दो अक्टूबर से कांग्रेस पूरे देश में भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत करने जा रही है. कन्याकुमारी से कश्मीर तक ये यात्रा जाएगी, 3686 किलोमीटर का सफर तय किया जाएगा और कांग्रेस की विचारधारा का एक बार फिर पूरे देश में विस्तार करने का प्रयास रहेगा. अब ये सब करने का फैसला कांग्रेस ने उदयपुर में हुए चिंतन शिविर में लिया था. पार्टी को उम्मीद थी इस यात्रा को कांग्रेस नेता राहुल गांधी आगे से लीड करेंगे, वे इस यात्रा का चेहरा बन जाएंगे. लेकिन अभी के लिए उन तमाम उम्मीदों पर पानी फिरता दिख रहा है.
हाल ही में कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के लिए एक मीटिंग हुई थी. उस मीटिंग में राहुल गांधी भी मौजूद थे. वहां पर उस यात्रा को लेकर गहन मंथन किया गया, कई मुद्दों पर चर्चा हुई. लेकिन सभी हैरत में तब पड़ गए जब राहुल गांधी ने साफ कर दिया कि वे इस यात्रा को लीड नहीं करने वाले हैं. वे इस यात्रा का हिस्सा जरूर बनेंगे, सभी के साथ भी चलेंगे लेकिन आगे बढ़कर इसका प्रतिनिधत्व नहीं करने वाले हैं. उनके इस एक बयान ने कांग्रेस पार्टी के तमाम दिग्गजों को चिंता में डाल दिया जो ये उम्मीद लगाए बैठे थे कि इस एक यात्रा के दम पर राहुल गांधी के चेहरे को चमकाया जाएगा.
जानकारी के मुताबिक उस मीटिंग में राहुल गांधी थोड़े परेशान दिखाई पड़ रहे थे. राज्यसभा उम्मीदर, ईडी नोटिस, सोनिया गांधी की तबीयत की वजह से वे चिंतित थे. मीटिंग में उनकी तरफ से लगातार सिर्फ इतना कहा गया- मैं साथ चलूंगा लेकिन लीड नहीं करूंगा. उस मीटिंग में शशि थरूर, जयराम रमेश, सचिन पायलट जैसे कई दिग्गज नेता मौजूद थे. सभी राहुल गांधी को समझाते रहे कि इस यात्रा को लीड करना उनके लिए बेहद जरूरी है.चंद्रशेखर और सुनील दत्त की यात्राओं का उदाहरण दिया गया, दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा को भी याद किया गया. सिर्फ बताने का प्रयास रहा कि हर यात्रा के सफल होने के पीछे एक चेहरा होता है, नेतृत्व रहता है. लेकिन राहुल गांधी अपने फैसले पर अडिग रहे. उन्होंने यात्रा को लीड करने से मना कर दिया.
यहां ये जानना जरूरी हो जाता है कि अगस्त-सितंबर के महीने में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव होने जा रहा है. पार्टी को उस समय कोई बड़ा फैसला लेना है. राहुल गांधी का नाम लगातार आगे किया जा रहा है. एक वर्ग चाहता है कि पार्टी की कमान फिर राहुल गांधी के हाथों में चली जाए. समझने वाली बात ये है कि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत होनी है. ऐसा माना जा रहा है कि जो भी पार्टी अध्यक्ष बनेगा, वहीं उस यात्रा को भी आगे से लीड करेगा. लेकिन अगर राहुल गांधी उस यात्रा को ही लीड करने से मना कर रहे हैं, ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि क्या वे एक बार फिर कांग्रेस अध्यक्ष बनना भी चाहते हैं या नहीं?
सवाल ये भी उठ रहा है कि अगर राहुल गांधी एक बार फिर कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए इच्छुक नहीं हैं तो फिर राज्यसभा उम्मीदवार चुनने के दौरान उनका फैसला अंतिम क्यों माना जा रहा है? ऐसा क्यों कहा गया है कि गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा को राहुल गांधी राज्यसभा भेजना नहीं चाहते थे?