबसे ज्यादा झटका

गठबंधन सरकारों के दौर में किसी खास प्रदेश, किसी खास जाति के वोटबैंक पर मजबूत होल्ड रखने वाले क्षत्रपों का दबदबा रहा है. 2014 और 2019 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को पूर्ण बहुमत मिला और एनडीए सरकार बनी. लेकिन 2024 में घड़ी सुई फिर 360 डिग्री घूम चुकी है. एनडीए को बहुमत मिला है लेकिन कोई भी पार्टी बहुमत के लिए जरूरी 272 के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी. खिंचड़ी सरकारों का दौर लौट आया लेकिन कई क्षत्रप अपना किला नहीं बचा सके.

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इनमें मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से लेकर नवीन पटनायक की अगुवाई वाली बीजू जनता दल (बीजेडी) और के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) तक, कई पार्टियां हैं. लोकल लेवल पर मजबूत मौजदूगी दर्ज कराती आईं इन पार्टियों ने इस बार के चुनाव में खुद को गठबंधन की सियासत से दूर रखा. ये पार्टियां न तो एनडीए में थीं और ना ही इंडिया में. लोकसभा चुनाव में ये क्षत्रप अकेले चुनावी समर में उतरे लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सके और खाली हाथ रह गए.

यूपी में कांग्रेस से भी कम रहा बसपा का वोट शेयर

मायावती की अगुवाई वाली बसपा के वोट शेयर में गिरावट का दौर इस बार के चुनाव में भी जारी रहा. विधानसभा चुनाव में केवल एक सीट पर सिमटी बसपा इस बार खाता तक नहीं खोल सकी. बसपा का वोट शेयर गिरकर कांग्रेस के वोट शेयर से भी नीचे पहुंच गया. बसपा को 9.33 फीसदी वोट मिले जो कांग्रेस को मिले 9.46 फीसदी से भी कम है, मामूली ही सही.

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वोट शेयर के लिहाज से बीजेपी सूबे में सबसे बड़ी पार्टी रही तो वहीं सीटों के लिहाज से देखें तो सपा ने ज्यादा सीटें जीतीं. बीजेपी को 41.37 फीसदी वोट शेयर के साथ 33 सीटों पर जीत मिली तो वहीं सपा को 33.59 फीसदी वोट शेयर के साथ 37 सीटें मिलीं. सपा के साथ गठबंधन कर उतरी कांग्रेस ने 6 सीटें जीतीं तो एक फीसदी से भी कम वोट शेयर वाली अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल (एस) को एक सीट पर जीत मिली.

गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा, सपा के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी थी. तब बसपा को 19.4 फीसदी वोट शेयर के साथ 10 सीटों पर जीत मिली थी. सपा 18.1 फीसदी वोट शेयर के साथ पांच सीटें ही जीत सकी थी. तब बीजेपी ने 50 फीसदी वोट शेयर के साथ 62 सीटें जीती थीं. कांग्रेस 6.4 फीसदी वोट शेयर के साथ एक सीट ही जीत सकी थी. 2022 के यूपी चुनाव में भी अकेले लड़कर बसपा एक सीट पर सिमट गई थी.

तेलंगाना में केसीआर की पार्टी का सफाया

आंध्र प्रदेश से अलग होकर पृथक राज्य बनने के बाद से ही तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की पार्टी भारत राष्ट्र समिति (पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति) का दबदबा रहा. लगातार दो बार तेलंगाना के सीएम रहे केसीआर की पार्टी को पिछले लोकसभा चुनाव में हार के साथ सत्ता गंवानी पड़ी थी. अब लोकसभा चुनाव में बीआरएस का सफाया ही हो गया है. लंबे समय तक सूबे की सत्ता के शीर्ष पर काबिज रही बीआरएस 16.68 फीसदी वोट शेयर के बावजूद एक भी सीट नहीं जीत सकी.

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तेलंगाना के नतीजों की बात करें तो सूबे की सत्ता पर काबिज कांग्रेस को 40 फीसदी वोट शेयर के साथ आठ सीटों पर जीत मिली. वहीं, बीजेपी भी 35 फीसदी वोट शेयर के साथ आठ सीटें जीतने में सफल रही थी. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी तीन फीसदी वोट शेयर के साथ एक सीट जीतने में सफल रही. गौरतलब है कि 2019 में बीआरएस की 17 में से नौ सीटों पर विजय हासिल की थी.

एक सीट को तरसी पटनायक की पार्टी

ओडिशा की सियासत के लिहाज से भी ये चुनाव बदलाव की बयार साबित हुए. साल 2000 में पहली बार सूबे में बीजेडी की सरकार बनी थी और नवीन पटनायक सीएम बने थे. सूबे की सत्ता के शीर्ष पर नवीन पटनायक ने ऐसे पांव जमाया कि ओडिशा सरकार के पर्याय बन गए. ओडिशा की सत्ता और पटनायक का नाता इस बार टूटा ही, लोकसभा सीटों के लिहाज से सूबे की सबसे बड़ी पार्टी बनती आई बीजेडी एक सीट के लिए तरस गई.

लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 45.34 फीसदी वोट शेयर के साथ 21 में से 20 सीटें जीत ली. 12.52 फीसदी वोट शेयर के साथ कांग्रेस ने भी एक सीट जीती लेकिन 37.53 फीसदी वोट मिलने के बावजूद बीजेडी एक भी सीट नहीं जीत सकी. गौरतलब है कि 2019 में बीजेडी को 12, बीजेपी को आठ और कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली थी.

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ये क्षत्रप भी रह गए खाली हाथ

बसपा, बीआरएस और बीजेडी ही नहीं, कई और क्षत्रप भी खाली हाथ रह गए जो कभी मजबूत मौजदूगी दर्ज कराते थे. ऐसी पार्टियों की की लिस्ट में कभी जम्मू कश्मीर की सियासत में पावर सेंटर रही पीडीपी और तमिलनाडु की एआईएडीएमके के नाम भी शामिल हैं. पीडीपी ने कश्मीर घाटी की तीन सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और हर सीट पर उसे हार मिली. पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती अपनी सीट भी नहीं जीत पाईं. तमिलनाडु में सरकार चला चुकी एआईएडीएमके भी इस बार खाली हाथ रह गई. सूबे की सभी 39 सीटों पर इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार जीते हैं.

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