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नए कृषि कानूनों पर देश की राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर किसानों और सरकार के बीच खींचतान चल रही है. इस बीच इंडिया टुडे ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में पाया है कि बाजार के सकारात्मक माहौल में नए कानूनों से किसानों को लाभ हो सकता है.
अभी गेंहू और चावल पैदा करने वाले किसानों को डर है कि नये कानून से न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म हो जाएगी और किसान बाजार की उठापटक के चपेट में आ जाएंगे. वहीं मध्य और दक्षिण भारत में सोयाबीन और नारियल की फसल करने वाले किसानों ने नए कृषि कानूनों की वजह से अच्छा मुनाफा कमाया है. इंडिया टुडे ने देश के तीन राज्यों के चार जिलों हरदा, देवास, मदुरै, रुड़की के किसानों से बात कर उनके अनुभव को जाना.
वर्तमान में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था 23 फसलों के लिए है. इसमें से सरकार मुख्य रूप से गेहूं, चावल और कुछ दाल और तिलहन की फसल MSP पर किसानों से खरीदती है.
मुक्त बाजार के सफलता की कहानियां
इस वक्त सोयाबीन (पीली किस्म) का न्यूनत्तम समर्थन मूल्य 3880 रुपये प्रति क्विंटल है. मध्य प्रदेश के हरदा में इंडिया टुडे ने पाया कि यहां एक किसान सोयाबीन को 4266 रुपये प्रति क्विंटल बेचने में कामयाब रहा है. सोयाबीन उपजाने वाले किसान राम गुर्जर ने बताया कि उसने और कई दूसरे किसान ने आईटीसी केंद्र में अपनी फसल को MSP से भी अधिक कीमत पर बेचा है.
राम गुर्जर ने कहा, "सभी किसानों ने अच्छी कमाई की है, नए कानूनों से किसानों को ज्यादा आजादी मिली है, दलाल और अढ़तिया के न होने से हमलोग को ज्यादा फायदा मिलेगा. एमपी के देवास में भी किसान खुश और संतुष्ट दिखे.
यहां भी किसानों को खुले बाजार में सोयाबीन की न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज्यादा कीमत मिली है. कमल पटेल नाम के किसान ने अपनी सोयाबीन की फसल एक निजी खरीदार को बेची है. कमल पटेल ने कहा कि कृषि क्षेत्र के नए कानूनों किसानों के लिए फायदेमंद हैं.
कमल पटेल ने कहा, "ये कॉम्पटिशन वाली व्यवस्था है. आईटीसी ने यहां उपज की खरीद के लिए केंद्र (चौपाल) बनाया है, हम ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं. यहां किसानों के लिए बैठने की व्यवस्था है, उपज तौलने के लिए इलेक्ट्रानिक वेटिंग मशीन है, पीने का पानी है, किसानों को दलालों से छुटकारा मिला है. हमें अच्छा लाभ मिला है.
दक्षिण में भी किसानों को फायदा
सुदूर दक्षिण में भी किसानों ने इस कानून का सहारा लेकिन मुनाफा कमाया है. तमिलनाडु में नारियल की खेती करने वाले किसान कहते हैं कि इस साल उन्होंने अपनी उपज निजी व्यापारियों को बेची है. किसानों ने कहा कि उन्होंने निर्धारित एमएसपी 2700 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा की दर पर अपनी उपज बेची है.
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नए कानून के अस्तित्व में आने के बाद अब नारियल किसान अपने फसल की साप्ताहिक नीलामी करते हैं. मदुरै के एक किसान आर नलप्पन ने इंडिया टुडे को कहा कि उसके मुक्त बाजार ज्यादा फायदेमंद साबित हो रहा है. नलप्पन ने कहा, "पहले हम नारियल घाटे में बेच रहे थे, हमें 150 नारियल मुफ्त में देना पड़ता था और अब नीलामी के जरिए हम अपने उपज को फायदे में बेच रहे हैं. ये व्यवस्था करने के लिए हम राज्य सरकार को धन्यवाद दे रहे हैं. नलप्पन को यकीन है कि नीलामी ये मॉडल धान के किसानों के लिए भी फायदेमंद हो सकता है.
MSP/मंडी सिस्टम
बता दें कि अभी देश भर में 7000 मंडियां है जो सरकारी नियमों के अधीन संचालित होती है. पंजाब और हरियाणा वैसे राज्यों में शुमार है जहां की मंडी व्यवस्था सबसे दुरुस्त है. यहां पर लाइसेंसधारी कमीशन एजेंट जिन्हें कि स्थानीय तौर पर अढ़ातिया कहा जाता है इन दो राज्यों में किसानों की डीलिंग तय करते हैं.
बता दें कि सरकार द्वारा MSP आधारित खरीद सिस्टम का श्रेय ब्रिटिश सरकार को जाता है. ब्रिटिश सरकार ने दूसरे विश्व युद्ध के समय राशनिंग सिस्टम शुरू की थी, तभी से अनाज की सरकारी दर पर खरीद होती है. 1942 में खाद्य विभाग नाम का सरकारी संस्थान वजूद में आया. आजादी के बाद इस संस्थान को खाद्य मंत्रालय में तब्दील कर दिया गया.
ये वो वक्त था जब भारत में अनाजों की किल्लत हुआ करती थी. जब 1960 में हरित क्रांति शुरू हुई तो भारत ने खाद्य आपूर्ति को सुधारने के लिए बड़े पैमाने पर काम शुरू किया और अनाज का स्टॉक रखने लगा.
1966-67 में गेहूं की खरीद के लिए MSP सिस्टम पूर्ण तौर पर वजूद में आ गया. बाद में इसमें दूसरे अहम फसलों को भी शामिल किया गया. तब इन फसलों को बेहद कम दाम पर (सब्सिडी पर) गरीबों को जन वितरण प्रणाली के जरिए बेचा जाता था.
MSP भारतीय कृषि व्यवस्था में दशकों से चली आ रही है, लेकिन अबतक इसका किसी कानून में वर्णन देखने को नहीं मिलता है. हालांकि सरकार साल में दो बार MSP की घोषणा करती है, लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं है जिसके तहत सरकार के लिए ऐसा करना जरूरी हो.
इसका मतलब ये है कि सरकार MSP पर किसानों से अनाज खरीदती तो है लेकिन वह किसी कानून के तहत ऐसा करने को बाध्य नहीं है.
इसलिए ऐसा कोई कानून नहीं है जो ये कहता हो कि निजी खरीदारों पर भी MSP पर अनाज खरीदने की बाध्यता हो. इससे पहले The Commission for Agricultural Costs and Prices ने सिफारिश की थी किसानों को MSP मिले इसके लिए एक कानून लाया जाए, लेकिन इसे केंद्र ने स्वीकार नहीं किया था.
इससे पहले इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि MSP को नए किसी कानूनों में नहीं रखा जा सकता है, हालांकि उन्होंने वादा किया था कि जैसा सिस्टम अभी चल रहा है, वैसा ही चलता रहेगा.
तब उन्होंने कहा था, "विपक्ष कई सालों तक सत्ता में था, उन्होंने MSP को कानून में क्यों शामिल नहीं किया. वे अब इस मुद्दे को क्यों उछाल रहे हैं. कुछ चीजें हैं तो प्रशासन के द्वारा तय की जाती है, हम हर चीज के लिए कानून नहीं बना सकते हैं."
RSS से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच के इस मांग की है कि MSP की गारंटी देने के लिए कृषि कानूनों में संशोधन किया जाए, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा था कि, 'हर संगठन का अपना विचार होता है, लेकिन सरकार को संतुलित फैसला लेना पड़ता है. केंद्र की प्राथमिकता किसान और उनके फायदे हैं, इसलिए नरेंद्र मोदी सरकार ने MSP को बढ़ाया है."
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि किसानों को सरकार से फंड मिलने चाहिए, इसके अलावा सरकार की नीतियां ऐसी हो कि उनका उत्पादन बढ़े. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार का लक्ष्य है कि किसानों की आय 2022 तक दोगुनी हो जाए. पीएम किसान सम्मान निधि योजना देश की पहली ऐसी पॉलिसी है जहां किसानों के खाते में सीधे 75000 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए गए.
व्यावसायिक खेती
उत्तराखंड के रूड़की में मनमोहन भारद्ववाज नाम के एक व्यवसायी किसान ने खुले बाजार के फायदे को समझाते हुए कहा कि उसने मशरूम की खेती की. मशरूम की फसल की फसल नगदी फसल है और ये MSP के दायरे में नहीं आती है.
मनमोहन सिंह ने कहा, "अब आप पूरे देश में कहीं भी अपनी उपज बेच सकते हैं पुणे, मुंबई कहीं भी. ये किसानों के हक में काम करने वाला कानून है. लेकिन दिक्कत यह है कि हमारे देश में बहुत राजनीति होती है, विपक्ष में रहने वाले लोग सत्ता पक्ष को नीचा दिखाने के लिए एकजुट हो जाते हैं.
बता दें कि देश की राजधानी दिल्ली से सटे सिंधु बॉर्डर पर पिछले 10 दिनों से नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा है.