'ईशा फाउंडेशन' के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने 'इंडिया टुडे कॉन्क्लेव साउथ 2021' कार्यक्रम में मंदिरों के संरक्षण, कोरोना महामारी, चुनाव प्रणाली और विपक्ष की भूमिका समेत तमाम विषयों पर अपनी राय रखी. आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जाने के विचार का समर्थन किया. सद्गुरु ने कहा कि जब देश में पूरे साल चुनाव हो रहे हों तो फिर आडंबर की ही उम्मीद की जा सकती है, तर्क की नहीं.
सद्गुरु ने कहा, मुझे खुशी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विषय को उठाया. भारत में पांच साल में एक बार लोकसभा चुनाव होने चाहिए और उसके ढाई साल बाद पूरे देश में एक साथ विधानसभा चुनाव कराए जाने चाहिए. इससे राजनीतिक दलों को खुद को साबित करने के दो मौके मिल जाएंगे. अगर पूरे साल ही देश में चुनाव होते रहेंगे तो फिर आप तार्किक दृष्टिकोण की उम्मीद नहीं कर सकते हैं. सद्गुरु ने कहा कि भारत में चुनाव का समय पूरी तरह से अर्थहीन बातों और घटनाक्रमों का वक्त बन चुका है.
चुनाव कैंपेन के लिए मिले सिर्फ 90 दिनों का वक्त
सद्गुरु ने ये भी कहा कि चुनाव आयोग को और मजबूत बनाया जाना चाहिए और चुनाव के कैंपेन के लिए 90 दिनों का वक्त तय कर देना चाहिए. उन्होंने कहा, 'आपने देखा होगा कि चुनाव से ठीक सालभर पहले ही लोग इलेक्शन के मूड में आ जाते हैं. लोग हर वक्त कैंपेनिंग करते रहते हैं. दो राज्यों में चुनाव हैं और मीडिया 24 घंटे उनसे जुड़ी खबरें ऐसे दिखाता है जैसे चुनाव देशभर में हैं. लोगों पर इसका क्या असर पड़ेगा. इसके लिए भी समय सुनिश्चित करना चाहिए, क्योंकि मैंने अमेरिका में ऐसा देखा है. इलेक्शन से तीन या चार महीने पहले ही उस पर चर्चा होनी चाहिए. इलेक्शन कमीशन को भी इस ओर कड़े कदम उठाने चाहिए.'
विपक्षी दलों और आंदोलन को लेकर बोले सद्गुरु
सद्गुरु से सवाल किया गया कि क्या भारत में विपक्ष को चुनाव में हार के बाद और ज्यादा सकारात्मक भूमिका में आने की जरूरत है? सद्गुरु ने कहा, ये संवैधानिक प्रक्रिया है कि आप चुनाव जीतते हैं तो आपको कानून बनाने की शक्ति मिलती है. जो चुनाव नहीं जीत पाते हैं, वो सड़कों पर आकर अपने नुकसान की भरपाई करने की कोशिश करते हैं. अब, कोई भी आसानी से 10,000-20,000 लोगों को सड़कों पर ला सकता है और लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. लेकिन ये राजनीति नहीं है, ये अराजकता है. जब आप इस तरह की चीजों को प्रोत्साहित करते हैं तो ये दिखाता है कि आपको विकास और लोगों की भलाई में कोई दिलचस्पी नहीं है.
"Unfortunately, we think this (violent protests, arson) is politics. This is not politics, this is anarchy. Once you encourage this, it clearly shows you're not interested in well being of people": @SadhguruJV at #ConclaveSouth21#Sadhguru #AssemblyElections #India #Politics pic.twitter.com/MepPxL7EiF
— IndiaToday (@IndiaToday) March 13, 2021
सद्गुरु ने कहा, जब मैं टीवी पर देखता हूं कि मोटरसायकल जलाई जा रही हैं तो मुझे लगता है कि किसी ने अपनी मेहनत की कमाई से गाड़ी खरीदी होगी. उसके नुकसान की भरपाई कौन करेगा? सद्गुरु ने कहा, हर समस्या का समाधान संविधान और कानून के तहत होना चाहिए. अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो फिर हमें एक सफल राष्ट्र होने का सपना देखना छोड़ देना चाहिए.
पॉलिटिकल पार्टी मेंबरशिप पर हो बैन
सद्गुरु ने राजनीतिक दलों की सदस्यता को लेकर कैंपेन चलाने पर बैन लगाने की भी बात कही. उन्होंने कहा, मैं अक्सर लोगों से कुछ बातें कहता हूं, जिन्हें लेकर मेरा कई बार विरोध हो चुका है. हमें पॉलिटिकल पार्टी की मेंबरशिप को बैन कर देना चाहिए. यहां किसी तरह की मेंबरशिप होनी ही नहीं चाहिए. क्योंकि किसी पार्टी की मेंबरशिप एक समय के बाद धार्मिकता में तब्दील हो जाती है. किसी पार्टी के मेंबरशिप आपको उद्देश्यों से भटका देती है और आप उम्मीदवारों का मूल्यांकन करने की बजाए मेंबरशिप के आधार पर वोट देने लगते हैं.
सद्गुरु ने कहा, आपको सीक्रेट बैलेट की क्या जरूरत है जब आपने पहले से ही सोच लिया है कि आप किस पार्टी को वोट करेंगे. सद्गुरु ने कहा कि हर पार्टी में सिर्फ 10,000-15,000 लोगों को सदस्यता देने की ही अनुमति होनी चाहिए. हमें ये बदलाव जरूर करना चाहिए.
'अब चुनाव से पहले हर कोई मंदिर जाना चाहता है'
चुनाव से पहले राजनेताओं के मंदिर जाने पर सद्गुरु ने कहा, 'चुनाव के समय राजनेता मंदिर, मस्जिद, इफ्तार पार्टी, चर्च और क्रिसमस पार्टी में शिरकत करते हैं. ये एक बड़े वोट बैंक को टारगेट करने की तरकीब है. क्रिसमस पार्टी में लोगों के लिए शराब होती थी. इफ्तार पार्टी में बिरयानी होती थी, लेकिन मंदिरों में सिर्फ पानी मिलता था. ये कोई साधारण बात नहीं है. मंदिरों में मिलने वाला पानी पिछले 5-6 सालों में ज्यादा पूजनीय हो गया है. अब चुनाव से पहले हर कोई मंदिर जाना चाहता है.'
सद्गुरु ने कहा, हालांकि, यहां इफ्तार का इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है. क्रिसमस पार्टी का क्रिश्चियनिटी से कोई लेना-देना नहीं है. एक राजनेता का मंदिर जाने के पीछे उद्देश्य सिर्फ वोटों की संख्या बढ़ाना है. इसे आध्यात्मिक राजनीति कहना सही नहीं है. ये सिर्फ राजनीति है. नेता भविष्य में क्या काम करेंगे? वे इस पर बात करने की बजाए ये बताने का प्रयास कर रहे हैं कि वो कौन हैं. इसमें बदलाव लाना बहुत जरूरी है.
सद्गुरु ने कहा कि अब धर्म और जाति की राजनीति के बजाय लोगों को काम को लेकर सवाल करने चाहिए. सद्गुरु ने कहा, आप कौन हैं, मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है. आप क्या करोगे? मेरे लिए ये सवाल ज्यादा मायने रखता है. देश के हर नागरिक को ये सवाल पूछना चाहिए. उन्हें कहना चाहिए कि मैं आपको वोट दूंगा, लेकिन अगले 5 साल में आप क्या काम करोगे? आप महिला हैं, पुरुष हैं, क्रिश्चियन हैं या हिंदू हैं, मुझे इससे कोई मतलब नहीं है. आप हमारे लिए अगले 5 साल में क्या करेंगे? सिर्फ इसका जवाब दीजिए.
क्यों सवाल करना है जरूरी?
सद्गुरु ने कहा, 'देश के हर नागरिक और मीडिया संस्थानों को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए ये सवाल पूछने चाहिए. मंदिरों में जाकर राजनेता सिर्फ ये बताना चाहते हैं कि आखिर वे कौन हैं. वो क्या काम करेंगे, इसका कोई जिक्र ही नहीं है. अगर लोग जाति, धर्म और मंदिरों के नाम पर वोट करेंगे तो ये लोकतंत्र के नाम पर सामंतवाद के लिए वोटिंग होगी.'
सद्गुरु ने कहा कि राजनीति में अब पर्सनैलिटी कल्ट या हीरो के उभरने वाला जमाना चला गया है क्योंकि युवा अब खुद हीरो बनना चाहते हैं. राजनेताओं से उन्हें अच्छे काम की उम्मीद जरूर है लेकिन केवल एक व्यक्ति पर ही उनकी सारी उम्मीदें नहीं टिकी हुई हैं.
सद्गुरु ने लोकतंत्र की ताकत की सराहना की और कहा कि इतिहास में पिछले 50-100 सालों में पहली बार सत्ता का हस्तांतरण बिना खून-खराबे के हो रहा है और ये मानव समाज में कोई छोटी बात नहीं है.