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मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्य, जितिन, आरपीएन... आखिर युवा नेता क्यों छोड़ रहे पार्टी, कांग्रेस के लिए क्या हैं सबक?

पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर शिवसेना का दामन थाम लिया है. मिलिंद से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह जैसे नेता भी कांग्रेस छोड़ दूसरी पार्टियों में जा चुके हैं. आखिर युवा नेता कांग्रेस क्यों छोड़ते हैं और इसमें पार्टी के लिए क्या सबक हैं?

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मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह (फाइल फोटो)
मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह (फाइल फोटो)

राहुल गांधी ने इधर मणिपुर से महाराष्ट्र तक भारत जोड़ो न्याय यात्रा की शुरुआत की और उधर मुंबई में ही कांग्रेस को जोर का झटका लग गया. पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और इसके कुछ ही घंटे बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना का दामन थाम लिया. मिलिंद देवड़ा के इस्तीफे को देवड़ा परिवार की परंपरागत सीट रही मुंबई दक्षिण पर शिवसेना यूबीटी के दावे से भी जोड़कर भी देखा जा रहा है. उद्धव ठाकरे की पार्टी कांग्रेस और एनसीपी शरद पवार गुट के साथ इंडिया गठबंधन में शामिल है.

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पिछले लोकसभा चुनाव में मुंबई दक्षिण लोकसभा सीट से शिवसेना यूबीटी के उम्मीदवार को जीत मिली थी. उद्धव ठाकरे की पार्टी यह सीट छोड़ने को तैयार नहीं है. ऐसे में मिलिंद की उम्मीदवारी को लेकर संशय भी था. वजह बस मुंबई दक्षिण सीट को लेकर खींचतान ही है या कुछ और? ये बहस का विषय हो सकता है लेकिन एक सवाल जो सियासी गलियारों में चर्चा का सेंटर पॉइंट बन गया है, वह ये है कि एक के बाद एक युवा नेता आखिर कांग्रेस से किनारा क्यों कर रहे हैं?

कांग्रेस के युवा तुर्क कहें या टीम राहुल की यंग ब्रिगेड, मिलिंद देवड़ा से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई नेता कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं. बात उनकी भी हो रही है. सवाल यह भी उठ रहे हैं कि आखिर क्यों एक-एक करके टीम राहुल के नेता कांग्रेस का हाथ छोड़ते जा रहे हैं? इसकी चर्चा से पहले यह जान लेना भी जरूरी है कि पिछले कुछ समय में कौन-कौन से नेता कांग्रेस छोड़ गए?

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पंजे से बाहर हो चुके ये नेता

मिलिंद देवड़ा से पहले टीम राहुल का स्तंभ माने जाने वाले कई नेता कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ 2020 में पार्टी छोड़ दी थी जिसके बाद 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार गिर गई थी. सिंधिया केंद्र सरकार में मंत्री हैं. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली केंद्र की यूपीए सरकार में मंत्री रहे जितिन प्रसाद 2021 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे. जितिन प्रसाद यूपी की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह भी 2022 के यूपी चुनाव से पहले हाथ का साथ छोड़ बीजेपी में चले गए थे.

हिमंत बिस्वा सरमा (फाइल फोटो)
हिमंत बिस्वा सरमा (फाइल फोटो)

अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की प्रमुख रहीं सुष्मिता देव टीएमसी, जयवीर शेरगिल बीजेपी, प्रियंका चतुर्वेदी शिवसेना यूबीटी में जा चुकी है. गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रहे हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर, पूर्व केंद्रीय मंत्री एके एंटनी के पुत्र अनिल एंटनी और असम कांग्रेस के महासचिव रहे अपूर्व भट्टाचार्य भी पंजा निशान वाली पार्टी छोड़कर दूसरे दल में जा चुके हैं. कांग्रेस छोड़कर जाने वाले नेताओं की फेहरिश्त में में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा जैसे दिग्गज और वरिष्ठ नेताओं के भी नाम हैं. टीम राहुल की बात करें तो अब सचिन पायलट जैसे चुनिंदा नेता ही पार्टी में बने हुए हैं. 

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क्यों कांग्रेस छोड़ते चले गए नेता

कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं का एक आरोप कॉमन होता है- मिस कम्युनिकेशन या गांधी परिवार के साथ कम्युनिकेशन गैप. कोई मिलने के लिए समय नहीं मिल पाने की शिकायत करता है तो कोई कुछ और वजहें  गिनाता है. सबके हमलों का केंद्र राहुल गांधी और गांधी परिवार ही होता है. कहा तो यह भी जा रहा है कि कांग्रेस में युवा नेताओं को भविष्य का रोडमैप नहीं नजर आ रहा और इसलिए भी युवा नेता पार्टी छोड़ जा रहे हैं. मध्य प्रदेश और राजस्थान में 2018 के चुनाव में मिली जीत के बाद कांग्रेस पर युवा नेताओं की जगह अनुभवी नेताओं को आगे कर देने के आरोप भी लगते रहे हैं.

राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे (फाइल फोटोः पीटीआई)
राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे (फाइल फोटोः पीटीआई)

2018 के विधानसभा चुनाव के समय छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल थे तो वहीं मध्य प्रदेश और राजस्थान में पार्टी संगठन की कमान कमलनाथ और सचिन पायलट के हाथों में थी. मध्य प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ ज्योतिरादित्य सिंधिया ने प्रचार की कमान संभाली तो वहीं राजस्थान में पायलट ने पार्टी के प्रचार अभियान का अग्रिम मोर्चे से नेतृत्व किया था. तब अशोक गहलोत राष्ट्रीय संगठन में थे लेकिन चुनाव नतीजे आने के बाद जब सीएम चुनने की बारी आई, कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में सिंधिया पर कमलनाथ और राजस्थान में पायलट पर अशोक गहलोत को तरजीह  दी.

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कहा तो यहां तक जाने लगा कि कांग्रेस नई पीढ़ी को, युवा नेताओं को कमान ही नहीं सौंपना चाहती, आगे नहीं बढ़ाना चाहती. अब तेलंगाना चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस का रेवंत रेड्डी को सीएम बनाना इस इमेज को तोड़ने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है लेकिन देवड़ा के इस्तीफे ने वही सवाल फिर से खड़े कर दिए हैं. राहुल गांधी पर यह आरोप भी लगते रहे हैं कि वह अपनी पार्टी के नेताओं से लंबे समय तक नहीं मिलते, उनके इर्द-गिर्द कुछ खास नेताओं ने घेरा बना लिया है.

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3.कांग्रेस के लिए क्या सबक

कांग्रेस के खिसके जनाधार और सियासी प्रभाव के पीछे कद्दावर और लोकप्रिय चेहरों के पार्टी से किनारा करने को भी वजह बताया जाता है. ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश में कांग्रेस का लोकप्रिय चेहरा थे ही, ग्वालियर-चंबल रीजन में मजबूत प्रभाव भी रखते हैं. इसी तरह गुजरात में पाटीदार आंदोलन से उभरे हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर का ओबीसी और दलित के साथ ही युवा मतदाताओं पर भी अच्छा प्रभाव था. हिमंता बिस्व सरमा भी असम के साथ पूर्वोत्तर की सियासत में मजबूत दखल रखते हैं और अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर समेत कई राज्यों में बीजेपी के तेज उभार के पीछे भी उनकी भूमिका अहम मानी जाती है. ऐसे नेताओं के पार्टी छोड़ जाने से तात्कालिक नुकसान तो होता ही है, लंबे समय तक सियासी नुकसान उठाना पड़ जाता है. जिन नेताओं का अपना कद और अपना जनाधार है, जब वह पार्टी छोड़ते हैं तब अपने साथ एक बड़ा वोटर वर्ग भी लेकर जाते हैं.

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