नीलम संजीव रेड्डी देश के छठे राष्ट्रपति थे, जो 1977 से लेकर 1982 तक इस पद पर रहे. उनके साथ तीन और उपलब्धियां जुड़ी हैं. वह देश के एकमात्र राष्ट्रपति हैं, जो निर्विरोध चुने गए थे. वह सबसे कम उम्र के राष्ट्रपति थे और देश के पहले गैर कांग्रेसी राष्ट्रपति भी थे. ऐसा नहीं था कि बहुत आसानी से उन्होंने चुनाव लड़ा और इस सर्वोच्च पद पर आसीन हो गए. उनके इस पद तक पहुंचने की पटकथा चुनाव से 8 साल पहले उस समय लिखनी शुरू हो गई थी, जब उन्होंने पहली बार राष्ट्रपति चुनाव लड़ा लेकिन हार का सामना करना पड़ा.
जब राजनीति से ले लिया था संन्यास
1969 में हुए राष्ट्रपति चुनाव को देश का अब तक का सबसे दिलचस्प राष्ट्रपति चुनाव माना जाता है. उस समय नीलम संजीव रेड्डी लोकसभा अध्यक्ष हुआ करते थे. डॉ. जाकिर हुसैन के आकस्मिक निधन के बाद राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा हुई तो उन्होंने ये चुनाव लड़ने के लिए 19 जुलाई 1969 को अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया.
भगवती शरण मिश्र अपनी किताब भारत के राष्ट्रपति में लिखते हैं कि 1969 में इंदिरा गांधी के खिलाफ देशभर में नाराजगी थी. उनके विरोधी एकजुट हो गए थे. उस समय कांग्रेस के इंदिरा विरोधी गुट ने राष्ट्रपति पद के लिए नीलम संजीव रेड्डी को उम्मीदवार चुन लिया. वहीं कांग्रेस का प्रत्याशी होने के बाद भी विरोधियों ने रेड्डी के नाम पर सहमति जता दी थी लेकिन इंदिरा गांधी उनके नाम को लेकर सहमत नहीं थीं.
दरअसल, इंदिरा गांधी चाहती थीं कि तत्कालीन उपराष्ट्रपति वीवी गिरि ही राष्ट्रपति बनें लेकिन उनके नाम पर कांग्रेस एकजुट नहीं थी इसलिए उन्होंने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल कर दिया. इंदिरा गांधी ने भी उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दिया. इतना ही नहीं इंदिरा ने वोटिंग से पहले मतदाताओं से अपील भी की कि वे वोट करने से पहले अपने अंतर्मन की आवाज सुनें. उनकी इस अपील से चुनाव का रुख बदल गया.
रेड्डी चुनाव जीतते जीतते रह गए. उन्हें 3,13,548 वोट मिले, जबकि वीवी गिरि को 4,01,515 वोट मिले. इस हार के बाद रेड्डी ने राजनीति से संन्यास ले लिया और अपने पैतृक गांव लौट गए.
जेपी के कहने पर फिर राजनीति में आए
वहीं इंदिरा गांधी को आपातकाल का खामियाजा भुगतना पड़ा. उन्हें 1977 के आम चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. जनता पार्टी सत्ता में आ गई. संजीव रेड्डी की फिर से सत्ता में वापसी की कोशिश की गई लेकिन उन्होंने यह कहते हुए राजनीति में आने से इनकार किया,''मैं जहां हूं, खुश हूं. मुझे और किसी पद पर जाने की लालसा नहीं है'', लेकिन जय प्रकाश नारायण के कहने पर वह लौटे. वह जय प्रकाश नारायण का बहुत सम्मान करते थे.
उन्होंने अपनी आत्मकथा- Without Fear Or Favor: Reminiscences and Reflections of a President में उस समय का जिक्र किया, जब वह पहला राष्ट्रपति चुनाव हारकर घर चले गए थे. उन्होंने बताया, '1975 में जेपी हैदराबाद में एक सभा को संबोधित कर रहे थे. मैं भी मंच के पास ही भीड़ में जाकर उनको सुनने लगा. तभी जेपी की नजर मुझ पर पड़ी तो उनके बुलाने पर मुझे मंच पर जाना पड़ा.’
इस शर्त पर लड़ा दोबारा राष्ट्रपति चुनाव
जनता पार्टी ने रेड्डी को 26 मार्च 1977 में छठी लोकसभा का अध्यक्ष बनाया. इस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली अहमद का निधन हो गया. पिछली बार की तरह इस बार भी रेड्डी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और पद संभालने के करीब चार महीने के भीतर ही पद से इस्तीफा दे दिया. जनता पार्टी ने उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया.
आकाशवाणी के समाचार विभाग के मुताबिक इस बार रेड्डी ने खुद स्पष्ट कर दिया था कि वे तभी इस पद के उम्मीदवार बनेंगे जब सभी दलों को उनका समर्थन मिलेगा. जैसा वह चाह रहे थे, ठीक वैसा ही हुआ. इस बार कांग्रेस के इंदिरा खेमे ने भी उनके विरोध की कोशिश नहीं की.
चुनाव आयोग के मुताबिक इस चुनाव में रेड्डी समेत कुल 36 निर्दलीय प्रत्याशियों ने नामांकन किया था. नाम वापसी के आखिरी दिन 21 जुलाई को सभी निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस ले लिया और दोपहर तीन बजे नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति घोषित कर दिया गया. 25 जुलाई 1977 को उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली. वे देश के पहले गैर कांग्रेसी राष्ट्रपति बने साथ ही देश में पहली बार ऐसा हुआ कि कोई उम्मीदवार निर्विरोध राष्ट्रपति चुन लिया गया हो. 25 जुलाई 1982 को कार्यकाल पूरा होने के बाद वह राजनीति से दूर अपने पैतृक घर चले गए.
जब निष्पक्ष फैसला लेने के लिए पार्टी छोड़ दी
लोकसभा सचिवालय के मुताबिक डॉ. नीलम संजीव रेड्डी का जन्म 19 मई 1913 में आंध्र प्रदेश के अनंतपुर के इल्लूर गांव में हुआ था. 16 साल की उम्र में महात्मा गांधी के आह्वान पर वो आजादी के आंदोलन में कूद गए. 25 साल की उम्र में 1937 में उन्हें आंध्र प्रॉविंशियल कांग्रेस कमेटी (एपीसीसी) का सचिव बनाया गया. वो 10 वर्षों तक इस पद पर रहे.
1951 में मद्रास के वनमंत्री, एपीसीसी के अध्यक्ष, राज्यसभा के सदस्य रहे. 1952 में वह नवनिर्मित आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री फिर 1956 में नवगठित राज्य आंध्र प्रदेश के पहले सीएम बनाए गए. फिर 1959 में कांग्रेस अध्यक्ष बनाए गए. 1962 में वह फिर से सीएम बने.
17 मार्च 1967 को डॉ. रेड्डी चौथी लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए लेकिन इस सम्मनित पद पर वह स्वतंत्रता और निष्पक्षता से काम कर सकें इसलिए उन्होंने कांग्रेस में अपने 34 साल के सफर को रोक दिया. वह कांग्रेस के पहले ऐसे अध्यक्ष बन गए जिन्होंने औपचारिक रूप से अपने दल से इस्तीफा दे दिया था.
वह 26 मार्च 1977 को फिर से लोकसभा अध्यक्ष बने. इसके बाद वह राष्ट्रपति भवन पहुंच गए. वह देश के पहले राष्ट्रपति हैं, जो लोकसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद पर भी रहे. 1 जून 1996 को निमोनिया के कारण 83 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया.