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ममता की 'सादगी' वाली राजनीति को चोट ना पहुंचा जाएं पार्थ चटर्जी!

पार्थ चटर्जी के शिक्षा घोटाले में फंसने के बाद से सीएम ममता बनर्जी की सादगी वाली छवि पर भी इसका असर पड़ा है. जिस राजनीति ने ममता को तीन बार में सत्ता में बैठाया है, पार्थ चटर्जी का इस घोटाले में फंसना उसको सीधी चुनौती देता है.

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सीएम ममता बनर्जी (पीटीआई)
सीएम ममता बनर्जी (पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • ममता की जमीन से जुड़ी नेता की पहचान
  • मां माटी और मानुष का नारा देकर लोकप्रिय बनीं

तृणमूल कांग्रेस के लिए... मां माटी मानुष का नारा देने वाली ममता बनर्जी हमेशा सादगी की ब्रैंड अंबैसेडर बनी रही हैं. सूती साड़ी.. हवाई चप्पल.. साधारण रहन सहन.. छोटा घर.. छोटी कार. ये सब वो प्रतीक हैं.. जिनका इस्तेमाल ममता बनर्जी करती रही हैं. हमेशा से TMC सुप्रीमो ममता बनर्जी को Simple Living And High Thinking फिलॉसफी पर चलने वाली नेता के तौर पर देखा है. उनके Look से लेकर..उनके व्यवहार और उनके रहन सहन में इसकी झलक दिखती है.

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साधारण सूती साड़ी, पैरों में हवाई चप्पलें, आखों पर चश्मा लगाकर आम आदमी की तरह तेज़ कदमों से जब भी वो पदयात्रा करने निकलती हैं, तो उनके पीछे हजारों की भीड़ होती है. 2021 में चुनाव आयोग को दिए दिए अपने शपथ पत्र में उन्होंने बताया था उनके पास अपना कोई मकान तक नहीं. वो अक्सर  छोटी कार में सफर करती नजर आती हैं. 

लेकिन उनकी पार्टी के नेता...शाही जीवन जीते हैं. पार्थ चटर्जी एक बड़ा उदाहरण है. ED की छापेमारी में जो कुछ भी मिल रहा है, उसका संबध पार्थ चटर्जी से है. पार्थ चटर्जी के करीबी अर्पिता ने भी ED को यही बताया है कि जो भी पैसा मिला है, वो पार्थ चटर्जी का है. दो छापों में अब तक 55 करोड़ रुपये कैश और सोने का भंडार मिल चुका है. इतना पैसा एक बार में किसी आम आदमी ने कभी नहीं देखा होगा. 

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23 जुलाई को पहली छापेमारी हुई थी...उसके बाद से ED, ममता के मंत्री का काला धन गिन रही है..और बीजेपी ममता से गिन गिनकर सवाल पूछ रही है. ममता पर राजनीतिक और नैतिक दबाव इतना बढ़ गया....कि पार्थ चटर्जी को मंत्री पद से हटाना पड़ा.. क्योंकि ये मामला इतना बड़ा हो गया कि ममता के लिए कार्रवाई करना जरूरी था.. लेकिन इसके लिए भी ममता बनर्जी ने दूसरे छापे का इंतज़ार किया.. ये फैसला पहला छापा पड़ने के बाद भी लिया जा सकता था.

ED की छापेमारी में अपने मंत्री के फंसने के बाद...ममता शांत थीं. उनकी चुप्पी....विपक्षी दलों को चुभ रही थी और बंगाल की जनता को परेशान कर रही थी. पहली छापेमारी में जब 21 करोड़ रुपये मिले तो ममता बनर्जी की सरकार के माथे पर शिकन नहीं आई,...लेकिन दूसरी छापेमारी के बाद काले धन की मात्रा 50 करोड़ से ज्यादा हो गई तो ममता ने एक्शन ले लिया. अब सवाल ये है कि ममता बनर्जी भ्रष्टचार के आरोपी मंत्री पर कार्रवाई से क्यों बच रही थीं? बीजेपी इसी मुद्दे पर ममता सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रही है. 

ममता ने भले ही पार्थ चटर्जी से मंत्री पद छीन लिया हो, लेकिन उनकी पार्टी और सरकार मानती है....कि ये पैसा आर्पिता मुखर्जी के घर से बरामद हुआ तो उसका है...लेकिन बीजेपी को ऐसा नहीं लगता. पश्चिम बंगाल में बीजेपी को एक बड़ा मौका मिला है, जब वो टीएमसी को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेर सकती है...और इसीलिए बीजेपी कार्यकर्ताओं ने कोलकाता में ममता सरकार के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन किया.

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आजतक ब्यूरो

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