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नवीन पटनायक की जगह लेने वाले मोहन माझी पर BJP ने क्यों खेला दांव? 6 Points में समझिए

ओडिशा में मोहन चरण मांझी की सरकार का आगाज हो गया है. बीजेपी विधायक दल की बैठक में मोहन को नेता चुना गया और अब उन्होंने सीएम पद की शपथ भी ले ली है. सवाल है कि बीजेपी ने नवीन पटनायक की जगह ले रहे मोहन माझी पर दांव क्यों खेला?

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मोहन चरण माझी बने ओडिशा के नए मुख्यमंत्री
मोहन चरण माझी बने ओडिशा के नए मुख्यमंत्री

ओडिशा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की जीत के बाद इसे लेकर कयासों का दौर चलता रहा कि नवीन पटनायक के बाद सीएम की कुर्सी पर कौन बैठेगा? लगातार 24 साल ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे नवीन पटनायक के बाद नए सीएम के लिए धर्मेंद्र प्रधान से लेकर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल और जय बैजयंत पांडा तक, कई नाम चर्चा में रहे. नवीन पटनायक को हराकर सुर्खियों में आए लक्ष्मण बाग, प्रताप सारंगी और कनक वर्धन सिंहदेव के नाम भी सीएम के लिए रेस में शामिल बताए जा रहे थे. करीब हफ्तेभर तक कयासों का दौर चलता रहा.

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भुवनेश्वर में 11 जून को बीजेपी विधायक दल की बैठक के बाद अगले सीएम का नाम सामने आया, सभी दावेदार रेस में शामिल ही रह गए और सबको पीछे छोड़ते हुए मोहन चरण माझी सत्ता के शीर्ष तक पहुंच गए. पर्यवेक्षक के रूप में पहुंचे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बीजेपी विधायक दल की बैठक के बाद मुख्यमंत्री के लिए मोहन के नाम का ऐलान किया और कहा कि उनके नाम का प्रस्ताव कनक वर्धन सिंहदेव ने किया. भुवनेश्वर में आज नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह हुआ.

नई सरकार के शपथ ग्रहण के साथ ही ओडिशा में सत्ता के शीर्ष का पर्याय बन चुके नवीन पटनायक युग का समापन और 'मोहन राज' का आगाज हो जाएगा. मोहन आज यानि 12 जून को ओडिशा के नए मुख्यमंत्री के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ लेंगे. इसके साथ ही सूबे में 24 साल लंबे नवीन युग का समापन और एक नए युग का आगाज हो जाएगा. अब चर्चा इसे लेकर भी हो रही है कि तमाम दिग्गजों को दरकिनार कर बीजेपी ने मोहन चरण माझी को ही क्यों चुना?

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मजबूत आदिवासी चेहरा

मोहन चरण माझी ओडिशा बीजेपी का मजबूत आदिवासी चेहरा हैं. ओडिशा आदिवासी बाहुल्य राज्य है और बीजेपी यहां झारखंड की तरह गैर आदिवासी सीएम बनाने का रिस्क नहीं लेना चाहती थी. झारखंड में बीजेपी ने गैर आदिवासी रघुबर दास को सीएम बनाया था और पार्टी पांच साल बाद सत्ता में वापसी नहीं कर पाई थी. ओडिशा की कुल आबादी चार करोड़ से अधिक है और इसमें करीब एक करोड़ आबादी आदिवासी समाज की है जो करीब 23 फीसदी है. बीजेपी ने विधानसभा चुनाव की शुरुआत से भी काफी पहले आदिवासी वोटर्स को टारगेट कर तैयारी शुरू कर दी थी और इसका लाभ पार्टी को हाल के चुनावों में मिला भी. बीजेपी की कोशिश है कि पटनायक की पार्टी से छिटक कर साथ आए इस वोटबैंक को सहेजे रखा जाए.

संघ से करीबी

आदिवासी बाहुल्य राज्य में आदिवासी सीएम ही देना था तो बीजेपी के पास तमाम और विकल्प भी थे लेकिन पार्टी ने मोहन को ही चुना. ओडिशा की गद्दी पर मोहन की ताजपोशी के पीछे उनका संघ कनेक्शन भी है. मोहन के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ भी मजबूत संबंध रहे हैं और वह आदिवासी बाहुल्य इलाकों में संघ की गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी निभाते रहे हैं. चार बार के विधायक मोहन चरण माझी ने आदिवासी बेल्ट में बीजेपी की जमीन मजबूत करने के लिए रणनीति को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

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विधानसभा में मुखर नेता की इमेज

मोहन चरण माझी पटनायक सरकार के समय विपक्ष में रहते हुए बीजेपी का मुखर चेहरा रहे. माझी ने 2023 में विधानसभा के भीतर सरकार के खिलाफ विरोध जाहिर करते हुए स्पीकर के आसन के सामने पोडियम पर दाल फेंक दी थी. इसके लिए मोहन को सदन से सस्पेंड भी किया गया था. हालांकि, मोहन ने सफाई देते हुए कहा था कि हमने दाल फेंकी नहीं, स्पीकर को भेंट की थी. मोहन चरण माझी ने दाल फेंकी हो या भेंट की हो, विधानसभा के भीतर से जनता के बीच एक संदेश गया. बीजेडी की मेजॉरिटी वाले सदन में वह मुखर विरोध का चेहरा रहे और इसका लाभ उन्हें पार्टी के हाथ सत्ता आने पर सीएम की कुर्सी के रूप में मिलने जा रहा है.

शासन प्रणाली की समझ

मोहन चरण माझी सियासत की निचली इकाई सरपंच के स्तर से मंत्री तक का सफर तय कर चुके हैं. वह चार बार के विधायक हैं. नवीन पटनायक की अगुवाई वाली सरकार में बीजेपी के कोटे से मंत्री भी रहे हैं. वह शासन प्रणाली को करीब से समझते हैं और एक सरपंच से लेकर विधायक तक के सामने आने वाली समस्याओं की समझ भी उन्हें है. यह सारी बातें भी नया सीएम चुने जाने के दौरान मोहन के पक्ष में गईं. गौरतलब है कि मोहन साल 2000 के ओडिशा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर पहली बार विधायक निर्वाचित हुए थे. वह 2004 में भी विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए लेकिन 2009 और 2014 में वह 'सूबे की संसद' विधानसभा में नहीं पहुंच सके थे. वह 2019 में चुनाव जीते और अब 2024 में भी विधायक निर्वाचित हुए हैं.

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संगठन के नेता की इमेज

मोहन चरण माझी की इमेज संगठन के नेता की है. उन्हें ओडिशा बीजेपी में संगठन का मजबूत चेहरा माना जाता है. ओडिशा जैसे राज्य में जहां पार्टी पहली बार अपने संख्याबल से सरकार बना रही है, सरकार और संगठन के बीच तालमेल बहुत जरूरी हो जाता है. सरकार और संगठन में मतभेद की संभावनाएं कम से कम करने के लिए भी हो सकता है कि बीजेपी नेतृत्व ने संगठन के ही किसी चेहरे को सत्ता का शीर्ष पद सौंपने का निर्णय लिया हो. शासन प्रणाली की समझ और संगठन के शिल्पी वाली इमेज भी मोहन के पक्ष में जाती है.

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झारखंड फैक्टर

झारखंड भी आदिवासी बाहुल्य राज्य है और इस राज्य में भी इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं. ओडिशा में गैर आदिवासी सीएम बनाए जाने की स्थिति में कहीं झारखंड के आदिवासियों में उपेक्षा का संदेश ना चला जाए, बीजेपी को कहीं ना कहीं ये डर भी था. बीजेपी ने पहले छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय और अब ओडिशा में मोहन चरण माझी को सरकार की कमान सौंप दी है तो उसके पीछे आदिवासी राज्यों की चुनावी राजनीति भी एक अहम फैक्टर हो सकती है. गौरतलब है कि देश की कुल आदिवासी आबादी में ओडिशा की भागीदारी 9.20 फीसदी है.

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बता दें कि लोकसभा चुनाव के साथ ही ओडिशा विधानसभा के चुनाव भी हुए थे. ओडिशा चुनाव में बीजेपी को 78 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी. ओडिशा में विधानसभा की कुल 147 सीटें हैं और बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़ा 74 सीटों का है. यह पहला मौका है जब ओडिशा में बीजेपी को पूर्ण बहुमत के साथ सरकार चलाने का जनादेश मिला है. बीजेपी पहले भी ओडिशा की सत्ता में रही है लेकिन नवीन पटनायक की अगुवाई वाली बीजू जनता दल के साथ गठबंधन साझीदार के तौर पर.

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