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राघव चड्ढा ने संसद में उठाया श्री करतारपुर साहिब जाने वाले श्रद्धालुओं का मुद्दा, फीस खत्म की जाने की मांग की

आप सांसद राघव चड्ढा ने संसद के शीतकालीन सत्र के तीसरे दिन, राज्यसभा में श्री करतारपुर साहिब जाने वाले श्रद्धालुओं का मुद्दा उठाया. उन्होंने इसकी फीस खत्म करने की मांग की. साथ ही, पासपोर्ट के बिना भी दर्शन करने की अनुमति देने की मांग की.

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राघव चड्ढा, आप सांसद
राघव चड्ढा, आप सांसद

आम आदमी पार्टी (AAP) के वरिष्ठ नेता और पंजाब से राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा (Raghav Chaddha) ने शुक्रवार को संसद में श्री करतारपुर साहिब जाने वाले श्रद्धालुओं का मुद्दा उठाया. उन्होंने इसके लिए श्रद्धालुओं से ली जाने वाली 20 डॉलर की फीस खत्म करने की मांग की. साथ ही, पासपोर्ट के बिना भी दर्शन करने की अनुमति देने और ऑनलाइन प्रोसेस को आसान बनाने की अपील की.

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राघव चड्ढा ने कहा कि कुछ साल पहले जब श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोला गया था, तो पूरी दुनिया श्री गुरु नानक देव जी के रंग में रंग गई थी. श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारा के दर्शन के लिए हर व्यक्ति वहां जाना चाहता है, लेकिन श्रद्धालुओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. पहली समस्या पासपोर्ट की है. आपके पास पासपोर्ट होना जरूरी है. अगर आपके पास पासपोर्ट नहीं है, तो आप श्री करतारपुर साहिब नहीं जा सकते. उन्होंने कहा कि भारत सरकार को इस अहम मुद्दे को पाकिस्तान सरकार के सामने उठाना चाहिए. 

दूसरी समस्या यह है कि हर तीर्थयात्री को दर्शन करने जाने के लिए 20 डॉलर यानी करीब 1600 रुपये का शुल्क देना पड़ता है. अगर परिवार के 5 सदस्य हर साल जाना चाहें, तो उन्हें साल के 8 हजार रुपए खर्च करने होंगे. इस शुल्क वसूली को बंद कर दिया जाए, ताकि श्रद्धालु आराम से श्री करतारपुर साहिब जा सकें. 

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तीसरी समस्या ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया से संबंधित है, जो अभी काफी जटिल है. इसे सरल किया जाए ताकि संगत को परेशानी का सामना ना करना पड़े और उनका समय बर्बाद न हो. चड्ढा ने कहा कि इन समस्याओं का समाधान हो जाने से गुरु और संगत के बीच की दूरी कम हो सकेगी.

इतिहास के लिहाज से श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर बहुत अहमियत रखता है. ये सिख धर्म के पहले गुरु गुरुनानक देव जी की कर्मस्थली है. माना जाता है कि 22 सितंबर 1539 को इसी जगह गुरुनानक देव जी ने अपना शरीर त्यागा था. उनके निधन के बाद उस पवित्र भूमि पर गुरुद्वारा साहिब का निर्माण कराया गया था. विभाजन के बाद यह गुरुद्वारा पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था लेकिन दोनों मुल्कों के लिए यह आज भी आस्था के सबसे बड़े केंद्र में से एक है.

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