मोदी सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में जातियों को शामिल करने की शक्ति राज्यों को देने वाला संविधान संशोधन बिल सोमवार को लोकसभा में पेश किया गया है, जिसके पक्ष में विपक्षी भी हैं. संसद के दोनों सदनों से आसानी से पास होने और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश अपनी जरूरतों के हिसाब से ओबीसी की लिस्ट तैयार कर सकेंगे. ऐसे में महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल और हरियाणा में जाट समुदाय के आरक्षण का रास्ता आसान हो गया है, लेकिन इस राह में सबसे बड़ा रोड़ा 50 फीसदी आरक्षण की सीमा है.
बता दें कि मराठा आरक्षण मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 5 मई को एक आदेश दिया था. इस आदेश में कहा गया कि राज्यों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों को नौकरी और एडमिशन में आरक्षण देने का अधिकार नहीं है. इसके लिए जजों ने संविधान के 102वें संशोधन का हवाला दिया. इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठों को ओबीसी में शामिल कर आरक्षण देने के फैसले पर भी रोक लगा दी थी.
उठने लगीं मराठा और जाट आरक्षण की मांग
सर्वोच्च अदालत के इस फैसले के बाद एक नया विवाद खड़ा हो गया था, क्योंकि मौजूदा समय में ओबीसी की केंद्र और राज्यों की सूची अलग-अलग है. ऐसे में मोदी सरकार ने संसोधन बिल लेकर आई है. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने 127वां संविधान संशोधन बिल पेश किया है, जिस पर लोकसभा में चर्चा हो रही है. इसी के साथ मराठा और जाट आरक्षण की मांग भी उठने लगी है.
ओबीसी संविधान संशोधन बिल के पास होने के बाद एक बार फिर राज्यों को पिछड़ी जातियों की लिस्टिंग का अधिकार मिल जाएगा. संविधान के आर्टिकल 342ए में संशोधन किया गया है इसके साथ ही आर्टिकल 338बी और 366 में भी संशोधन हुए हैं. इस बिल के पास होते ही राज्य सरकारें अपने राज्य के हिसाब से अलग-अलग जातियों को ओबीसी कोटे में डाल सकेंगी, लेकिन आरक्षण की सीमा 50 फीसदी ही होगी.
हरियाणा में जाट, राजस्थान में गुर्जर, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल, कर्नाटक में लिंगायत आरक्षण का रास्ता साफ हो सकता है. ये जातियां लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रही हैं, लेकिन उनकी राह में सबसे बड़ी बाधा इंदिरा साहनी का केस है. इंदिरा साहनी केस के चलते 50 फीसदी की सीमा के बाहर जाकर आरक्षण दिया जाता है तो सुप्रीम कोर्ट उस पर रोक लगा सकता है. इसी वजह से कई राज्य इस सीमा को खत्म करने की मांग कर रहे हैं.
विपक्ष ने किया ओबीसी संविधान संशोधन बिल का समर्थन
कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि हम इस बिल का समर्थन करते हैं और इसके साथ ही हम मांग करते हैं कि 50 फीसदी की बाध्यता पर कुछ किया जाए. कुछ प्रदेशों में इससे भी ज्यादा है. तमिलनाडु में 69 फीसदी आरक्षण है. इसी तरह बाकी राज्यों को भी कानूनी तौर पर ये ताकत दी जाए कि वो आरक्षण को 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ा सकें. साथ ही चौधरी ने लोकसभा में मराठा आरक्षण पर भी अपनी बात रखी और बताया कि इस समाज की मांग काफी लंबी है. कांग्रेस ने सरकार से मराठा लोगों की मांगों को ध्यान में रखने की मांग भी की है.
हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल जब भी आरक्षण मांगते तो सुप्रीम कोर्ट का इंदिरा साहनी का फैसला आड़े आ जाता है. ऐसे में मोदी सरकार ने भले ही राज्यों को ओबीसी लिस्ट बनाने का आधिकार दे दिया हो, लेकिन आरक्षण के दायरे के बढ़ाए बिना देना राज्य सरकारों के लिए अपने-अपने राज्यों में दूसरी जातियों को ओबीसी में शामिल कर उन्हें आरक्षण देना आसान नहीं है.
गुजरात में अगर पटेलों को आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार उन्हें ओबीसी में शामिल करती हैं तो पहले से उस फेहरिश्त में शामिल ओबीसी जातियां नाराज हो सकती है. ऐसे ही हरियाणा में जाट आरक्षण को लेकर है, उन्हें अगर ओबीसी की लिस्ट में शामिल किया जाता है तो दूसरी सैनी, गुर्जर जैसी जातियों के नाराजगी बढ़ सकती है. इसी तरह से महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को लेकर है. इसीलिए 50 फीसदी के आरक्षण को दायरे को बढ़ाने की मांग हो रही है. लोकसभा में DMK सांसद टी.आर बालू ने संविधान संशोधन बिल का समर्थन करते हुए कहा कि आरक्षण में 50 फीसदी की बाध्यता भी खत्म होनी चाहिए.
हरियाणा में जाट, गुजरात के पटेल, कर्नाटक के लिंगायत और महाराष्ट्र के मराठा समुदाय. ये सभी अपने-अपने राज्य में निर्णायक भूमिका में हैं. इसलिए राजनीतिक पार्टियां इन जातियों को साधने की तरह-तरह की कोशिश करती रहती हैं और आरक्षण भी उसमें से एक है. लंबे समय से यह जातियां अपने-अपने राज्यों में आरक्षण की मांग कर रही हैं, जिन्हें वहां की राज्य सरकार किसी भी सूरत में नाराज नहीं करना चाहती है.
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को फडणवीस सरकार ने साधने के लिए उनके आरक्षण की मांग स्वीकार कर लिया था, लेकिन उन्हें ओबीसी की कैटगिरी से बाहर आरक्षण दिया गया था. वहीं, हरियाणा में जाट समुदाय और गुजरात में पटेल समुदाय के ओबीसी में शामिल करने का राज्य सरकार बड़ा दांव चल सकती है, लेकिन ओबीसी की दूसरी जातियों को साधकर रखना एक बड़ी चुनौती होगी.