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पटना की विपक्षी बैठक से क्या AAP के लिए राज्यसभा का नंबरगेम सेट हो पाएगा?

राज्यसभा में कांग्रेस की भूमिका को देखते हुए केजरीवाल अन्य पार्टियों के जरिए मुख्य विपक्षी दल पर दबाव बनाने की कोशिश में जुटे हैं और विपक्षी बैठक से पहले सभी दलों को पत्र लिखकर इस मुद्दे को एजेंडे में शामिल करने की मांग कर रहे हैं. क्योंकि केजरीवाल को पता है कि अगर कांग्रेस इस वोटिंग से दूर रहती है, तो राज्यसभा में उन्हें हार का सामना करना पड़ेगा.

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अरविंद केजरीवाल (फाइल फोटो)
अरविंद केजरीवाल (फाइल फोटो)

आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्षी दल की बैठक में शामिल होने के लिए आज पटना रवाना होंगे. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बुलाई गई विपक्षी दल की इस बैठक से पहले केजरीवाल ने अपना एजेंडा साफ कर दिया है. उन्होंने मांग की है कि दिल्ली सरकार के खिलाफ केंद्र के अध्यादेश को बैठक के मुख्य एजेंडे में शामिल किया जाए. 

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केजरीवाल ने पटना रवाना होने के एक दिन पहले यानी बुधवार को विपक्षी दलों को पत्र लिखकर केंद्र के अध्यादेश पर चर्चा की मांग की थी. दिल्ली में केजरीवाल सरकार बनाम उपराज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला दिया था. इसमें निर्वाचित सरकार को अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिया गया था. इसके बाद केंद्र सरकार 'राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण' बनाने का अध्यादेश लेकर आई है. इस अध्यादेश के आने के बाद से केजरीवाल देशभर में विपक्षी नेताओं से मुलाकात कर समर्थन मांग कर रहे हैं. 

इस अध्यादेश को कानून बनाने के लिए छह महीने में संसद से पास कराना जरूरी है. केंद्र सरकार बहुमत होने के चलते लोकसभा में इसे आसानी से पास करा लेगी. लेकिन केजरीवाल को उम्मीद है कि अगर राज्यसभा में विपक्षी पार्टियां साथ आ गईं तो नंबर गेम में बीजेपी को मात दी जा सकती है. 

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नंबर गेम में कांग्रेस की भूमिका सबसे अहम 

राज्यसभा में मौजूदा सांसदों की संख्या 238 है. बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को इनमें से 109 सांसदों का समर्थन प्राप्त है. वहीं, कांग्रेस सदन में सबसे बड़ी पार्टी है. कांग्रेस के पास 31 सांसद हैं. कांग्रेस ने अभी तक इस मुद्दे पर केजरीवाल के समर्थन करने का ऐलान नहीं किया है. इतना ही नहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने केजरीवाल को मिलने तक का समय नहीं दिया. 

राज्यसभा में कांग्रेस की भूमिका को देखते हुए केजरीवाल अन्य पार्टियों के जरिए मुख्य विपक्षी दल पर दबाव बनाने की कोशिश में जुटे हैं और विपक्षी बैठक से पहले सभी दलों को पत्र लिखकर इस मुद्दे को एजेंडे में शामिल करने की मांग कर रहे हैं. क्योंकि केजरीवाल को पता है कि अगर कांग्रेस इस वोटिंग से दूर रहती है, तो राज्यसभा में कुल संख्या घटकर 207 रह जाएगी और बिल को पास कराने के लिए 104 सांसदों की जरूरत होगी. ऐसे में एनडीए (109) आसानी से बिल को पास करा लेगी. 

क्या कांग्रेस के समर्थन से राज्यसभा में बीजेपी को मात दे पाएंगे केजरीवाल?
 
इसका जवाब है, नहीं. अब तक केजरीवाल को राज्यसभा के 70 सांसदों का समर्थन प्राप्त है. समर्थन देने वाले सांसदों में 10 आप के, 12 टीएमसी के, 10 डीएमके के , 7 बीआरएस के, 6 राजद के, 6 सीपीआई एम के, 5 जदयू के, 4 एनसीपी के, 3 उद्धव गुट के , 3 सपा के , 2 सीपीआई के , 2 जेएमएम के और कुछ अन्य पार्टियों के सांसद शामिल हैं. 

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ऐसे में अगर कांग्रेस समर्थन दे भी देती है, तो केजरीवाल को 100 सांसदों का समर्थन ही मिल पाएगा. हालांकि, बिल को रोकने के लिए यह आंकड़ा काफी नहीं है.  ऐसे में AAP को बिल के खिलाफ वोट करने के लिए बीजू जनता दल (BJD) या YSRCP में से किसी एक को मनाना होगा क्योंकि दोनों के पास राज्यसभा में 9-9 सांसद हैं. लेकिन अगर इनमें से एक दल भी वोटिंग से दूर हो जाता है या बिल पर एनडीए का समर्थन करता है तब भी केजरीवाल को हार का सामना करना पड़ेगा.  

राज्यसभा में अल्पमत के बावजूद बीजेपी महत्वपूर्ण विधेयकों पर कैसे जीत हासिल करने में कामयाब रही?

- जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक: यह बिल राज्यसभा में अगस्त 2019 को पास हुआ था. कई राजनीतिक पार्टियों ने इसका विरोध किया था. इसके बावजूद एनडीए एकतरफा बिल को पास कराने में सफल हुई थी. इस बिल के समर्थन में 125 वोट मिले थे, जबकि विरोध में 61 सांसदों ने वोट किया था. 

- CAA-NRC बिल:  जब ये बिल राज्यसभा में वोटिंग के लिए आया तो विपक्षी एकता चरम पर थी. इसके बावजूद बीजेपी 125 वोट हासिल करने में सफल रही, जबकि विपक्षी पार्टियां सिर्फ 105 वोट हासिल कर सकीं. तब शिवसेना ने राज्यसभा में वोटिंग से दूरी बना ली थी. 

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- कृषि कानून: जब तीन कृषि विधेयक राज्यसभा में विचार के लिए पेश किए गए तो एक बार फिर सभी विपक्षी दलों ने एकजुट होने की कोशिश की. ये विधेयक सितंबर 2020 में विचार के लिए आए, जब कोरोना अपने चरम पर था. सदन में हंगामे के बावजूद विधेयक ध्वनि मत से पारित हो गया था. 


कांग्रेस और आप का रिश्ता विपक्षी एकता में दिलचस्प क्यों?
 
विभिन्न राजनीतिक वजहों से आप और कांग्रेस के बीच रिश्ते तल्ख बने हुए हैं. नई राजनीतिक पार्टी की शुरुआत के बाद से अरविंद केजरीवाल लगातार कांग्रेस पर हमला बोलते रहे हैं और उन्होंने राजधानी दिल्ली से देश की सबसे पुरानी पार्टी का सफाया करते हुए सत्ता हासिल की. 

- तब केजरीवाल और उनकी पार्टी ने दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और उनके कैबिनेट सहयोगियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोप लगाए थे. इतना ही नहीं केजरीवाल मनमोहन सिंह की सरकार पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत कई कांग्रेसी नेताओं पर खुलकर निशाना साधते थे. 

- आप ने पहले दिल्ली से कांग्रेस का सफाया किया, फिर पंजाब से. ऐसे में दोनों राज्यों में कांग्रेस के स्थानीय नेता आप से गठबंधन का विरोध कर रहे हैं. कई कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि आप ने गोवा और गुजरात में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया और बीजेपी को सत्ता में आने में मदद की. वहीं, आम आदमी पार्टी का दावा है कि खराब शासन और कमजोर नेतृत्व के कारण कांग्रेस प्रासंगिकता खो रही है. 

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- अब लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और विपक्षी दल अधिकतम सीटों पर भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना चाह रहे हैं, ऐसे में आप और कांग्रेस का विवाद इसमें बड़ी खाई पैदा कर सकता है. इतना ही नहीं आप की नजर दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों और पंजाब की 13 सीटों पर है, जो कांग्रेस को बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है. इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी हरियाणा, गुजरात और गोवा में भी लोकसभा सीटें चाहती है. ऐसे में दोनों पार्टियों के बीच मनमुटाव विपक्ष की एकता में बड़ी समस्या पैदा कर सकता है. 


 

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