
बिहार की राजधानी पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में बड़ी जोर-शोर के साथ जिस विपक्षी गठबंधन की नींव पड़ी थी, पांच राज्यों में चुनाव के बीच वह दरकती दिख रही है. पहले समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने विपक्षी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस यानी इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की भूमिका को लेकर तल्ख तेवर दिखाए. अब इस एकजुटता की कवायद के कर्णधार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी नाराज हैं.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर पटना की मीटिंग से विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस यानी INDIA गठबंधन का गठन हुआ था. विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए पटना से कोलकाता, दिल्ली से चेन्नई एक कर देने वाले नीतीश कुमार ने कहा है कि आजकल गठबंधन का कोई काम नहीं हो रहा. कांग्रेस पांच राज्यों के चुनाव में व्यस्त है, इस तरफ ध्यान नहीं दे रही है.
उन्होंने ये भी कहा कि हम सबको एकजुट कर, साथ लेकर चलते हैं. हम लोग सोशलिस्ट हैं. सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट को एक होकर आगे चलना है. अब नीतीश के इस बयान के मीन-मेख निकाले जाने लगे हैं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृ्त्व वाले केंद्र की सत्ता पर काबिज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए को हराने के लिए एक सीट पर एक उम्मीदवार के फॉर्मूले की वकालत करने वाले नीतीश आखिर अचानक इतने तल्ख क्यों हो गए?
सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं, क्योंकि इस बयान के एक दिन पहले ही नीतीश कुमार से जब इंडिया गठबंधन में अनबन को लेकर सवाल हुआ, तब उन्होंने हाथ जोड़ लिए थे. ऐसे समय में जब यूपी में अखिलेश यादव ने 65 सीटों पर चुनाव लड़ने का एकतरफा ऐलान कर अपनी लकीर खींच दी है, नीतीश कुमार के इस बयान के मायने क्या हैं? सुशासन बाबू का ये बयान कहीं हिंदी पट्टी के दो बड़े राज्यों में इंडिया गठबंधन का रास्ता ब्लॉक हो जाने का संकेत तो नहीं?
नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी कह चुके हैं कि गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है. हम फिर बैठेंगे और मिलकर आगे बढ़ने की कोशिश करेंगे. ऐसे में सवाल विपक्षी गठबंधन के भविष्य को लेकर भी उठ रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने इन सबको लेकर कहा कि बिहार में भी वही हो रहा है जो मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में हो रहा है. सूबे की सियासत पहले से ही दो धड़ों में बंटी हुई है, एनडीए और महागठबंधन. महागठबंधन में वो सभी पार्टियां पहले से ही हैं जो नवगठित इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं.
ये भी पढ़ें- 'I.N.D.I.A गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं', MP में सपा-कांग्रेस विवाद पर बोले उमर अब्दुल्ला
अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि जब इंडिया के घटक दल पहले से ही महागठबंधन में साथ हैं तो फिर समस्या कहां है? कहा तो ये भी जा रहा है कि जिस तरह कांग्रेस ने राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत सभी चुनावी राज्यों में और सपा ने यूपी में अपनी लकीर खींच दी है. नीतीश कुमार की रणनीति भी कुछ वैसी ही हो सकती है. दरअसल, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां बिहार में 14 सीटों पर दावा कर रही हैं. 40 सीटों वाले सूबे में अगर कांग्रेस-लेफ्ट को उनकी मांग के मुताबिक 14 सीटें दे दी जाएं तो फिर जेडीयू और आरजेडी के लिए 26 सीटें ही बचती हैं.
ये भी पढ़ें- अखिलेश 6 चाहते थे, दिग्विजय 4 दिला रहे थे... जानें MP में सीट शेयरिंग को लेकर कहां बिगड़ी बात
जेडीयू के 16 उम्मीदवार 2019 में जीते थे जबकि आरजेडी 19 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी. जेडीयू पिछले चुनाव में जीती सीटों से कम पर मानेगी, इसके आसार नहीं हैं. वहीं, आरजेडी का विधानसभा में भी संख्याबल अधिक है. ऐसे में लालू यादव की पार्टी भी जेडीयू से कम सीटों पर तैयार नहीं होगी. अब दूसरा पहलू ये भी है कि कांग्रेस 2019 में केवल एक सीट जीत सकी थी और अब दावा 10 पर कर रही है.
विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और पार्टी महज 19 सीटें ही जीत सकी थी. तब महागठबंधन सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत के जादुई आंकड़े से मामूली अंतर से पीछे रह गया था और इसके लिए कांग्रेस के प्रदर्शन को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा था. कहा जा रहा है कि 2019 के आम चुनाव और 2020 के बिहार चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को देखते हुए नीतीश कुमार कांग्रेस को अधिक सीटें देने के पक्ष में नहीं हैं.
ये भी पढ़ें- सपा नेता का INDIA गठबंधन पर हमला, कहा- हमने हाथ खींचा तो कांग्रेस को जीत के लाले पड़ेंगे
नीतीश कुमार के ताजा बयान को कांग्रेस के लिए सख्त संदेश की तरह देखा जा रहा है कि बिहार में उसे उनकी ही माननी पड़ेगी. पहले अखिलेश और अब नीतीश के बयान को पांच राज्यों के नतीजों के बाद बारगेन पावर बढ़ने की उम्मीद लगाए कांग्रेस के लिए झटके की तरह देखा जा रहा है. अखिलेश ने तो दो टूक कह दिया है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जीत भी जाते हैं तो किसी मुगालते में ना रहें. यहां दाल नहीं गलने वाली.
यूपी-बिहार में हैं 120 लोकसभा सीटें
यूपी और बिहार, दोनों ही राज्य लोकसभा चुनाव के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है. लोकसभा के 543 में से 120 सदस्य इन्हीं दो राज्यों से चुनकर आते हैं. आंकड़ों के हिसाब से देखें तो यूपी-बिहार के सदस्यों की तादाद कुल सदस्य संख्या के करीब 22 फीसदी पहुंचती है. ऐसे में सवाल ये भी है कि अपनी खोई जगह वापस पाने के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस इन दो राज्यों में सहयोगी दलों की शर्तें मानेगी या यहां इंडिया गठबंधन का रास्ता ब्लॉक हो जाएगा?