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राष्ट्रपति चुनावः अपनों ने दे दिया दगा नहीं तो यशवंत सिन्हा को मिलते चार लाख 38 हजार वोट

देश की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बन गई हैं. राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को अगर अपनों ने दगा न दिया होता दो आज तस्वीर दूसरी होती. शिवसेना और जेएमएम अगर विपक्ष के साथ खड़े रहते और कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल के विधायक-सांसद क्रॉस वोटिंग न करते यशवंत सिन्हा को 3.80 लाख वोट नहीं बल्कि 4.38 लाख वोट मिले होते?

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यशवंत सिन्हा
यशवंत सिन्हा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • क्रॉस वोटिंग से 26 हजार वोट यशवंत सिन्हा को नुकसान
  • JMM-शिवसेना साथ रहते तो चुनाव नतीजे अलग होते
  • संयुक्त विपक्ष एकजुट होता तो मुर्मू की राह मुश्किल होती

देश के 15वें राष्ट्रपति के लिए एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू चुन ली गई हैं. द्रौपदी मुर्मू को 64 फीसदी के साथ 676803 मूल्य के वोट मिले तो विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को 36 फीसदी के साथ 380177 मूल्य के वोट मिले. सत्तापक्ष और तमाम गैर-एनडीए दलों के अलावा विपक्षी दलों के 17 सांसदों और 126 विधायकों ने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोटिंग किया, जिसके चलते उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की है. हालांकि, कांग्रेस के अगुवाई वाला यूपीए एकजुट रहता और विपक्षी खेमे से क्रॉस वोटिंग न हुई होती तो यशवंत सिन्हा को करीब चार लाख 38 हजार से ज्यादा वोट मिलते? 

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बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव 2022 में वोट की कुल वैल्यू 10,86,431 थी, जिसमें से 99.18 फीसदी वोट पड़े थे. द्रौपदी मुर्मू को 6,76,803 वोट तो वहीं सिन्हा को 3,80,177 वोट मिले हैं. हालांकि, बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए में जेडीयू, अपना दल (एस), एआईएडीएमके, एलजेपी, एनपीपी, निषाद पार्टी, एनपीएफ, एमएनएफ, एआईएनआर जैसे दल है, जिनके वैल्य वोट करीब 5.26 लाख थे. ऐसे में द्रौपदी मुर्मू को एनडीए के कुल वोट से करीब डेढ़ लाख वोट ज्यादा मिले हैं. ये वोट विपक्षी खेमे के समर्थन करने और क्रॉस वोटिंग के चलते मिले हैं. 

क्रॉस वोटिंग नहीं होती तो 26 हजार वोट बढ़ते

राष्ट्रपति चुनाव में 17 सांसदों और 125 विधायकों ने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोटिंग किया. इनके अलग वोट वैल्यू को जोड़े तो सांसदों के वोट 11900 वो रहे हैं. क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों को देखें तो असम में 22, मध्य प्रदेश में 20, महाराष्ट्र में 16 बिहार-छत्तीसगढ़ में 6-6, गुजरात-झारखंड में 10-10,, मेघालय में 7, हिमाचल में 2 और गोवा में 4 विधायकों ने क्रास वोटिंग की है. 

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इस तरह विधायकों को वैल्यू वोट करीब 15 हजार हो रहे हैं. क्रॉस वोटिंग करने वाले वोट की वैल्यू करीब 26 हजार हो रही है. चुनाव में विपक्षी खेमे से विधायक और सांसद मुर्मू के पक्ष में क्रॉस वोटिंग न करते तो यशवंत सिन्हा को 3,80,177 के बजाय करीब 406177 वोट मिले होते. 

शिवसेना-जेएमएम साथ रहते तब क्या होता

विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का गृहराज्य झारखंड से काफी बहुत ज्यादा उम्मीदें थी, लेकिन उन्हें करारी मात खानी पड़ी है. एनडीए के अलावा जेएमएम, एनसीपी और निर्दलीय विधायकों के साथ-साथ 10 कांग्रेसी विधायकों ने भी द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट दिया. इस तरह 70 विधायकों और 18 सदस्यों वोट किया, जिसके चलते 7380 वोट मुर्मू ज्यादा मिले. 

वहीं, अगर जेएमएम राष्ट्रपति चुनाव में मुर्मू को समर्थन न करती और यशवंत सिन्हा के साथ खड़ी रहती उन्हें 7380 वोट बढ़ जाते. ऐसे ही महाराष्ट्र की शिवसेना विपक्ष के साथ खड़ी रहती तो 25,000 वोट यशवंत सिन्हा के बढ़ जाते, लेकिन शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को समर्थन किया. इस तरह अगर शिवसेना और जेएमएम दोनों को वोट मिलते  क्रॉस वोटिंग न हुई होती तो यशवंत सिन्हा को 438,557 वोट मिले होते. 

विपक्ष एकजुट रहता तो तस्वीर दूसरी होती

राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ विपक्ष एकजुट हो जाता तो यशवंत सिन्हा का जीतना पूरी तरह से तय था, क्योंकि एनडीए के पास अपने दम पर जीतने का वोट वैल्यू नहीं थे. राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के पास 48 फीसदी वोट थे जबकि यूपीए के पास 23 फीसदी और अन्य विपक्षी दलों के पास 29 फीसदी वोट थे. इस तरह से एनडीए को अपने प्रत्याशी को जिताने के लिए तीन दो फीसदी से ज्यादा वोट की जरूरत थी, लेकिन नतीजे आए तो उसे 64 फीसदी वोट मिले हैं.  इस तरह से एनडीए को 16 फीसदी वोट ज्यादा मिले, जो कि विपक्षी दलों के थे. 

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द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए अलावा कई विपक्षी दलों ने समर्थन दिया था. इसमें बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल, टीडीपी, बसपा और जनता दल (एस) के साथ-साथ यूपीए के सहयोगी शिवसेना और जेएमएम ने भी वोट किया. इसके अलावा यूपी में सुभासपा और राजा भैया की पार्टी सहित कई विपक्षी दलों ने मुर्मू के पक्ष में वोट किया. विपक्षी खेमा अगर न बंटा होता तो आज राष्ट्रपति चुनाव की तस्वीर दूसरी होती. मुर्मू के मुकाबले यशवंत सिन्हा का पल्ला काफी भारी होता, लेकिन एनडीए की रणनीति के आगे विपक्षी एकता फेल रही. 

 

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