मिशन-2024 के तहत विपक्षी एकता की मुहिम में जुटे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने पुराने सहयोगियों के साथ बिगड़े रिश्ते को सुधारने की दिशा में सक्रिय हैं. नीतीश कुमार दिल्ली में शरद यादव से मिले तो पटना में अपने पूर्व सहयोगी पवन वर्मा और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) के साथ अलग-अलग मुलाकात की. ऐसे में सवाल उठता है कि पीके क्या एक बार फिर से नीतीश कुमार के साथ मिलकर काम करेंगे?
बता दें कि पूर्व सांसद पवन वर्मा और प्रशांत किशोर दोनों ही राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में माहिर माने जाते हैं. पवन वर्मा विदेश सेवा में काम करते हुए कई देशों में भारत के राजदूत रह चुके हैं तो पीके चुनावी प्रबंधन का काम करते हैं. पवन वर्मा और प्रशांत किशोर ने अपना सियासी पारी जेडीयू के साथ शुरू किया था. पवन वर्मा जेडीयू से राज्यसभा सदस्य रहे तो पीके पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे. हालांकि, नीतीश ने जनवरी, 2020 में पवन वर्मा और पीके को जेडीयू ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था.
जेडीयू से नाता टूटने के बाद पवन वर्मा ने 2021 में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी का दामन थाम लिया था जबकि प्रशांत किशोर अलग-अलग सियासी दलों के लिए चुनावी रणनीति बनाने का काम करते रहे. इतना ही नहीं वो इन दिनों बिहार में जन सुराज अभियान की तैयारी में जुटे हैं. दो अक्टूबर से पश्चिमी चंपारण में स्थित गांधी आश्रम से पीके बिहार में अपनी यात्रा शुरू करेंगे और गांवों, शहरों और लोगों के घरों तक पहुंचेंगे. उन्होंने कहा था कि इस दौरान हजारों लोगों से व्यक्तिगत रूप से वो मुलाकात करेंगे.
बिहार में सियासी बदलाव के बाद पवन वर्मा ने टीएमसी को अलविदा कह दिया. वहीं, महागठबंधन में शामिल दलों के साथ सरकार बनाने के बाद से ही नीतीश कुमार विपक्षी नेताओं को एक मंच पर लाने के काम में जुटे हुए हैं. ऐसे में नीतीश अपने पूर्व करीबी नेताओं के गिले-शिकवे दूर कर उन्हें साथ जोड़ने की कवायद में हैं. इसी कड़ी में नीतीश पहले पवन वर्मा से मिले और फिर मंगलवार को पवन वर्मा और प्रशांत किशोर के साथ मुलाकात की. मुख्यमंत्री आवास पर नीतीश ने दोनों नेताओं से लंबी बातचीत की, जिसके बाद सियासी चर्चांए तेज हो गई हैं.
दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए मोदी के पीएम कैंडिडेट बनने के बाद नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ लिया था. वहीं, 2014 में मोदी के पीएम बनने के बाद ही पीके के बीजेपी के टॉप लीडरशिप से संबंध खराब हो चुके थे. प्रशांत किशोर बीजेपी को सबक सीखाने के मूड में थे तो नीतीश कुमार अपनी सत्ता बचाने की जुगाड़ में लगे थे. पवन वर्मा ने पीके को नीतीश के साथ मुलाकात कराई थी. इसके बाद पीके ने अपनी शर्तों पर नीतीश कुमार के लिए चुनावी रणनीति बनाने का काम शुरू किया. नीतीश कुमार ने पीके को काम करने की पूरी छूट दी थी.
नरेंद्र मोदी के सुनामी के सामने 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की सियासी नैया को पार लगाने का श्रेय प्रशांत किशोर को जाता है. 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे तो चुनावी रणनीति बनाने का काम पीके ने ही किया था और महागबठंधन को बड़ी सफलता मिली थी. इसके बाद ही नीतीश और पीके के रिश्ते पहले से ज्यादा प्रगाढ़ हो गए थे, जिसके बाद ही उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बन गए.
साल 2017 में नीतीश कुमार बीजेपी के साथ हुए तो जेडीयू में आरसीपी सिंह मजबूत हुए. आरसीपी ने ऐसी सियासी बिसात बिछाई, जिससे नीतीश जेडीयू में अलग-थलग पड़ गए. सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर प्रशांत किशोर ने अलग स्टैंड लिया तो उन्हें जेडीयू से हटा दिया गया था. वहीं, 2022 में नीतीश फिर से आरजेडी के साथ हो गए तो प्रशांत किशोर खुद के लिए बिहार में पॉलिटिकल आधार तैयार करने में जुटे हैं.
वहीं, नीतीश कुमार 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी और मोदी को सियासी मात देने के लिए विपक्ष दलों को एक मंच पर लाने में जुटे हैं तो प्रशांत किशोर के सियासी मकसद जगजाहिर है. पूर्व सांसद पवन वर्मा की मौजूदगी में प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार की मुलाकात हुई. पीके ने शिष्टाचार मुलाकात बताया, लेकिन साथ ही कहा कि बातचीत के दौरान नीतीश ने उनसे साथ आने की बात कही है. पीके ने कहा कि हम अपने स्टैंड से पीछे नहीं हट रहे हैं और 2 अक्टूबर से बिहार में अपनी यात्रा निकाल रहे हैं.
प्रशांत किशोर भले ही नीतीश की मुलाकात को शिष्टाचार बता रहे हों, लेकिन नीतीश विपक्षी दलों के साथ पीके के रिश्ते को बेहतर तरीके से जानते हैं. ममता बनर्जी से लेकर एमके स्टालिन, केसीआर और अरविंद केजरीवाल जैसे क्षत्रपों के साथ काम कर चुके हैं. ऐसे में निश्चित रूप से प्रशांत किशोर में चुनाव रणनीति बनाने और चुनावी प्रबंधन की काबिलियत है और उससे नीतीश कुमार की विपक्षी एकता की मुहिम को फायदा मिल सकता है. पीके अपना पत्ता अभी नहीं खोल रहे हैं, पर आजतक से कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में तभी विपक्ष को लाभ मिलेगा जब विपक्ष एकजुट हो और किसी विश्वसनीय चेहरे को आगे कर चुनावी मैदान में उतरे.