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मानहानि केस में सजा को चुनौती... 5 points में समझें राहुल-कांग्रेस की स्ट्रैटजी

राहुल की सूरत यात्रा का महत्व इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके साथ 3 राज्यों के सीएम भी सूरत पहुंचे हैं. इसके अलावा प्रियंका गांधी वाड्रा भी सूरत पहुंचीं हैं. बता दें कि सूरत कोर्ट की सजा के खिलाफ अपील करने में कांग्रेस ने कोई जल्दबाजी नहीं की. राहुल 11 दिन बाद इस सजा के खिलाफ अपील करने के लिए सूरत पहुंचे हैं.

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राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म कर दी गई है. (फोटो- पीटीआई)
राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म कर दी गई है. (फोटो- पीटीआई)

मोदी सरनेम केस में लोकसभा की सदस्यता गंवा चुके राहुल गांधी आज इस फैसले को चुनौती देने के लिए सूरत पहुंच चुके हैं. राहुल गांधी की ओर से आज सूरत कोर्ट में दो याचिका फाइल की गई है. इनमें से पहली याचिका दोषसिद्धि (Conviction) पर रोक लगाने की है. दूसरी याचिका सजा को सस्पेंड करने से जुड़ी है. 

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इस बीच मानहानि केस में सूरत कोर्ट से राहुल गांधी को बेल मिल गई है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 3 मई को होगी.  

राहुल की सूरत यात्रा का महत्व इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके साथ 3 राज्यों के सीएम भी सूरत पहुंचे हैं. कांग्रेस के कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे हुए हैं और देशभर में प्रोटेस्ट कर रहे हैं. विपक्ष संसद में इस मुद्दे को उठा रहा है. आखिर इस पूरे मामले में कांग्रेस की रणनीति क्या है? किस तरफ जाता दिख रहा है ये पूरा मामला? दरअसल कांग्रेस की कोशिश है कि इस पूरे मुद्दे को पॉलिटिकल शो और राजनीतिक ताकत के रूप में पेश किया जाए. 

इस बीच कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि कांग्रेस इस मामले में न्यायपालिका पर दबाव बना रही है. राहुल के सूरत रवाना होने से पहले सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी ने उनसे मुलाकात भी की.

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बता दें कि मोदी सरनेम मानहानि केस में 2 साल की सजा मिलने के बाद लोकसभा सचिवालय ने एक अधिसूचना जारी कर बताया था कि केरल की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद राहुल गांधी को सजा सुनाए जाने के दिन यानी 23 मार्च, 2023 से अयोग्य करार दिया जाता है.

कैसे वापस मिलेगी राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता?

राहुल इसी सजा को चुनौती देने जा रहे हैं? सवाल है कि क्या राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता फिर से बहाल होगी? इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ वकील और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह कहते हैं कि राहुल गांधी को अदालत का रुख करना होगा और सजा को सस्पेंड करने और दोषसिद्धि (conviction) पर रोक लगाने की गुहार करनी होगी, अगर ऊपरी अदालत से उनके पक्ष में फैसला आता है तभी वे अपनी लोकसभी की सदस्यता की बहाली की उम्मीद कर सकते हैं. 

लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल के मामले ऐसा ही हुआ है. केरल हाई कोर्ट ने जब मोहम्मद फैजल का कन्विक्शन रद्द किया तो लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता बहाल कर दी. 

Live: सूरत कोर्ट में सजा को चुनौती देने जा रहे राहुल, सोनिया-प्रियंका मिलने पहुंचीं, सड़क पर उतरे कार्यकर्त्ता

उन्होंने कहा, 'अगर सजा पर रोक लगती है तो उनकी सदस्यता फिर से बहाल की जा सकती है. उन्हें तुरंत अपीलीय अदालत का रुख करना होगा. उन्हें अदालत से दोषसिद्धि पर रोक लेने की जरूरत है तभी उनकी सीट पर कोई चुनाव नहीं होगा."

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बता दें कि जनप्रतिनिधि कानून के मुताबिक अगर सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में 2 साल से ज्यादा की सजा हुई है तो ऐसे में उनकी सदस्यता (संसद और विधानसभा से) रद्द हो जाएगी, इसके अलावा सजा पाया हुआ व्यक्ति सजा की अवधि पूरी करने के बाद छह वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य  होता है. 2 साल की सजा का मतलब ये भी है कि राहुल गांधी 8 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. तो ऐसे में कांग्रेस की रणनीति क्या है. 

वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लुथरा ने कहा कि दोषसिद्धि पर रोक की स्थिति में, राहुल गांधी तब अध्यक्ष के पास वापस जाएंगे और यह कहने के हकदार होंगे कि अब, मेरी दोषसिद्धि पर रोक लगा दी गई है, इसलिए अयोग्यता प्रभाव में नहीं रह सकती है.  अगर राहुल गांधी के कन्विक्शन पर रोक लगती है तो वे 2024 का चुनाव लड़ सकते हैं. 

क्या है मामला?

बता दें कि राहुल गांधी ने साल 2019 में एक बयान कर्नाटक में दिया था. इस दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि 'सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है?' कांग्रेस राहुल गांधी के इसी बयान को लेकर बीजेपी के तत्कालीन विधायक पूर्णेश मोदी ने उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया था. इसी मामले में सूरत के सेशन कोर्ट ने राहुल गांधी को दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई है.

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इस मुकदमे को लेकर कांग्रेस-राहुल की स्ट्रेटजी क्या है? 

राहुल गांधी को सेशन कोर्ट ने सजा 24 मार्च को सुनाई. इस सजा के खिलाफ अपील करने में राहुल ने ठीक-ठाक समय लिया. कांग्रेस इस सजा के खिलाफ अपील करने में कोई जल्दबाजी नहीं कर रही है. इस मामले में राहुल कांग्रेस की रणनीति क्या हे इसे हम 5 प्वाइंट में समझने की कोशिश करते हैं. 

1. विपक्षी राजनीति के केंद्र में लाया जाए

राहुल दोषी होने के 11 दिन बाद इसे चैलेंज करने जा रहे हैं. राहुल ने सजा मिलने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि वे सच बोलना जारी रखेंगे. चाहें उन्हें संसद से बाहर ही क्यों न कर दिया जाए. 

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दरअसल इस मुकदमे के फैसले को कांग्रेस भी एक मौके की तरह देख रही है. राहुल की लोकसभा सदस्यता खत्म करने का सभी विपक्षी पार्टियों ने एक सुर से विरोध किया और इसे सरकार की तानाशाही करार दिया. शरद पवार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, केसीआर, नीतीश कुमार, स्टालिन, पी विजयन जैसे दिग्गज नेताओं ने राहुल की लोकसभा सदस्यता खत्म करने पर नरेंद्र मोदी सरकार की तीखी भर्त्सना की. 

2024 चुनाव से पहले विपक्ष को लीड करने के लिए वजह तलाश रही कांग्रेस और राहुल गांधी अचानक ही सभी विपक्षी पार्टियों की चर्चाओं के केंद्र में आ गए. ये एक ऐसा मौका था जहां राहुल गांधी विपक्ष के सामूहिक नेता के तौर पर उभर रहे थे. सामान्य परिस्थिति में विपक्ष की ये एकजुटता मुश्किल थी. लेकिन इस मुकदमे के बहाने विपक्ष के सभी नेता कांग्रेस की अगुवाई में एकजुट हो गए. 

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हालांकि इसका ये मतलब नहीं है कि 2024 के लिए विपक्ष ने कांग्रेस अथवा राहुल के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया है. लेकिन इससे राहुल के पक्ष में माहौल जरूर बन गया है. राहुल भले ही फिलहाल लोकसभा से बाहर हो गए हों, लेकिन उनकी छवि को मजबूती मिली. कांग्रेस इस मौके का भरपूर इस्तेमाल कर रही है. 

कांग्रेस के अंदर भी राहुल गांधी को भरपूर समर्थन मिला. सांसदी जाने के बाद जब राहुल को बंगला खाली करने कहा गया तो राहुल के समर्थन में कई कांग्रेस नेताओं ने अपने घर उन्हें रहने के लिए ऑफर कर दिया. दिल्ली की एक महिला ने अपने मकान को ही राहुल के नाम कर दिया. 

2. कोर्ट से संसद तक इस मुद्दे पर मोरल ग्राउंड मजबूत करने की तैयारी में कांग्रेस

कांग्रेस चाहती है कि इस मामले की पब्लिक स्पेस में लगातार चर्चा हो, इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस डिफेंसिव नहीं दिख रही है. राहुल लगातार इस मामले में आक्रामक हैं और वे कह रहे हैं कि वे मोदी-अडानी के रिश्ते पर लगातार सवाल करना जारी रखेंगे. कांग्रेस ये मैसेज देने की कोशिश कर रही है कि अडानी और पीएम मोदी के संबंधों पर सवाल उठाने के लिए सरकार की ओर से उन्हें टारगेट किया जा रहा है. 

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3. 2024 चुनाव से पहले कानूनी बाधाएं खत्म करने की तैयारी

कांग्रेस एक और इस मुद्दे के राजनीतिक पहलू पर काम कर रही है तो अदालत के फैसले के बाद पैदा हुए कानूनी बाधाओं को भी दूर करने की कोशिश कर रही है ताकि राहुल 2024 का चुनाव बिना किसी कानूनी बाधा के लड़ सके. इसलिए राहुल आज सजा के खिलाफ सूरत की कोर्ट में लड़ने जा रहे हैं. 

कांग्रेस भी जानती है कि अगर इस फैसले पर अमल हुआ तो राहुल 8 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, इस परिस्थिति में वे पब्लिक मेमोरी में नहीं रह पाएंगे. इसलिए इस केस की तमाम कानूनी पेचिदगियों का अध्ययन कर कांग्रेस ये सुनिश्चित कराने में जुटी है कि राहुल गांधी 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ पाएं.   

4. मोहम्मद फैजल केस का हवाला

लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल का मामला राहुल गांधी के मामले में न सिर्फ नजीर बनकर आया है कि बल्कि इससे यह भी सिद्ध हो गया है कि लोकसभा में उनकी वापसी असंभव तो नहीं ही है. 

दरअसल लक्षद्वीप के सांसद पीपी मोहम्मद फैजल को हत्या के प्रयास में स्थानीय कोर्ट ने दोषी करार दिया था और इसी साल 11 जनवरी को उन्हें 10 साल की सजा सुनाई गई थी. इसके बाद जनप्रतिनिधि कानून के तहत लोकसभा सचिवालय ने उनकी लोकसभा की सदस्यता रद्द कर दी. जैसा कि राहुल के साथ भी हुआ है. 

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इस बीच मोहम्मद फैजल ने केरल हाईकोर्ट में इस सजा को चुनौती. हाईकोर्ट ने उनका कनविक्शन रद्द कर दिया था. इसके बाद लोकसभा सचिवालय ने भी उनकी सदस्यता बहाल कर दी. हालांकि इस बीच में लोकसभा सचिवालय की ओर से सदस्यता बहाली में देरी के बाद मोहम्मद फैजल सुप्रीम कोर्ट चले गए थे. 

इसका अर्थ है कि अगर ऊपरी अदालत से राहुल का कनविक्शन रद्द हो जाता है तो उनकी लोकसभा की सदस्यता बहाल होने में कोई कानूनी दिक्कत नहीं रहेगी. 

5. अडानी के मुद्दे को छोड़ेंगे नहीं

कांग्रेस इस मुद्दे के जरिये जनता को यह भी संदेश देने की कोशिश कर रही है कि वो क्रोनी कैपिटलिज्म के मुद्दे पर सरकार के तमाम हमलों को सहते हुए भी अडानी का मुद्दा उठाते रहेंगे. यही वजह रही कि मोदी सरनेम मामले में दोषी करार दिये जाने के राहुल गांधी जब प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए तो उन्होंने अडानी का मुद्दा उठाया. कांग्रेस इस मुद्दे को ऐसे प्रोजेक्ट करना चाह रही है कि बकौल कांग्रेस बड़े उद्योगपतियों को सरकार की ओर से मिल रहे अनुचित फेवर पर सवाल उठाने के लिए सत्ता पक्ष कांग्रेस की टॉप लीडरशिप को टारगेट कर रहा है. 

राहुल गांधी मोदी सरनेम टिप्पणी के अलावा कुछ और मामलों में कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं. ये मामले हैं-

-सावरकर पर टिप्पणी 

-KGF2 गाना इस्तेमाल करने का केस

-मोदी सरनेम पर झारखंड में केस

-आरएसएस मानहानि केस 

-नेशनल हेराल्ड केस 

-मानहानि क्या होती है? 

हमारा संविधान भारत के हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आपको किसी को अपमानित करने का अधिकार है.

मानहानि क्या है, इसमें कितनी सजा हो सकती है? पढ़ें वे 10 बातें जब नहीं दर्ज हो सकता केस

आईपीसी की धारा 499 में 'मानहानि' की व्याख्या की गई है. इसके अनुसार अगर कोई बोलकर, लिखकर, पढ़कर, इशारों या तस्वीरों के जरिए किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर लांछन लगाता है, उसके मान की हानि करता है तो इसे मानहानि माना जाएगा.

इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर बोलकर, लिखकर, पढ़कर, इशारों या तस्वीरों-वीडियो के जरिए किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर लांछन लगाता है तो यह  भी मानहानि के दायरे में आता है.
 

 

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