भारत के लोकतंत्र में संसद के सदस्यों को जो विशेषाधिकार प्रदान किए गए हैं वो उन्हें अपने कर्तव्यों को सही तरीके से निभाने के लिए बाध्य करते हैं. यदि कोई भी सदस्य विशेषाधिकारों या अधिकारों की अवहेलना या दुरुपयोग करता है, तो इसे विशेषाधिकार प्रस्ताव (privilege motion) का उल्लंघन कहा जाता है.
यह प्रस्ताव लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों पर लागू होता है. संसदीय कानूनों के तहत विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव दंडनीय है. लोकसभा में इस प्रस्ताव का उल्लंघन लोकसभा स्पीकर द्वारा देखा जाता है और राज्यसभा में सभापति द्वारा इस पर ध्यान दिया जाता है.
भारत की संसदीय प्रणाली में बहुमत का शासन होता है, लेकिन अल्पमत में रहने वाले दलों के सदस्यों को भी जनता ही चुनकर भेजती है. उनका मुख्य कार्य संसद के भीतर सरकार को जवाबदेह बनाए रखने का होता है.
सदन की जवाबदेही प्रत्यक्ष रूप से आम जनता के प्रति होती है जिसकी निगरानी विरोधी दल के सदस्य करते हैं. सदन के भीतर किसी भी सदस्य को अपनी बात खुलकर कहने का पूरा अधिकार रहता है और किसी भी बयान को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है. सदन के भीतर सभापति की नजर में प्रधानमंत्री और संसद सदस्य के बीच अधिकारों का कोई भेद नहीं रहता है.
जांच कैसे होती है?
संविधान के अनुच्छेद 105 के अनुसार विशेषाधिकार के उल्लंघन की जांच की जाती है, जबकि राज्य विधायिका के मामले में अनुच्छेद 194 के अनुसार प्रस्ताव पारित किया जाता है. नियमों के मुताबिक, नोटिस हाल की घटना से संबंधित होना चाहिए. इसके लिए सदन का हस्तक्षेप भी आवश्यक है.अध्यक्ष की सहमति के बाद सदस्य विशेषाधिकार हनन या सदन की अवमानना के प्रस्ताव पर सवाल उठा सकता है.
ये है ताजा मामला
ताजा मामला सरकार द्वारा 'ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत नहीं', वाले जवाब से जुड़ा है. इसको लेकर कांग्रेस और आम आदमी विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाने की तैयारी में है. मंगलवार को स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यसभा (Rajya Sabha) में बताया था कि दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत की जानकारी राज्यों ने नहीं दी है. इसी लिखित कथन को लेकर विशेषाधिकार प्रस्ताव लाने की तैयारी चल रही है.