
कांग्रेस नेता राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड केस में प्रवर्तन निदेशालय यानी ED के बुलावे पर पूछताछ के लिए पहुंचे तो पूरी कांग्रेस ही सड़कों पर उतर आई. सिर्फ युवा चेहरे नहीं, बल्कि अशोक गहलोत, भूपेंद्र सिंह बघेल जैसे मुख्यमंत्री और पी चिदंबरम जैसे कद्दावर पूर्व मंत्री भी राहुल पर कार्रवाई के खिलाफ दिल्ली की सड़कों पर पुलिस से जूझते रहे. लंबे समय बाद पार्टी में वर्कर से लेकर शीर्ष नेता तक एकजुटता के साथ अपने नेता के समर्थन में कदमताल करते दिखे.
सवाल उठ रहे हैं कि गांधी परिवार पर आई ईडी की ये ‘आपदा’ क्या कांग्रेस के लिए अवसर लेकर आई है. अवसर ऐसा जिसमें वो पार्टी के असंतुष्टों खासकर जी-23 को दिखा सके कि पूरी कांग्रेस एकजुटता के साथ राहुल गांधी के पीछे खड़ी है. उन्हीं राहुल गांधी के पीछे जिनके नेतृत्व पर जी-23 सवाल उठाता रहा है. हालांकि, कुछ जानकार यह भी कहते हैं कि कांग्रेस की यह एकजुटता पहली बार नहीं बल्कि गांधी परिवार पर जब भी संकट आया है तो खड़े नजर आए हैं.
राहुल गांधी भले ही खुद आगे से आकर नेतृत्व करने के इच्छुक नहीं दिख रहे हों, लेकिन कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने उनके समर्थन में आकर साफ कर दिया है कि वे राहुल के नेतृत्व में चलने और उनके लिए लड़ने को तैयार हैं. सोमवार और मंगलवार को दिल्ली की सड़कों के नजारे देखकर ये बात और भरोसे के साथ कही जा सकती है.
दिल्ली में सोमवार को कांग्रेस के सीनियर नेता पी. चिदंबरम, दिग्विजय सिंह, के सी वेणुगोपाल, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, तारिक अनवर सहित अनेक दिग्गज नेता सड़क पर उतरे तो उनका अंदाज यूथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं जैसा था.
कांग्रेस पार्टी ने सोमवार शाम जारी बयान में कहा कि चिदंबरम को दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा धक्का दिए जाने के बाद उनकी बाईं पसली में फ्रैक्चर हो गया है. रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि केसी वेणुगोपाल पर हमला किया गया. प्रमोद तिवारी भी घायल हो गए तो तारिक अनवर को भी अस्पताल में भर्ती कराया गया.
अध्यक्ष बनना चाहते हैं राहुल या नहीं?
कांग्रेस नेताओं का सड़क पर उतरना और संघर्ष करना इसलिए भी मायने रखता है, क्योंकि राहुल गांधी कह चुके हैं कि वे भारत जोड़ो यात्रा को लीड नहीं करने वाले. वे साथ चलने को तैयार हैं, लेकिन आगे से नेतृत्व नहीं करना चाहते. हालांकि, कांग्रेस के तमाम बड़े नेता उन्हें बतौर अध्यक्ष देखना चाहते हैं. इसी वजह से पार्टी के कई दिग्गज लगातार उनके पीछे भी खड़े हैं और उन्हीं को आगे करने का प्रयास भी कर रहे हैं.
जी-23 को बांट दिया जाएगा?
कांग्रेस के दिग्गज अगर राहुल गांधी के साथ खड़े हुए हैं, तो जी-23 के ज्यादातर नेता अभी भी पार्टी के कार्यक्रमों से दूरी बनाते दिख रहे हैं. जी-23 की तरफ से सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा गया था. पार्टी में बड़े बदलावों की पैरवी हुई थी, जल्दी अध्यक्ष चुनाव करवाने की भी अपील थी. जी-23 में भूपिंदर सिंह हुड्डा, कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, मुकुल वासनिक जैसे बड़े नाम शामिल थे.
कपिल सिब्बल तो पार्टी छोड़ चुके हैं, लेकिन बाकी नेता अभी भी पार्टी पर दबाव बना रहे हैं. कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व जी-23 नेताओं को साधने की कवायद के लिए लगातार कोशिश की जा रही है. मुकुल वासनिक को राज्यसभा भेजा गया है. गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा को कांग्रेस के सलाहकार समूह में रखा गया है. ऐसे में हाईकमान की तरफ से जी-23 के नेताओं से पूरी तरह संपर्क नहीं तोड़ा गया है, बल्कि समय-समय पर उनके ही दिग्गजों को अपने पाले में करने की कोशिश जारी है.
इसी कोशिश का परिणाम है कि जब राहुल गांधी पूछताछ के लिए ईडी दफ्तर जा रहे थे, तो उनके समर्थन में वो मुकुल वासनिक भी खड़े थे जिन्हें हाल ही में राज्यसभा भेजा गया है. पार्टी के साथ-साथ जनता को भी संदेश देने का प्रयास रहा कि देश की सबसे पुरानी पार्टी में मतभेद हो सकते हैं लेकिन मनभेद नहीं हैं और समय आने पर पार्टी अपने नेताओं के साथ मजबूती से खड़ी है.
एकजुटता तो ठीक...चुनौतियां अपार
ईडी कार्रवाई ने कांग्रेस को एकजुट होने का मौका तो दे दिया है, लेकिन पार्टी के सामने जो चुनौतियां पहले से चली आ रही हैं, उन पर अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है. सबसे पहली चुनौती तो पार्टी को अपने नए अध्यक्ष चुनने को लेकर है. एक बड़ा वर्ग जरूर राहुल गांधी का नाम आगे कर रहा है, लेकिन ऐसी खबरें आ रही हैं कि कांग्रेस नेता खुद ही इसके लिए राजी नहीं हैं.
इसी तरह उदयपुर चिंतन शिविर के बाद पार्टी युवाओं को तरजीह देना चाहती है, उन्हें 50 फीसदी पदों पर रखना चाहती है. लेकिन जमीन पर ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितेंद्र प्रसाद जैसे नेता पार्टी छोड़ जा चुके हैं, सचिन पायलट की सीएम अशोक गहलोत के साथ कड़वाहट जगजाहिर है.
वहीं, युवाओं को मनाने के चक्कर में पार्टी अपने अनुभवी नेताओं को भी खोती जा रही है. फिर चाहे वो कपिल सिब्बल और अश्ननी कुमार का पार्टी छोड़ना रहा हो या जी-23 के कई दिग्गजों का खुलकर हाईकमान के खिलाफ बयानबाजी करना रहा हो. इसी तरह कांग्रेस आने वाले चुनावों को देखते हुए गठबंधन वाली राजनीति पर भी विचार कर रही है. समान विचार वाले दलों से हाथ मिलाने को तैयार खड़ी है. पर सवाल ये है कि पार्टी के साथ इस समय आना कौन चाहता है?
यूपी में स्थिति काफी कमजोर हो चुकी है, बंगाल में टीएमसी से लड़ाई तो लेफ्ट से वैचारिक मतभेद चल रहे हैं, तेलंगाना में राहुल गांधी अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. ऐसे में पार्टी के लिए ये वाली राह भी कागज पर मजबूत दिख सकती है, लेकिन जमीन पर कई समीकरण साधने बाकी हैं. एक ईडी कार्रवाई पार्टी के कई नेताओं को एक साथ तो जरूर ले आई है, लेकिन अब जनता के दिलों में फिर जगह बनाना, उनके मुद्दों के लिए भी सड़क पर उतरना, पुलिस के साथ संघर्ष करना बाकी है.