कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द हो गई है. इस एक फैसले के कई राजनीतिक मायने निकल रहे हैं. अब उसी मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कांग्रेस ने जोर देकर कहा है कि राहुल गांधी ने लगातार तथ्य के आधार पर खुलकर बोला है, उसी का परिणाम वे भुगत रहे हैं.
सच बोलने का परिणाम भुगत रहे राहुल- कांग्रेस
कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राहुल गांधी निर्भीक होकर बोल रहे हैं, उन्होंने समाजिक, आर्थिक, राजनीतिक मुद्दों पर खुलकर बोला है. वो इसी का परिणाम भुगत रहे हैं. वो तो तथ्य पर बात करते हैं, फिर चाहे नोटबंदी पर रहे, चीन पर रहे या जीएसटी, उन्होंने लगातार सवाल उठाए हैं. इसी वजह से सरकार उनकी आवाज दबाने के लिए ये सब कर रही है. राहुल विदेश जाते हैं, फर्जी राष्ट्रवाद के नाम पर उन्हें बोलने नहीं दिया जाता.
तय प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ- कांग्रेस
अब कांग्रेस ने बीजेपी पर तो आरोप लगाए ही हैं, सदस्यता जाने पर इसके कानूनी पहलुओं पर भी कई सवाल उठा दिए हैं. अभिषेक मनु सिंघवी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि सेक्शन 103 के तहत सदस्यता रद्द करने का फैसला राष्ट्रपति के द्वारा होना चाहिए था. वहां भी राष्ट्रपति पहले चुनाव आयोग से सुझाव लेता है, फिर कोई फैसला होता है. लेकिन इस मामले में इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. अभिषेक मनु सिंघवी ने इस बात का भी भरोसा जताया कि सजा पर वे स्टे लगवा लेंगे और जब वो होगा तो जिस आधार पर सदस्यता रद्द की गई है, वो पहलू भी अपने आप ही खत्म हो जाएगा.
वायनाड में उपचुनाव करवाने की तैयारी
वैसे एक तरफ कांग्रेस अभी हर कानूनी पहलू के जरिए राहुल के लिए राहत तलाश रही है, तो वहीं दूसरी तरफ वायनाड में उपचुनाव को लेकर चुनाव आयोग का मंथन शुरू हो गया है. आयोग सूत्रों के मुताबिक अप्रैल में वायनाड में उपचुनाव करवाया जा सकता है. इस समय राहुल के पास कुछ विकल्प बचे हुए हैं. राहुल को सत्र न्यायालय में अपील दाखिल करनी है. वहां से राहत ना मिलने पर वे हाई कोर्ट में भी अपील दाखिल कर सकते हैं. अगर वहां भी राहत नहीं मिली तो वो सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल कर सकते हैं. ऐसे में उनके पास विकल्प खुले हैं, लेकिन वर्तमान में संकट बड़ा है.
क्यों गई राहुल की सदस्यता?
जानकारी के लिए बता दें कि सूरत कोर्ट के फैसले के बाद से ही राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता पर तलवार लटक रही थी. दरअसल, जनप्रतिनिधि कानून के मुताबिक, अगर सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में 2 साल से ज्यादा की सजा हुई हो तो ऐसे में उनकी सदस्यता (संसद और विधानसभा से) रद्द हो जाएगी. इतना ही नहीं सजा की अवधि पूरी करने के बाद छह वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य भी होते हैं.