
विपक्षी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस यानी इंडिया गठबंधन से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन हो? ये बहस फिर से छिड़ गई है. समाजवादी पार्टी (सपा) की ओर से अखिलेश यादव को पीएम दावेदार बताए जाने के बाद अब राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 'मिशन दिल्ली' को फिर से हवा देने में लग गई है. आरजेडी प्रवक्ता और विधायक भाई वीरेंद्र ने सीएम नीतीश को प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य व्यक्ति बताते हुए कहा है कि अगला प्रधानमंत्री बिहार से होना चाहिए.
ये कोई पहला मौका नहीं है जब विपक्षी गठबंधन से प्रधानमंत्री पद के लिए नीतीश की उम्मीदवारी को लेकर चर्चा हुई हो और ना ही भाई वीरेंद्र ऐसे पहले नेता हैं जिसने नीतीश को पीएम पद के लिए सबसे योग्य नेता बताया हो. नीतीश को पीएम उम्मीदवारी के लिए सबसे योग्य बताने वाले नेताओं की लिस्ट में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह से लेकर बिहार विधानसभा के डिप्टी स्पीकर महेश्वर हजारी तक के नाम हैं लेकिन आरजेडी प्रवक्ता के बयान से सियासी गलियारों में हलचल बढ़ गई है.
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भाई वीरेंद्र के बयान के सियासी निहितार्थ तलाशे जाने लगे हैं, समयकाल और हालात से जोड़कर मीन-मेख निकाले जाने लगे हैं. कोई इसे आरजेडी में तेज हुई ब्राह्मण बनाम राजपूत की सियासत से जोड़कर देख रहा है तो कोई इसे सुस्त पड़े नीतीश की महत्वाकांक्षा को हवा देकर बिहार में अपना लक्ष्य पाने की कवायद बता रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार अशोक ने कहा कि मनोज झा की संसद में सुनाई कविता को लेकर आरजेडी के राजपूत और ब्राह्मण नेता आमने-सामने हैं. आरजेडी का ये आंतरिक घमासान सुर्खियां बना हुआ है. भाई वीरेंद्र के बयान की बात करें तो ये लालू यादव के बयान के ठीक बाद आया. इसके पीछे आरजेडी की रणनीति ताजा विवाद से ध्यान भटकाने की भी हो सकती है.
गौर करने वाली बात ये है कि आरजेडी प्रवक्ता का ये बयान पार्टी प्रमुख लालू यादव की ओर से खुलकर मनोज झा का समर्थन कर दिए जाने के बाद आया है. लालू ने मनोज का समर्थन करते हुए कहा कि चेतन आनंद के पास अक्ल नहीं है. जितनी बुद्धि होगी उतना ही न बोलेंगे. लालू ने ये भी दावा किया कि राजपूत मतदाता आरजेडी के साथ हैं.
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दूसरा फैक्टर है आरजेडी का नीतीश कुमार को राष्ट्रीय राजनीति में भेजने का प्लान. आरजेडी और जेडीयू जब दूसरी बार साथ आए और नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनी, तभी से ये चर्चा आम रही है कि दोनों दलों के बीच एक समझौता हुआ है. वह ये कि नीतीश दिल्ली की सियासत में एक्टिव होंगे और बिहार की गद्दी तेजस्वी यादव को सौंप देंगे.
जेडीयू और आरजेडी, दोनों ही पार्टियों की ओर से किसी तरह की डील की बात को नकारा जाता रहा है लेकिन गाहे-बगाहे दिल की बात जुबां पर आती भी रही है. कुछ महीने पहले की ही बात है, लालू यादव बिहार के गोपालगंज जिले में स्थित अपने पैतृक गांव पहुंचे थे. लालू ने तब इंडिया गठबंधन के संयोजक से संबंधित सवाल पर कहा था कि एक नहीं, अनेक संयोजक होंगे. उन्होंने ये भी कहा था कि जनता तेजस्वी को सीएम के रूप में देखना चाहती है.
आरजेडी के लिए तेजस्वी को सीएम बनाना तभी संभव है जब नीतीश को दिल्ली की सियासत में धकेला जाए, कम से कम अभी के हालात में. कहा तो ये भी जाता रहा है कि नीतीश कुमार आरजेडी के बार-बार कुरेदने पर ही विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने के लिए एक्टिव हुए थे और पटना से कोलकाता, लखनऊ से दिल्ली, भुवनेश्वर से चेन्नई तक एक कर दिया था.
इसे सिरे से खारिज भी नहीं किया जा सकता क्योंकि नीतीश की सक्रियता से पहले इस साल की शुरुआत में ही आरजेडी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह का एक बयान आया था. उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने का अपना लक्ष्य पाने के लिए उन्हें (नीतीश कुमार को) पूरे देश की यात्रा करनी होगी. जगदानंद सिंह ने तब ये भी दावा किया था कि लालू यादव ने नीतीश कुमार को आशीर्वाद दे दिया है, वे प्रधानमंत्री बनेंगे. उन्होंने लगे हाथ एचडी देवगौड़ा से लेकर इंद्र कुमार गुजराल तक के नाम गिनाकर ये तक दावा कर दिया था कि लालू में प्रधानमंत्री बनाने की क्षमता है.
खैर, जैसे भी हो, हुआ यही कि सुशासन बाबू सक्रिय हुए और पटना में 15 दलों के नेताओं को एक मंच पर लाने में सफल भी रहे. नेताओं को साथ बैठने के लिए मनाने से लेकर पटना में आयोजन तक, नीतीश कुमार ड्राइविंग सीट पर नजर आए. प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवारी से लेकर नए गठबंधन के संयोजक तक के लिए भी सुशासन बाबू के नाम की चर्चा होने लगी. 18 साल से लगातार बिहार जैसे जटिल सामाजिक संरचना वाले राज्य में बीजेपी और कांग्रेस दोनों धुर विरोधी पार्टियों के साथ गठबंधन कर सरकार चलाने तक, तमाम खूबियां गिनाई जाने लगीं लेकिन बेंगलुरु में हुई दूसरी बैठक के बाद तस्वीर बदल गई.
पटना की बैठक तक मेहमान के रोल में नजर आई कांग्रेस पार्टी बेंगलुरु की बैठक से मेजबान की भूमिका में आ गई. बेंगलुरु के बाद मुंबई की बैठक में भी मेजबान उद्धव थे लेकिन स्टीयरिंग कांग्रेस के ही हाथ में नजर आई. कांग्रेस की सक्रियता बढ़ी तो नीतीश शांत नजर आने लगे. प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गांधी से लेकर ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल के नाम भी उनकी पार्टियों के नेता बढ़ाने लगे. इन सबके शोर में नीतीश के नाम की गूंज कहीं गुम सी हो गई.
अब इस ठहरे हुए पानी में आरजेडी ने नीतीश की पीएम उम्मीदवारी का कंकड़ मार दिया है तो सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या आरजेडी का ये दांव कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन के अन्य घटक दलों को पचेगा? आम आदमी पार्टी के सबसे बड़े नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आरजेडी की ओर से नीतीश कुमार को पीएम के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार बताए जाने के कुछ ही घंटों बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस की.
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अरविंद केजरीवाल इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में नीतीश की उम्मीदवारी को लेकर सवाल पर सीधा जवाब देने से बचते नजर आए. उन्होंने कहा कि हम ऐसी व्यवस्था बनाना चाहते हैं जिसमें देश का हर नागरिक खुद को प्रधानमंत्री समझे. अब अगर नीतीश की पीएम उम्मीदवारी का कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे घटक दल समर्थन कर भी दें तो जेडीयू से अधिक सांसदों वाली ममता बनर्जी की टीएमसी और डीएमके जैसी पार्टियां इसे पचा पाएंगी, ऐसा मुश्किल लगता है.