केंद्र की मोदी सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण पर राज्यों को मिले अधिकार को बहाल करने लिए अब संसद का रास्ता चुना है. इसके लिए मोदी सरकार बुधवार को कैबिनेट में विधेयक को लाने की तैयारी में है. सरकार की कोशिश इस विधेयक को संसद के मौजूदा सत्र में पेश कर पारित कराने की है. सरकार इसे अमलीजामा पहनाने में कामयाब रहती है तो राज्यों के पास फिर से ओबीसी सूची में जातियों को अधिसूचित करने का अधिकार हो जाएगा. इससे महाराष्ट्र में मराठा समुदाय से लेकर हरियाणा के जाट समुदाय के ओबीसी में शामिल होने की संभावना बढ़ जाएगी.
बता दें कि केंद्र सरकार यह कदम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उठा रही है. 5 मई को मराठा आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी की पहचान करने और सूची बनाने के राज्यों के अधिकार को अवैध बताया था. कोर्ट का कहना था कि 102वें संविधान संशोधन के बाद राज्यों को सामाजिक व आर्थिक आधार पर पिछड़ों की पहचान करने और अलग से सूची बनाने का कोई अधिकार नहीं है. ऐसे में सिर्फ केंद्र ही ऐसी सूची बना सकता है और वही सूची मान्य होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था और साथ ही कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मराठा समुदाय को आरक्षण के कोटा के लिए सामाजिक, शैक्षणिक रूप से पिछड़ा घोषित नहीं किया जा सकता है, यह साल 2018 के महाराष्ट्र राज्य कानून समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मराठा आरक्षण 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन है.
सर्वोच्च अदालत के इस फैसले के बाद एक नया विवाद खड़ा हो गया था, क्योंकि मौजूदा समय में ओबीसी की केंद्र और राज्यों की सूची अलग-अलग है. राज्यों की ओबीसी सूची में कई ऐसी जातियों को रखा गया है, जो केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल नहीं हैं. बिहार में बनिया ओबीसी में है, लेकिन उत्तर प्रदेश में वो अपर कास्ट में आते हैं. ऐसे ही जाटों का हाल है. हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों पर भी ओबीसी लिस्ट अलग है.
केंद्र सरकार इसी इसलिए भी सतर्क है, क्योंकि राज्य की सूची के आधार पर ही कई ऐसी पिछड़ी जातियां हैं, जो राज्य की सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों के दाखिले में आरक्षण का लाभ पा रही हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू होने से इन जातियों को नुकसान होने का खतरा है. महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण की मांग को लेकर सियासत गरमा गई है. इसके अलावा देश के तमाम राज्यों में कई जातियां हैं, जिनकी ओबीसी में शामिल होने और आरक्षण की मांग लंबे समय से है.
आरक्षण जैसे संवेदनशील मामले में केंद्र सरकार किसी तरह का कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है. यही वजह है कि मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ही साफ कर दिया था कि वह इससे सहमत नहीं है. वह राज्यों को उसके अधिकार वापस देगी. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने के बाद नए मंत्री वीरेंद्र कुमार ने भी अधिकारियों के साथ सबसे पहले इस मुद्दे पर मंत्रणा की और अब मोदी सरकार संशोधन विधेयक लाने जा रही है.
हालांकि, केंद्र की मोदी सरकार ने मराठा आरक्षण पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका भी दाखिल की थी. इसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था, जिसके बाद ही केंद्र सरकार ओबीसी की सूची पर राज्यों की शक्ति बहाल करने को लेकर कानून बनाने पर विचार कर रही है. ओबीसी की केंद्रीय सूची में मौजूदा समय में करीब 26 सौ जातियां शामिल हैं.
संसद में संविधान के अनुच्छेद 342-ए और 366(26) सी के संशोधन पर मुहर लग जाएगी तो इसके बाद राज्यों के पास फिर से ओबीसी सूची में जातियों को अधिसूचित करने का अधिकार होगा. महाराष्ट्र में मराठा समुदाय और हरियाणा में जाट समुदाय, गुजरात में पटेल समुदाय और कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को ओबीसी में शामिल होने का मौका मिल सकता है.
इन राज्यों में लंबे समय से यह जातियां आरक्षण की मांग कर रही हैं, जिनमें से महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को फडणवीस सरकार ने इस कैटिगरी में स्वीकार कर लिया था. मराठा समुदाय को आरक्षण का लाभ दिया था, लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया है. ऐसे में केंद्र सरकार विधेयक लाती है तो राज्य सरकारों को अपने लिहाज से ओबीसी जातियों को अपने राज्य में शामिल करने का संवैधानिक अधिकार मिल जाएगा. इसका फायदा उन राज्यों में उन प्रभावशाली जातियों को होगा जो ओबीसी आरक्षण में शामिल होने की मांग कर रही हैं.