लोकसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाला सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) एक्टिव मोड में आ गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमान संभाल ली है. पीएम मोदी एनडीए के सांसदों से मुलाकात का सिलसिला आज शुरू करेंगे. पीएम मोदी सांसदों का रिपोर्ट कार्ड देखेंगे. पीएम से मुलाकात के लिए एनडीए के 338 सांसदों को क्षेत्र के हिसाब से 10 समूह में बांटा गया है.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसदों से उनके क्षेत्र में विकास कार्यों की स्थिति के साथ ही समस्याओं के संबंध में भी जानकारी लेंगे. पीएम की सांसदों के साथ बैठक के दौरान बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के भी मौजूद रहने की बात कही जा रही है. इन बैठकों के लिए कोऑर्डिनेशन की जिम्मेदारी बीजेपी महासचिव अरुण चुघ और राष्ट्रीय सचिव ऋतुराज सिन्हा को दी गई है.
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ऐसे समय में जब बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है, सांसदों के साथ पीएम मोदी की इस बैठक को टिकट के लिए स्क्रीनिंग और परफॉर्मेंस अप्रेजल की तरह देखा जा रहा है. सांसदों को ये बताना होगा कि अपने कार्यकाल में उन्होंने क्या काम कराए हैं और मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने पर महासंपर्क अभियान में उनकी भूमिका क्या रही?
एनडीए सांसदों के साथ पीएम मोदी की मुलाकात के पीछे बीजेपी का प्लान क्या है? पार्टी ने सांसदों को अलग-अलग समूह में बांटने के लिए क्षेत्र के हिसाब से बांटने का फॉर्मूला क्यों चुना? इस पर राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि चुनाव में बीजेपी का फोकस माइक्रो प्लान पर होता है. क्षेत्र के हिसाब से सांसदों को बुलाया जाना भी माइक्रो प्लान का हिस्सा है.
पीएम की बैठक के पीछे रणनीति क्या
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एनडीए के सांसदों की बैठक के पीछे क्या रणनीति है? इसे लेकर राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि तीन बाते हैं. एक- उम्मीदवार चयन और दूसरा जमीनी फीडबैक. तीसरी बात है कि जब विपक्ष एक्टिव है तब ये मैसेज न जाए कि सत्तापक्ष कुछ नहीं कर रहा. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अलग-अलग प्रदेशों के नेताओं के साथ बैठक कर चुके हैं. यूपी में अखिलेश यादव भी चुनावी मोड में हैं. ऐसे में बीजेपी ने भी अपने सबसे बड़े चेहरे को अब मैदान में आगे कर दिया है.
पीएम मोदी, जेपी नड्डा और राजनाथ के साथ सांसदों की बैठक के जरिए बीजेपी की रणनीति ये जानने की है कि जमीनी हकीकत क्या है? सांसद ने धरातल पर कितना काम किया है और जनता के बीच उनकी पैठ कितनी है. बीजेपी इसके जरिए सांसदों की स्थिति और जीत की संभावनाओं को आंकना चाहती है. एनडीए के सभी सांसदों से अपने कामकाज की रिपोर्ट तैयार करने के लिए भी कहा गया है.
दोबारा टिकट के लिए स्क्रीनिंग की तरह
एनडीए की इस कवायद को टिकट बंटवारे की प्रक्रिया से जोड़कर भी देखा जा रहा है. एंटी इनकम्बेंसी से निपटने के लिए बीजेपी हर चुनाव में अपने कुछ सीटिंग विधायकों और सांसदों के टिकट काटने का फॉर्मूला इस्तेमाल करती रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एक तिहाई से अधिक सांसदों के टिकट काट दिए थे. नतीजा ये रहा कि पार्टी 2014 से भी अधिक सीटें जीतकर दोबारा सत्ता में लौटी.
2019 चुनाव से अलग है तस्वीर
अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने बचे हैं. बीजेपी भी समझ रही है कि 2024 के चुनाव में तस्वीर 2019 से अलग है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार 10 साल पूरे करने के बाद चुनाव मैदान में उतर रही होगी. वहीं, विपक्ष भी एकजुट होकर चुनाव लड़ने की कवायद में है. विपक्षी दलों ने गठबंधन की नींव भी रख दी है. इन सबके बीच चुनाव जीतने के पीएम मोदी की लोकप्रियता के साथ विकास कार्यों का तड़का लग जाए तो जीत सुनिश्चित की जा सकती है. दूसरी तरफ विपक्षी दलों की कोशिश है कि चुनाव को पीएम मोदी के चेहरे की बजाय महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर लाया जाए.
अमिताभ तिवारी ने कहा कि बीजेपी के पास कई राज्यों में लंबे समय तक सरकार चलाने का अनुभव है. गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बीजेपी लगातार तीन या तीन से अधिक बार सरकार बना चुकी है. गुजरात में तो सरकार की कमान खुद नरेंद्र मोदी ही संभाल चुके हैं. ऐसे में वे अच्छी तरह से जानते हैं कि लगातार दो बार जीतने के बाद जो एंटी इनकम्बेंसी उत्पन्न होती है, उसकी काट किस तरह से की जाती है.