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स्पेशल सेशन, महिला आरक्षण बिल... मोदी सरकार ने एक दांव से कैसे निकाल दी विपक्षी रणनीति की हवा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने संसद का स्पेशल सेशन बुलाया और फिर संसद में महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया. मॉनसून सत्र के दौरान विपक्ष के व्यूह में घिरी नजर आई सरकार ने एक दांव से कैसे विमर्श की दिशा ही पूरी तरह से मोड़ दी?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटोः पीटीआई)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटोः पीटीआई)

संसद के मॉनसून सत्र के दौरान केंद्र सरकार मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर घिरी रही थी. विपक्ष फ्रंटफुट पर था. विपक्ष अडानी मुद्दे पर जेपीसी से लेकर मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर विस्तृत चर्चा की मांग पर अड़ा था. मोदी सरकार को अविश्वास प्रस्ताव का भी सामना करना पड़ा. मॉनसून सत्र बीत गया लेकिन विपक्ष ने मणिपुर से लेकर महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाकर सरकार का घेराव जारी रखा. एक सीट पर एक उम्मीदवार की बात होने लगी, कांग्रेस समेत 28 विपक्षी पार्टियां इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस यानी इंडिया गठबंधन के बैनर तले एक मंच पर आ गईं.

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गठबंधन और समीकरणों के दांव-पेच के बीच ये चर्चा भी होने लगी कि विपक्ष के व्यूह में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) फंस गई है. 2024 के चुनाव में क्या होगा? बीजेपी के नेतृत्व वाले सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए चुनावी राह कितनी आसान, कितनी मुश्किल होगी? इसे लेकर भी बात होने लगी. तमाम गुणा-गणित, अनुमान-अध्ययन के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाने का ऐलान कर दिया. संसद के विशेष सत्र में सरकार ने महिला आरक्षण से संबंधित नारी शक्ति वंदन अधिनियम पेश कर विमर्श की दिशा ही पूरी तरह मोड़ दी.

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मणिपुर हिंसा से लेकर तमाम मुद्दे महिला आरक्षण बिल के शोर में गुम से हो गए और मोदी सरकार एक दांव से पूरी चर्चा अपने साइलेंट वोटर पर केंद्रित करने में सफल रही है. मोदी सरकार ने एक दांव से विपक्ष को ऐसे उलझाया कि कांग्रेस जैसी धुर विरोधी पार्टी भी इस बिल को अपना बता रही है, क्रेडिट वार में कूद पड़ी है. कांग्रेस का अध्यक्ष रहते हुए सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी तक महिला आरक्षण से जुड़ा बिल लाने के लिए सरकार को पत्र लिखते रहे हैं. संसद के विशेष सत्र के पहले दिन विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी महिला आरक्षण बिल पेश करने की मांग की थी.

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ट्रिपल तलाक के बाद एक और मास्टर स्ट्रोक

साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी मोदी सरकार ने बड़ा दांव चला था. तमाम राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों के विरोध के बावजूद सरकार 2018 में ट्रिपल तलाक के खिलाफ बिल सदन में लाई थी. संसद के दोनों सदनों से ये बिल पारित होने के बाद विपक्षी पार्टियों की मांग पर प्रवर समिति को भेजना पड़ा था लेकिन ये दांव काम कर गया. बीजेपी को कई मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में विरोधी पार्टियों से अधिक वोट मिले थे.

उत्तर प्रदेश की बुलंदशहर लोकसभा सीट से तब बसपा के उम्मीदवार रहे योगेश वर्मा ने तो इसे लेकर बाकायदा शिकायत करने की भी बात कही थी. विपक्षी पार्टियों ने तब ईवीएम को लेकर भी सवाल उठाए थे. तमाम आरोप और दावों के बीच मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में बीजेपी को मिले वोट के लिए सरकार के मास्टर स्ट्रोक ट्रिपल तलाक बिल को भी क्रेडिट दी गई. ऐसा कहा गया कि मुस्लिम महिलाओं ने साइलेंट रहकर बीजेपी के पक्ष में मतदान किया.

बीजेपी का फोकस महिलाओं पर क्यों

बीजेपी का फोकस आखिर महिला मतदाताओं पर ही क्यों है? ये सवाल भी उठ रहे हैं. इसका जवाब जानने के लिए 2019 के आम चुनाव और इसके बाद हुए चुनावों के वोटिंग पैटर्न पर नजर डालनी होगी. 2019 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया था. सर्वे रिपोर्ट्स के मुताबिक महिला मतदाताओं में सबसे अधिक समर्थन बीजेपी को मिला था. इसके पीछे उज्ज्वला, हर घर शौचालय जैसी योजनाओं के साथ ही राशन कार्ड पर परिवार की मुखिया के रूप में महिलाओं को शामिल करने के फैसलों को वजह बताया गया.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के यूपी चुनाव में जीत के लिए खास तौर पर महिला मतदाताओं को श्रेय दिया था. पीएम का ये बयान एक तरह से इस बात का संकेत था कि बीजेपी का फोकस जाति-वर्ग-धर्म की भावना से ऊपर उठकर महिलाओं का एक अलग वोट बैंक खड़ा करने पर है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान समेत पांच राज्यों के चुनाव करीब हैं. ऐसे में मोदी सरकार की रणनीति अब महिला आरक्षण विधेयक के जरिए बीजेपी के इस साइलेंट वोट बैंक को और मजबूत करने की है.

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