राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी ने NDA उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की आदिवासी अस्मिता का सवाल इतनी मजबूती से उठा दिया कि कई गैर एनडीए दल भी द्रौपदी मुर्मू को वोट करने पर मजबूर हो गए हैं. द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी बीजेपी के लिए ऐसा ट्रंप कार्ड साबित हुआ कि विपक्ष की एकता छिन्न-भिन्न हो गई. यही वजह रही है कि शिवसेना, जनता दल-सेकुलर, झारखंड मुक्ति मोर्चा, ओपी राजभर की पार्टी सुभासपा जैसी कट्टर एंटी बीजेपी पार्टियों ने आदिवासी पहचान के नाम पर द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट देने का ऐलान कर दिया.
द्रौपदी मुर्मू की जनजातीय पहचान के नाम पर द्रौपदी मुर्मू को बड़े राजनीतिक दलों के अलावा छोटी राजनीतिक पार्टियों का भी साथ मिल रहा है. इसी कड़ी में महाराष्ट्र के वंचित बहुजन अघाडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रकाश आम्बेडकर ने तो यहां तक कह दिया है यशवंत सिन्हा को अपनी उम्मीदवारी वापस ले लेनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मेरा यशवंत सिन्हा से अनुरोध है कि वे राष्ट्रपति चुनाव के रेस से बाहर हो जाएं क्योंकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कई पार्टियों के सदस्य द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट देने के लिए एकजुट हो रहे हैं.
गौरतलब है कि विचारधारा के मामले में प्रकाश आम्बेडकर बीजेपी के कट्टर विरोधी माने जाते हैं लेकिन द्रौपदी मुर्मू के नाम पर वो भी NDA उम्मीदवार को अपना वैचारिक समर्थन दे रहे हैं.
यही हाल है झारखंड की सत्ताधारी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा का भी है. जेएमएम झारखंड में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला रही है. लेकिन आदिवासी पहचान का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाली जेएमएम ने राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मूर्मु को समर्थन देने की घोषणा की है.
बता दें कि 15वें राष्ट्रपति के लिए 18 जुलाई को मतदान होगा और 21 जुलाई को नए राष्ट्रपति के नाम की घोषणा की जाएगी. अगर द्रौपदी मुर्मू इस रेस में विजेता रहती हैं तो वे पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनेंगी.
शिवसेना ने भी द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी का समर्थन किया है. और शिवसेना का ये फैसला तब है जब उसने कुछ ही दिन पहले राज्य में सत्ता गंवाई है, और इसमें बीजेपी का अहम रोल रहा है. शिवसेना का कहना है कि उनके कई सांसद और विधायक द्रौपदी मुर्मू की आदिवासी पहचान की वजह से उन्हें समर्थन देने पर अड़े थे. इसलिए पार्टी ने द्रौपदी मूर्मु को समर्थन देने का ऐलान किया है. खास बात यह है कि शिवसेना लगभग ढाई साल तक कांग्रेस और एनसीपी के साथ राज्य की सत्ता में रह चुकी है. बावजूद इसके शिवसेना राष्ट्रपति चुनाव में उस उम्मीदवार को वोट नहीं देगी जिसे कांग्रेस सपोर्ट कर रही है.
द्रौपदी मूर्मु के संथाली आदिवासी होने की वजह से ममता बनर्जी भी उनकी उम्मीदवारी का खुलकर विरोध नहीं कर पा रही है. बता दें कि पश्चिम बंगाल के 70 फीसदी आदिवासी संथाल हैं. इस वजह से ममता द्रौपदी मूर्मु के खिलाफ मुखर नहीं हो पा रही हैं.
वहीं बीजेपी अब इस मुद्दे को भुनाने में लगी है. राज्य में कई स्थानों पर ममता बनर्जी को एंटी आदिवासी करार देते हुए पोस्टर लगाए जा रहे हैं. इस पोस्टर में लिखा है कि ममता बनर्जी आदिवासी जनजाति समुदाय के उम्मीदवार को समर्थन न करके दूसरे उम्मीदवार का समर्थन कर रही हैं और आदिवासी समाज के करीब आने से हिचकिचा रही है. बता दें कि ममता बनर्जी ही यशवंत सिन्हा को विपक्ष के कैंडिडेट के रूप में देश के सामने लेकर आई हैं. यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने से पहले उनकी ही पार्टी टीएमसी के सदस्य थे.
कर्नाटक की विपक्षी पार्टी जेडीएस ने द्रौपदी मूर्मु को समर्थन का ऐलान करते हुए द्रौपदी मूर्मु की आदिवासी पहचान का ही जिक्र किया है. पार्टी ने कहा है कि एक आदिवासी महिला का देश की राष्ट्रपति बनना गर्व की बात है. इस मुद्दे पर जेडी (एस) विधायक काशेमपुर ने कहा कि पार्टी ने उनकी (मुर्मू) पृष्ठभूमि और उनके समुदाय को ध्यान में रखते हुए उन्हें समर्थन देने का फैसला किया है.