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मुलायम सिंह यादव ने नहीं दी कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि, लेकिन उनकी दोस्ती बनी रहेगी मिसाल

राजनीतिक जानकारों और मुलायम सिंह को करीब से जानने वालों को भी खटक रही है. आखिर दो राजनीतिक शख्सियत जो कभी इतने करीब थे, एक-दूसरे को मित्र भी कहते थे तो ऐसा क्या हुआ कि श्रद्धांजलि के दो फूल भी मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह के पार्थिव शरीर पर नहीं डाले. 

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Kalyan Singh (File Photo)
Kalyan Singh (File Photo)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सोमवार को पंचतत्व में विलीन हुए कल्याण सिंह
  • मुलायम सिंह ने नहीं दी कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Kalyan Singh) सोमवार को पंचतत्व में विलीन हो गए. अब उनकी मुलायम सिंह यादव से दोस्ती की चर्चाएं जोरों पर हैं. हालांकि कल्याण सिंह को मुलायम सिंह यादव ने ना तो श्रद्धांजलि दी और ना ही उनके बारे में दो शब्द लिखे.

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अब ये राजनीतिक जानकारों और मुलायम सिंह को करीब से जानने वालों को भी खटक रही है. आखिर दो राजनीतिक शख्सियत जो कभी इतने करीब थे, एक-दूसरे को मित्र भी कहते थे तो ऐसा क्या हुआ कि श्रद्धांजलि के दो फूल भी मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह के पार्थिव शरीर पर नहीं डाले. 

खैर इस पर सियासी चर्चा चलेगी और नफा नुकसान पर भी चर्चा होगी लेकिन मुलायम सिंह और कल्याण सिंह के बीच क्या कोई रिश्ता था, यह जानना भी जरूरी है. याद करिए 2002- 2003 वो दौर जब कल्याण सिंह की बीजेपी के बड़े नेताओं से रिश्ते खराब हो गए थे और उन्होंने बीजेपी से अपनी अलग पार्टी बना ली थी. उन्होंने मुलायम सिंह यादव से जब हाथ मिलाया था तब यह बात कई बार कल्याण सिंह ने दोहराई थी ये दोस्ती भारतीय जनता पार्टी को खत्म करने के लिए काफी है. 

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जब समाजवादी पार्टी नहीं ज्वाइन करने की चर्चा थी...

ये दोस्ती का वो दौर था जब लगभग तय माना जा रहा था कि कल्याण सिंह समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं. हालांकि कल्याण सिंह ने तो आधिकारिक तौर पर समाजवादी पार्टी नहीं ज्वाइन की, लेकिन उनके बेटे राजवीर सिंह और कुसुम राय जोकि कल्याण सिंह की बेहद करीबी थे, इन दोनों ने समाजवादी पार्टी का दामन थामा था. मुलायम सिंह ने तब इसे गठबंधन नहीं बल्कि दोस्ती का नाम दिया था और कल्याण सिंह ने दो दिलों के मिलने की बात कही थी.

अखिलेश की शादी में कल्याण सिंह पर टिकी थीं निगाहें...

वह दौर भी याद कीजिए जब 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरी थी तब तक मुलायम सिंह यादव मौलाना मुलायम और कल्याण सिंह हिंदू हृदय सम्राट हो चुके थे. तल्खी इतनी थी कि दोनों सियासत के साथ-साथ निजी तौर पर भी दो अलग-अलग ध्रुवों पर खड़े थे, लेकिन समय बीतने के साथ-साथ दोनों के संबंध में सामान्य होते गए. 1999 में अखिलेश यादव की शादी के वक्त तमाम निगाहें और चर्चा कल्याण सिंह पर ही टिकी थीं.

1977 में जनता पार्टी की सरकार में दोनों मंत्री थे

वैसे सियासत के हिसाब से देखा जाए तो दोनों कद में और पद में लगभग समानांतर ही चलते रहे, लेकिन विचारों के दो विपरीत ध्रुवों के साथ 1967 में कल्याण सिंह पहली बार विधायक चुनकर आए जनसंघ के टिकट पर और तब से ही मुलायम सिंह यादव ने भी अपना सियासी सफर शुरू किया था. 1977 में जनता पार्टी की सरकार में दोनों मंत्री थे. मुलायम सिंह यादव घोर समाजवादी रहे और इन्हीं विचारों के साथ वह कई बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने जबकि कल्याण सिंह हिंदू हृदय सम्राट और राष्ट्रवादी विचारों को लेकर उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री बने. 

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सफल रहा बीजेपी का प्रयोग

बीजेपी ने भले ही हिंदुत्व के साथ पिछड़े चेहरे को आगे कर एक बड़ा प्रयोग किया हो लेकिन पिछड़ों की सियासत में भागीदारी को लेकर मुलायम सिंह और कल्याण सिंह एक ही दिखाई दिए क्योंकि दोनों पिछड़ी जाति से रहे. हालांकि बीजेपी ने दूसरी बड़ी पिछड़ी जाति "लोध" जाति से कल्याण सिंह को आगे किया और हिंदुत्व के साथ पिछड़ा चेहरे का एक बड़ा प्रयोग देश के सबसे बड़े प्रदेश की राजनीति में किया जो कि पूरी तौर पर सफल रहा.

दोनों नेताओं में दोस्ती की कई कहानियां बताई गईं लेकिन कितना सच ये कहना मुश्किल है. एक कहानी ये भी थी सियासत के शुरुआती दिनों में दोनों लखनऊ के अमीनाबाद में साथ में लस्सी पीने जाया करते थे और घंटों राजनीति पर चर्चा किया करते थे.

लाल टोपी भी पहनाई और नारे लगवाए, फिर...

कल्याण सिंह मुख्यमंत्री भी बने और फिर राम मंदिर मामले में उन्होंने इस्तीफा भी दिया. इसी दौरान भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं से सिंह के मतभेद हो गए और परिणाम स्वरूप कल्याण सिंह ने भाजपा छोड़ दी और 2002 में खुद की राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बना ली. दौर था 2009 का जब मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह मिले. यूपी के आगरा में जीआईसी मैदान में समाजवादी पार्टी ने 2009 लोकसभा इलेक्शन से पूर्व राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक की थी और इस बैठक में कल्याण सिंह ने भाग लिया था और मुलायम सिंह यादव के साथ स्टेज साझा किया. बताया जाता है कि इस दौरान मुलायम सिंह यादव ने कल्याण सिंह को सपा की लाल टोपी भी पहनाई और नारे लगवाए थे. हालांकि कल्याण सिंह ने सपा की सदस्यता नहीं ली थी.

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दोनों नेताजी की दोस्ती कुछ खास रास नहीं आई

2009 लोकसभा चुनाव से पहले, सपा और राष्ट्रीय क्रांति पार्टी ने हाथ मिला लिया था. आगरा के जीआईसी मैदान में स्टेज पर दोनों नेताओं के दोस्ती के कसीदे पढ़े गए लेकिन जनता को इन दोनों नेताजी की दोस्ती कुछ खास रास नहीं आई, जिसके चलते 2009 लोकसभा चुनाव में सपा को काफी नुकसान हुआ और समाजवादी पार्टी की सीट घटकर मात्र 23 पर ही रह गई. सीटों में हुए नुकसान के कारण, सपा के अंदर कल्याण सिंह के खिलाफ आवाज उठने लगी, नतीजा यह रहा कि उपचुनाव में खुद मुलायम सिंह यादव की बहू डिंपल यादव फिरोजाबाद में राज बब्बर से चुनाव हार गईं.

क्यों मुलायम सिंह ने माफी मांगी?

बताया जाता है इसके बाद से कल्याण सिंह और मुलायम सिंह दोनों नेताओं के रास्ते अलग-अलग हो गए. बताया यह भी जाता है कि एक समारोह को संबोधित करते हुए मुलायम सिंह ने इस बात का खुलासा किया था कि बीजेपी के नेता और पूर्व सीएम कल्याण सिंह से हाथ मिलाना उनकी सबसे बड़ी गलती थी क्योंकि हाथ मिलाने के बाद से पार्टी के भीतर काफी मतभेद हो गए थे. सभा को संबोधित करने के दौरान सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने अपनी इस कृत के लिए माफी भी मांगी थी. मुलायम सिंह यादव ने यह भी कहा था कि हाथ मिलाने से पार्टी को भारी नुकसान हुआ है, जिसके चलते मैंने उनसे (कल्याण सिंह) से अपना रिश्ता खत्म कर लिया. 

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मुलायम सिंह यादव ने अपने संबोधन में यह भी कहा था कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी ढांचे के विध्वंस के दौरान कल्याण सिंह यूपी के सीएम थे और बाबरी विध्वंस मामले में आरोपी भी. इनके साथ गठबंधन करना मेरी सबसे बड़ी गलती थी.

कहते हैं, दूध का जला भी छाछ फूंक-फूंककर पीता है. शायद यही वजह रही एक बार जब मुलायम सिंह यादव ने कल्याण सिंह से रिश्ते खत्म किए तो उनके पार्थिव शरीर को फूल चढ़ाने नहीं आए, हालांकि यह मुलायम सिंह की उस लोकप्रिय इमेज से मेल नहीं खाती जिसमें कहा यह जाता रहा कि मुलायम सिंह यादव ने निजी रिश्तों को कभी सियासत से नहीं मिलाया. 


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