बात 2009 की है. संसद के गेट नंबर 4 पर कुछ बहस चल रही थी. कई पत्रकार ये देख रहे थे. मैं भी वहां मौजूद था. एक सुरक्षाकर्मी ने कुर्ता-पायजामा पहने नेता को रोका और पूछा, आप कौन हैं? पहली बार सांसद बनकर आए वो नेता गुस्से में नजर आए. इसी बीच प्रणब मुखर्जी की एंट्री होती है. हालात सामान्य हो जाते हैं और सांसद को वो अपने साथ अंदर ले जाते हैं. इसके बाद दोपहर के वक्त प्रणब मुखर्जी ने अपने रूम में बातचीत के दौरान बताया कि 13 जुलाई 1969 को जब संसद में मेरा पहला दिन था तब मुझे भी ऐसे ही सुरक्षा गार्ड द्वारा रोक लिया गया था और पूछा गया था, आप कौन हैं? इस किस्से को याद करते हुए प्रणब मुखर्जी ने बताया कि मैंने सांसद (जिन्हें गेट पर रोका गया था) से कहा कि पहचान बनानी पड़ती है, मांगी नहीं जाती.
प्रणब मुखर्जी ने जीवन में अपनी जगह बनाई. ऐसी जगह बनाई कि देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने के बाद इस दुनिया से विदाई ली. करीब 51 साल के सार्वजनिक जीवन में, 37 साल संसद में गुजारे, 22 साल 9 महीने एक मंत्री के रूप में गुजारे और पांच साल राष्ट्रपति रहने के बाद देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न भी पाया. हालांकि, वो कभी प्रधानमंत्री आवास की शोभा नहीं बढ़ा पाए. जबकि ये माना जाता रहा कि शायद उनके जैसा प्रधानमंत्री कोई न होता.
31 अगस्त की शाम प्रणब मुखर्जी ने दिल्ली में आखिरी सांस ली. ये वो वक्त है जब मानसून सत्र शुरू होने जा रहा है. प्रणब मुखर्जी कई बार इस बात का जिक्र किया करते थे कि जुलाई 1969 में मानसून सत्र के दौरान ही उनका संसदीय सफर शुरू हुआ था. राजनीतिक जीवन के लंबे सफर में पीएम पद की चर्चा उनके आसपास चलती रही.
स्वर्गीय अरुण जेटली ने एक बार राज्यसभा में कहा था, ''मैं जानना चाहता हूं कि प्रणब मुखर्जी के दिमाग में क्या है. उन्होंने 1991 से पहले और बाद में, दोनों ही दौर में देश के बजट पेश किए. रायसीना हिल्स के चार अहम पदों में से 3 पर उन्होंने जिम्मेदारी संभाली. सितंबर 1982 में उन्होंने वित्त मंत्री के नाते डॉ. मनमोहन सिंह को आरबीआई का गवर्नर चुना. उन्होंने 50 अलग-अलग GoMs का नेतृत्व किया. वो ये कैसे स्वीकारते हैं कि वो पीएम नहीं हैं.''
पीएम पद के सवाल हमेशा प्रणब मुखर्जी से पूछे जाते रहे. एक बार मैंने उनसे पूछा कि आपको ''दो बार के लगभग पीएम'' के रूप में याद किया जाएगा, क्या कारण है, क्या विश्वास की कमी है. बहुत ही आसानी से इसका जवाब दिया. उन्होंने कहा, ''इंदिरा गांधी हमेशा कहती थीं कि प्रणब सीक्रेट रख सकते हैं. उनके मुंह से सिर्फ उनके पाइप से धुआं बाहर आ सकता है और कुछ नहीं.''
प्रणब मुखर्जी के राज अपने दिल में रखने का एक ताजा उदाहरण ये भी दिया जाता है कि उन्होंने भारत रत्न अवॉर्ड मिलने की खबर अपने परिवार को भी तब तक नहीं दी जबतक औपचारिक तौर पर इसकी घोषणा नहीं हुई. उनके करीबी बताते हैं कि पीएम मोदी ने 25 जनवरी 2019 को प्रणब दा को कॉल किया था और भारत रत्न अवॉर्ड के लिए सहमति ली थी. लेकिन परिवार को भी बाद में इस बात का पता चला.
नंबर-2 की भूमिका में रहे
दिल्ली की सत्ता के गलियारों में प्रणब मुखर्जी को दूसरे सबसे ताकतवर शख्स के रूप में माना जाता रहा. 2004 से 2012 के बीच उन्होंने 102 मंत्रिसमूहों का नेतृत्व किया. वो यूपीए सरकार के हर मसले को संभालते थे. चाहे कांग्रेसी नेता हों या विपक्षी, यहां तक कि जर्नलिस्ट भी प्रणब दा को ''man for all seasons-man for all reasons'' कहते थे.
हर दिन वो मीटिंग करते थे. कई-कई मीटिंग करते थे. जर्नलिस्ट के लिए भी मुश्किल हो जाती थी. एक कांग्रेसी मंत्री प्रणब मुखर्जी के बारे में एक बार कहा, ''वो कैबिनेट में सबसे छोटे (हाइट) हैं, लेकिन...हे भगवान...धाक के मामले में वो सबसे बड़े. ऐसा कोई मंत्री नहीं है, जिसे प्रणब दा सुनाते न हों या कुछ बदलाव करने के लिए न कहते हों और किसी ने कभी उनसे पलटकर सवाल नहीं किया क्यों या कैसे.''
जब पीएम की मौजूदगी में गुस्सा गए प्रणब दा
राम सेतु के मुद्दे पर एक बैठक के दौरान तमिलनाडु में कांग्रेस की सहयोगी डीएमके ने तेवर दिखाए. कहा जाता है कि पीएम मनमोहन सिंह द्वारा इस मसले पर बुलाई गई बैठक में डीएमके मंत्री टी.आर बालू ने सख्त तेवर के साथ अपनी बात रखी. जबकि कांग्रेस के नेता राम सेतु को लेकर लोगों की भावना का जिक्र करते रहे. इस मीटिंग का हिस्सा रहे एक मंत्री ने हमसे कहा था, ''कुछ समय बाद टी.आर बालू जोर-जोर से बोलने लगे और मेज पर हाथ मारने लगे. ये देखकर प्रणब दा गुस्सा से लाल हो गए, उन्होंने टी.आर बालू से शांत होने के लिए कहा. इसके बाद प्रणब दा ने कहा कि कोई उन्हें (मनमोहन सिंह) तमिलनाडु के बारे में न बताए, यहां कमरे में बैठे हर शख्स से ज्यादा वो इसे समझते हैं. इसके बाद एकदम सन्नाटा हो गया. मनमोहन सिंह वहीं मौजूद थे. प्रणब दा ने पीएम की ओर देखा और उनसे सॉरी कहा.''
जब पीएम मनमोहन सिंह से कहा- आप अब सर न कहें
प्रणब मुखर्जी बाकी तमान राजनेताओं की तरह एक महत्वकांक्षी नेता जरूर थे, वो लेकिन वो पार्टी के फैसलों का दिल से सम्मान भी करते थे. 2004 में कांग्रेस की जीत के बाद सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में चुना तो उन्होंने हमेशा पीएम का सम्मान किया. यूपीए के सत्ता में आने के बाद एकदम शुरुआती मीटिंग में पीएम मनमोहन सिंह ने अपने पुराने बॉस और पार्टी के सीनियर नेताओं को सर कहकर संबोधित किया. बताया जाता है कि प्रणब दा ने मनमोहन सिंह से कहा कि अब आप प्रधानमंत्री हैं, इसलिए अब मुझे सर नहीं कहा जाना चाहिए.
2017 में एक दिलचस्प वाकया हुआ. कांग्रेस सत्ता से बाहर जा चुकी थी. प्रणब मुखर्जी की बुक लॉन्च के दौरान मनमोहन सिंह ने कहा, ''जब मुझे प्रधानमंत्री बनाया गया, मुखर्जी निराश थे. इनके पास अपसेट होने का कारण भी था लेकिन इन्होंने मेरा सम्मान किया और हमारे बीच बहुत अच्छे संबंध हैं जो मरते दम तक रहेंगे.''
प्रणब दा अब चले गए हैं. उन्हें हर कोई अपने-अपने तरीके से याद कर रहा है. एक बाद संसद के कॉरिडोर में मैं उनसे बातचीत करता हुआ जा रहा था. मैंने उनसे पूछा कि दशकों पुरानी चीजों को कैसे याद रखते हैं. वो अचानक रुके और कहा, ''क्योंकि मैं आपकी पीढ़ी की तरह आलसी नहीं हूं. मैंने अपनी पूरी जिंदगी हर रात, उस दिन के घटनाक्रम के बारे में डायरी लिखी. ये कोई ट्रिक या गिफ्ट नहीं है, प्रैक्टिस है.''
कहा जाता है कि प्रणब दा को इतिहास के किस्से उंगलियों पर याद रहते थे. अब वो इस दुनिया से रुख्सत हो गए और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक लंबा इतिहास अपने पीछे छोड़ गए.