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क्यों नगालैंड हर बार विपक्ष मुक्त हो जाता है? नेफ्यू रियो की NDPP-BJP सरकार को NCP-JDU का समर्थन

नगालैंड में नेफ्यू रियो की अगुवाई एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन सरकार को एनसीपी और जेडीयू ने बिना शर्त समर्थन दे दिया है. इसके साथ ही नगालैंड विपक्ष मुक्त वाला राज्य बन गया है, लेकिन यह पहली बार नहीं है बल्कि 2015 और 2021 में भी हो ऐसा ही हो चुका है. सवाल उठता है कि आखिर नगालैंड में क्यों सभी एक साथ आ जाते हैं?

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नगालैंड में एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन के साथ आए सभी दल
नगालैंड में एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन के साथ आए सभी दल

नगालैंड विधानसभा एक बार फिर से विपक्ष मुक्त हो गई है. सूबे में बहुमत हासिल करने वाली एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन को लगभग सभी दलों ने बिना शर्त समर्थन दिया है. शरद पवार की एनसीपी और नीतीश कुमार की जेडीयू विधायकों ने भी नेफ्यू रियो के नेतृत्व वाली सरकार को सहयोग करने का ऐलान कर दिया है. नगालैंड में यह पहला मौका नहीं है जब विपक्षी दलों ने नेफ्यू सरकार के साथ हाथ मिलाया है बल्कि 2015 से यही मॉडल चला आ रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि नगालैंड में सभी दल सरकार के साथ खड़े हो जाते हैं ? 

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पांचवी बार मुख्यमंत्री बने नेफ्यू रियो नगालैंड की सियासत के धुरी बने हुए हैं. पिछले दो दशक से उन्हीं के इर्द-गिर्द राज्य की राजनीति सिमटी हुई है. नगालैंड चुनाव के नतीजे दो मार्च को आए हैं, जिसमें एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन ने पूर्ण बहुमत के साथ जीत दर्ज की. राज्य की कुल 60 विधानसभा सीटों में से एनडीपीपी को 25 और बीजेपी को 12 सीटें मिली. यह दोनों ही पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ी थी और 37 सीटों के साथ सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही.  

वहीं, नगालैंड में एनसीपी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और पार्टी के सात सदस्यों ने जीत हासिल की थी. इसके अलावा एनपीपी के पांच, चार निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी. एलजेपी (रामविलास), एनपीएफ, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के दो-दो विधायकों ने जीत हासिल की थी. जेडीयू के टिकट पर एक प्रत्याशी विधायक बने. ये पहली बार है जब इतने सारे सियासी दलों के उम्मीदवारों ने चुनाव में जीत हासिल की थी. राज्य में कुल आठ पार्टियां और निर्दलियों ने जीत दर्ज की है. 

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नेफ्यू रियो और पीएम मोदी

बीजेपी-एनडीपीपी को सभी दल का समर्थन

एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन को नगालैंड चुनाव में स्पष्ट बहुमत मिला था, जिसके दम पर सीएम नेफ्यू रियो पांचवी बार सत्ता में वापसी की. इसके बाद एलजेपी (रामविलास), आरपीआई (अठावले), एनपीएफ, एनपीपी ने एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन को 'बिना शर्त' समर्थन दिया. इसके अलावा नीतीश कुमार की जेडीयू के एक विधायक और शरद पवार की एनसीपी के सात विधायकों ने भी नेफ्यू रियो के नेतृत्व वाली एनडीपीपी-बीजेपी को 'बिना किसी शर्त' समर्थन पत्र सौंपा. एनसीपी का सरकार के साथ आने के बाद नगालैंड में सर्वदलीय सरकार बन गई है.

नगालैंड से बाहर घिरी जेडीयू-एनसीपी 

महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी भले ही बीजेपी के खिलाफ हो, लेकिन नगालैंड में एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन के साथ खड़ी है. नगालैंड में एनसीपी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी और विपक्ष में रहते हुए नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी भी पक्की थी. इसके बाद भी एनसीपी की स्थानीय इकाई ने नेफ्यू रियो सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया है. इसी तरह नीतीश कुमार की जेडीयू बिहार में बीजेपी के विरोधी खेमे महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार चला रही है, लेकिन नगालैंड में जेडीयू के टिकट पर जीते विधायक ने बीजेपी गठबंधन को समर्थन दिया है. 

एनसीपी और जेडीयू को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं, जिसके चलते जेडीयू शीर्ष नेतृत्व ने नगालैंड की पार्टी इकाई को भंग कर दिया है. जेडीयू के प्रवक्ता अभिषेक झा ने बताया है. उन्होंने कहा कि नगालैंड के पार्टी अध्यक्ष ने जेडीयू के केंद्रीय नेतृत्व से परामर्श किए बिना नगालैंड के मुख्यमंत्री को समर्थन पत्र दिया है, जो उच्च अनुशासनहीनता और मनमाना कदम है. यही कारण है कि नगालैंड में पार्टी की राज्य समिति को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया गया है. 

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नगालैंड 'विपक्ष मुक्त' पहला राज्य बना 

नेफ्यू रियो के अगुवाई वाली सरकार के साथ सत्तापक्ष के साथ विरोधी दलों के समर्थन देने से नगालैंड विपक्ष मुक्त राज्य बन गया है. हालांकि, ये पहली बार नहीं है, जब नगालैंड में बिना विपक्ष वाली सरकार बनी हो. इसके पहले भी 2015 और 2021 में नेफ्यू सरकार के चालू कार्यकाल के दौरान विपक्ष-रहित सरकारें बनीं थी. हालांकि, यह पहली ऐसी विधानसभा होगी, जो सदन के शपथ लेने से पहले ही विपक्ष-रहित हो गई है. पिछली बार भी यही हुआ था. तब भी नगालैंड के सारे 60 विधायक सरकार में शामिल थे, लेकिन सरकार गठन के काफी दिनों के बाद हुआ था.

एनसीपी प्रमुख शरद पवार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

 
नगालैंड में क्यों सत्ता-विपक्ष एकसाथ

नगालैंड में सत्ता और विपक्ष के एक साथ आने पर सभी के मन में सवाल है कि आखिर ये सियासी करिश्मा को बारबार हो जाता है. इसके पीछे वजह यह है कि नागालैंड में स्थायी राजनीतिक समाधान के लिए विपक्ष के सभी दल नेफ्यू रियो सरकार के साथ खड़े रहने ही बेहतर समझते हैं, क्योंकि एनडीपीपी का बीजेपी के साथ गठबंधन है और केंद्र में बीजेपी की सरकार है. नगालैंड की समस्या का समाधान केंद्र सरकार के हस्ताक्षेप के बाद ही होना है. इसीलिए नगालैंड के सभी दल सरकार से खुद को अलग-थलग नहीं रखना चाहते हैं. 

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मोदी सरकार के आने के बाद बदली तस्वीर

दरअसल, नागालैंड में करीब छह दशक से जारी संघर्ष को खत्म करने के लिए 3 अगस्त 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनएससीएन की मौजूदगी में नगा शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. हालांकि, साल 1997 में केंद्र सरकार और सबसे बड़े विद्रोही समूहों में शामिल नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालिम (एनएससी-आईएम) के बीच संघर्ष विराम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. इसे आगे बढ़ाने का काम मोदी सरकार ने किया और एनएससीएन से बातचीत को फिर से शरू किया था. 

सीएम नेफ्यू रियो के नेतृत्व में नगा शांति वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए एनपीएफ के साथ एक प्रस्ताव पारित किया था. इस प्रस्ताव में महत्वपूर्ण मुद्दा रहा जो दशकों से लंबित है और पार्टियों ने शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण राजनीतिक समाधान प्राप्त करने के लिए एकजुट होने का संकल्प लिया था. इसके बाद 2015 में सभी दल एक साथ आ गए थे. यह सब केंद्र की मोदी सरकार की पहल पर नगा शांति वर्ता शुरू करने की दिशा में कदम उठाया था. 

नागालैंड के मुद्दे पर संसदीय समिति की कोर कमेटी पूर्व की समस्याओं के समाधान के लिए मिलजुलकर साझा दृष्टिकोण अपनाने का संकल्प जताया था. एनपीएफ ने भी नगा शांति समस्या के समाधान के लिए केंद्र सरकार से सहमति जता चुके हैं. केंद्र की मोदी सरकार के साथ सीएम नेफ्यू रियो ने इस दिशा में ठोक कदम उठाया था, जिसके बिना पर ही सभी सियासी दल साथ आए थे. 

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2021 में सत्ता पक्ष-विपक्ष एक साथ आए

बता दें कि अगस्त, 2021 को एक साझा प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें एनपीएफ ने घोषणा की थी कि सभी राजनीतिक दल नगालैंड के सभी समूहों से एकता और सुलह की दिशा में गंभीर प्रयास करने की अपील करेंगे और भारत सरकार से भी जल्द से जल्द कोई सौहार्दपूर्ण निकालने का आग्रह करेंगे. इसके बाद नेफ्यू रियो की सरकार ने एक संसदीय समिति गठित की थी, जिसमें राज्य के सभी विधायक और सांसद भी शामिल किए गए थे. इसकी पहली बैठक नगालैंड के दीमापुर में हुई थी.

मुख्यमंत्री रियो दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर केंद्र सरकार से नागालैंड मुद्दे को हल करने की दिशा में उपयुक्त कदम उठाने का आग्रह किया था. माना जाता है कि नगालैंड में विपक्ष मुक्त सरकार बनाने का विचार इसी बैठक में आया था. बीजेपी को पहले यूडीए की इस पहल पर संदेह था, क्योंकि वह इस गठबंधन में जूनियर पार्टनर बन जाने को लेकर आशंकित थी.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2023 में प्रस्तावित चुनावों के साथ शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए सभी दलों से साथ मिलकर काम करने को कहा था. इसके पीछे विचार यह था कि इस तरह का रुख सभी दलों के लिए फायदेमंद होगा क्योंकि जनता उन्हें समस्या के समाधान के प्रति गंभीर मान सकेगी. इसके बाद ही अब सभी दल नगा संकट के हल के लिए समिति के हिस्से के तौर पर एक साथ आ गए हैं. नार्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस के प्रमुख और असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा पूर्वोत्तर भी इस मिशन में लगातार जुटे हैं और नगालैंड के सभी राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर एकमत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं. 

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