देशभर में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में चल रही मध्याह्न भोजन योजना (मिड-डे-मील) का नाम बदलकर अब 'पीएम पोषण' योजना कर दिया गया है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई एक कैबिनेट बैठक में इसे लेकर अपनी मंजूरी दी है. केंद्र सरकार अगले पांच साल में इस योजना पर 1.31 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी, जिससे 11.5 लाख सरकारी और सह-सरकारी स्कूलों के करीब 11.80 करोड़ बच्चों को सीधा लाभ मिलेगा. ऐसे में जानिए मिड-डे-मील योजना से कितनी अलग है नई पीएम पोषण योजना?
पोषण योजना पर खर्च करेंगे केंद्र-राज्य
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के मुताबिक पीएम पोषण योजना को पांच सालों यानी 2021-22 से 2025-26 तक के लिए लागू किया है, जिस पर 11.31 लाख करोड़ रुपये खर्च आएगा. केंद्र सरकार 54061.73 करोड़ रुपये का खर्च करेगी जबकि राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन 31,733.17 करोड़ रुपये प्रदान करेंगे. इसके अलावा केंद्र खाद्यान्न पर लगभग 45,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च वहन करेगा.
मिड-डे-मील से क्या अलग होगा
मिड-डे-मील योजना 1995 में शुरू की गई थी, जिसका लक्ष्य प्राथमिक स्कूल के छात्रों को कम से कम एक बार पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना था. इसके तहत अभी तक सरकारी और सह-सरकारी स्कूलों में कक्षा एक से लेकर कक्षा 8 तक के छात्रों का दोपहर में गर्म भोजन दिया जाता था. लेकिन, अब 'पीएम पोषण' योजना के तहत बाल वाटिका (प्री-स्कूल) यानि नर्सरी से लेकर प्राथमिक विद्यालय कक्षा आठ के स्तर के विद्यार्थियों को कवर किया जाएगा.
त्योहारों पर तिथि भोजन
पीएम पोषण योजना में तिथि भोजन की अवधारणा को व्यापक रूप से बढ़ावा दिया जाएगा. तिथि भोजन एक सामुदायिक भागीदारी कार्यक्रम है, जिसमें लोग विशेष अवसरों/त्योहारों पर बच्चों को विशेष भोजन प्रदान करते हैं. उदाहरण के तौर पर किसी त्योहार या विशेष तिथि यानि 15 अगस्त, 26 जनवरी या फिर दूसरे किसी मौके पर किसी व्यक्ति द्वारा स्कूल में आकर बच्चों विशेष भोजना कराने की छूट दी गई, लेकिन अभी तक स्कूल में सिर्फ मिड-डे-मील के तहत बनने वाले भोजन मिलता रहा है.
स्वयं-सहयता समूहों को मिलेगा बढ़ावा
शिक्षा मंत्री ने बताया कि पोषण योजना के कार्यान्वयन में किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) और महिला स्वयं-सहायता समूहों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाएगा. स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय रूप से उगाए जाने वाले पारंपरिक खाद्य पदार्थों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा. वहीं, मिड-डे-मील के तहत स्कूल के प्राध्यापक बाजार से खरीदारी करते थे, लेकिन अब उन्हें स्वयं सहयता समूहों और किसान संगठन से ही खरीदने पर जोर होगा.
नई योजना के तहत अगर राज्य अपनी स्थानीय सब्जी या कोई अन्य पौष्टिक भोजन या दूध या फल जैसी कोई चीज शामिल करना चाहते हैं तो वे केंद्र की मंजूरी से ऐसा कर सकते हैं. यह आवंटित बजट में होना चाहिए. इससे पहले, राज्यों को कोई अतिरिक्त वस्तु मिड-डे-मील में शामिल करने पर लागत खुद वहन करनी पड़ती थी. इसीलिए देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह के भोजन मिल रहे थे.
मिड-डे-मील का सिर्फ नाम बदला गया
आईआईटी दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर और अर्थशास्त्री रीतिका खेड़ा ने आजतक से बातचीत करते हुए कहा कि मोदी सरकार ने मिड-डे-मील का सिर्फ नाम बदलकर अब उसे पीएम पोषण स्कीम कर दिया है, लेकिन बच्चों का पोषण बेहतर हो इसके लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है. नई शिक्षा नीति के तहत आंगनबाड़ी स्कूलों को अब समाज कल्याण मंत्रालय से शिक्षा मंत्रालय में ला रहे हैं. यही वजह है कि पोषण योजना में प्री-प्राइमरी के छात्रों का शामिल किया जबकि आंगनबाड़ी के तहत तो उन्हें पहले से भोजन मिल रहा था. इसमें सरकार नया क्या कर रही है?
पांच रुपये में कौन सा पोषण देगी सरकार
वह कहती हैं कि 2014 के बाद से मिड-डे-मील का बजट सरकार कम करती जा रही है जबकि देश में महंगाई लगातार बढ़ रही हैं. ऐसे में खाद्यान के अतरिक्त यानि गेहूं और चावल के अलावा यूपी में देखें तो प्राइमरी के कक्षा एक से पांच तक पढ़ने वाले एक बच्चे के लिए भोजन पर 4 रुपये 97 पैसे देती है और जूनियर के कक्षा से 8 तक के पढ़ने वाले एक बच्चे के लिए 7 रुपये 45 पैसे देती है. इतने कम पैसे में आप बच्चों को कौन सा पोषण खाना दे पाएंगे. सरकार ने सिर्फ पोषण नाम रखा है पर पोषण भोजन देने को तैयार नहीं है. वो कहती है कि अलग-अलग राज्य में ऐसे ही बजट का प्रावधान है.
रीतिका कहती हैं कि सरकार ने तिथि भोजन शामिल किया है. सरकारी स्कूलों ज्यादातर गांव में है, जहां लोग पहले से ही अपने घर के खर्च चलाने में दिक्कतों का सामना कर रहे हैं. ऐसे में कौन स्कूल भोजन कराने आएगा. सरकार को खुद इसके लिए अपने पास बजट रखना चाहिए ताकि त्योहारों पर उन्हें बेहतर भोजन मिल सके.
तमिलनाडु-ओडिशा जैसे राज्य भोजन के साथ अंडा देते हैं
रीतिका खेड़ा कहती हैं कि मिड-डे-मील के तहत तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, ओडिशा, बंगाल और झारखंड जैसे राज्य अपने यहां बच्चों को ठीक-ठीक भोजन दे रहे हैं. यहां सप्ताह में कोई दो तो कोई तीन से चार दिन बच्चों को भोजन के साथ अंडे देते हैं और पौष्टिक आहार दिया जा रहा है, लेकिन यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इस तरह की सुविधा नहीं मिल रही है. हम लोग लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि बच्चों को पौष्टिक भोजन के लिए अंडे, काले चने, हरी सब्जियों और दूध को शामिल किया जाए. यूपी में सप्ताह में एक दिन एक फल के नाम पर सिर्फ केला और एक दिन 150 मिली. दूध दिया जाता है. इससे कैसे बच्चों को बेहतर पोषण हो सकेगा?
बता दें कि पोषण योजना के तहत केंद्र ने राज्य सरकारों से आग्रह किया गया है कि रसोइयों, खाना पकाने वाले सहायकों का मानदेय प्रत्यक्ष नकद अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से दिया जाए . इसके अलावा स्कूलों को भी डीबीटी के माध्यम से राशि उपलब्ध कराए जाए. हालांकि, अभी भी रसोइयों और स्कूल को उसके खाते में कई राज्य सरकार सीधे पैसे भेजती है. सरकार बच्चों को प्रकृति और बागवानी के साथ प्रत्यक्ष अनुभव के लिए स्कूलों में पोषण उद्यानों के विकास को बढ़ावा दे रही है. इन बगीचों की फसल का उपयोग भोजन में अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करने के लिए किया जाता है, लेकिन यह स्कूलों में सफल नहीं हो पा रहा है.