दो दशक से अधिक समय के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा शनिवार को तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर जा सकती हैं. (अभी प्रियंका गांधी कोरोना संक्रमण की आशंका के चलते सेल्फ आइसोलेशन में हैं, हो सकता है कि उनका यह दौरा रद्द हो जाए). श्रीपेरंबुदूर वही जगह है, जहां प्रियंका के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की निर्मम हत्या की गई थी. इस हत्या के बाद प्रियंका 11 जनवरी 1998 को आखिरी बार श्रीपेरंबुदूर गई थीं और इसी वक्त एक भविष्यवाणी की गई थी.
11 जनवरी 1998 को जब प्रियंका गांधी वाड्रा श्रीपेरंबुदूर गई थीं तो उनके साथ मां सोनिया गांधी भी मौजूद थीं. प्रियंका की लाल और नारंगी रंग की साड़ी उनकी मां की हरी और मैरून साड़ी की तुलना में शानदार थी, इस दौरान प्रियंका के चेहरे पर मुस्कान थी. घबराहट और हिचकिचाहट सोनिया के चेहरे पर दिख रही थी, लेकिन प्रियंका आश्वस्त, संजीदा और सहज थीं.
तमिलनाडु के शहर श्रीपेरंबुदूर में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए 11 जनवरी 1998 को प्रियंका ने तमिल में कहा था: "एलोरम कांग्रेसिक्कु वोट पोडंगल (आप सभी कांग्रेस को वोट करें), यही एकमात्र वाक्य था, जिसने श्रीपेरंबुदूर में प्रियंका की छवि को बड़ा बना दिया और वहां मौजूद भीड़ उनकी कायल हो गई.
प्रियंका गांधी की इस रैली के बाद वहां मौजूद कांग्रेस नेताओं ने भविष्यवाणी की थी, 'कांग्रेस को अगले 50 सालों तक नेतृत्व की समस्या नहीं होगी. सोनिया कम से कम 20 साल पार्टी का नेतृत्व करेंगी और फिर हमारे पास प्रियंका होंगी.' 20 साल कांग्रेस नेताओं की भविष्यवाणी साकार होती दिख रही है, वह भी ऐसे वक्त जब राहुल गांधी की राजनीति बार-बार लड़खड़ा रही है.
यूपी से परे प्रियंका का नया संकल्प
दो दशकों से अधिक समय के बाद प्रियंका अधिक आश्वस्त और दृढ़ है और राजनीति की मैदान में कूदने के लिए तैयार हैं, खास तौर पर उस वक्त जब उनके भाई को सबसे अधिक मदद की जरूरत है, ताकि विरोधियों को घेरा जा सका. उत्तर प्रदेश पर केवल फोकस करने का संकल्प लेने वाली प्रियंका अब असम, केरल और तमिलनाडु में भी प्रचार कर रही हैं.
केवल कांग्रेस नेतृत्व ही नहीं बल्कि प्रियंका गांधी वाड्रा भी जीत का स्वाद चखने के लिए बेचैन हैं, खासतौर पर असम और केरल में. असम में उनकी बीजेपी से सीधी लड़ाई है और केरल में एलडीएफ के साथ. दोनों के नतीजे 2 मई, 2021 को आएंगे.
यह सिर्फ भाजपा की वार-मशीन और नरेंद्र मोदी-अमित शाह की ताकत है, जो गांधी परिवार को परेशान कर रही है. कांग्रेस धीरे-धीरे हर इलाके, समूहों और उम्र के बीच सिमटती जा रही है, खासतौर पर राहुल गांधी के नेतृत्व संभालने के बाद. जी-23 के नेताओं के साथ कई राज्यों में नेतृत्व संकट है.
गांधी 'अपना शत-प्रतिशत' दे रहे हैं
गांधी परिवार कांग्रेस की वस्तुस्थिति को समझती है, वे असंतोष और बेचैनी के बारे में जानते हैं. हालांकि, उन्हें यह भी विश्वास है कि औसत कांग्रेस व्यक्ति उनके साथ है, विशेष रूप से सोनिया की अगुवाई में 2004 और 2009 में बैक-टू-बैक जीत सुनिश्चित करने के बाद ग्रैंड ओल्ड पार्टी से लोगों का जुड़ाव बना हुआ है.
इसलिए, गांधी परिवार यह सुनिश्चित कर रहा है कि वह अपना 100 प्रतिशत देते हुए नजर आए. यह दिखता भी है, जब प्रियंका पूर्व से दक्षिण की ओर जाकर प्रचार करती हैं और केरल, तमिलनाडु, और पुडुचेरी की जिम्मेदारी उठाए राहुल गांधी कड़ी मेहनत करने के बाद एक बार नहीं बल्कि तीन बार असम का दौरा करते हैं.
गांधी परिवार की कोशिश है कि उनके प्रयासों और मेहनत को याद किया जाए. 2 मई को परिणाम चाहे जो भी हो, साधारण पार्टी कार्यकर्ताओं को याद होगा कि उन्होंने इन पांच विधानसभा चुनावों में ही नहीं बल्कि 2014 और 2019 के बाद की सभी चुनावी लड़ाइयों में अपना शत-प्रतिशत देने की कितनी कोशिश की थी.
स्वतंत्रता के बाद से भारत के 75 वर्षों में नेहरू-गांधी परिवार ने लगभग 60 वर्षों तक कांग्रेस का नेतृत्व किया है. विविधता वाले कांग्रेसी गांधी परिवार को निर्विवाद नेता के रूप में देखते हैं और बदले में चुनावी सफलता की उम्मीद करते हैं, 1951-52 के पहले आम चुनाव में, पार्टी का नारा था, "नेहरू के लिए वोट कांग्रेस के लिए वोट है"
जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा, राजीव और सोनिया तक, नेहरू-गांधी परिवार का कोई भी सदस्य राजनीति से बाहर नहीं जा सका है. परिणामस्वरूप, कांग्रेसी नेता आंख बंद करके भी उनका अनुसरण करते हैं और गांधी परिवार से परे जाने की इच्छा नहीं रखते हैं. हालांकि, अब राहुल (जिन्होंने अभी तक नतीजे नहीं दिए हैं) और प्रियंका पर निर्भर है कि वह इस धारणा से कैसे निपटते हैं, कुछ इसे भ्रम कहते हैं.
लेकिन यह बात तो साफ है कि प्रियंका की भूमिका पार्टी के पुनरुत्थान के लिए महत्वपूर्ण है, वह चाहे 2 मई, 2021 हो या उससे और आगे.
(पत्रकार रशीद किदवई 24 अकबर रोड और सोनिया ए बायोग्राफी के लेखक हैं)