दिल्ली चुनाव में वोट शेयर में मामूली ही सही, इजाफे से उत्साहित कांग्रेस पार्टी ने अब उत्तर प्रदेश में दलितों को पार्टी से जोड़ने पर फोकस कर दिया है. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी दो दिन के दौरे पर अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली में हैं जहां उन्होंने दलित संवाद कार्यक्रम में हिस्सा लिया. कांग्रेस के दलित संवाद कार्यक्रम में संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर का जिक्र हुआ तो युवाओं ने दलित उत्थान के लिए कांशीराम, मायावती के कामकाज की भी तारीफ कर दी. इस पर राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में मायावती के स्टैंड पर सवाल उठाए. राहुल के बयान पर मायावती ने कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते हुए उन्हें अपने गिरेबान में झांकने की नसीहत दे दी है.
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर दो दिन से राहुल गांधी और कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. अब सवाल है कि बसपा की सियासी गुगली से राहुल गांधी इतना परेशान क्यों हैं और मायावती को लेकर उनकी टीस क्या है? इसकी चर्चा से पहले ये जान लेना भी जरूरी है कि राहुल गांधी ने मायावती को लेकर क्या कहा और बसपा प्रमुख ने इस पर क्या प्रतिक्रिया दी है.
दरअसल, राहुल गांधी गुरुवार को रायबरेली के मूल भारतीय छात्रावास में दलित छात्रों के साथ संवाद करने पहुंचे थे. इसी दौरान मायावती का जिक्र आया तो राहुल गांधी ने कहा कि बहनजी आजकल चुनाव ठीक से क्यों नहीं लड़तीं? हम चाहते थे कि मायावती जी हमारे साथ लड़ें लेकिन किसी न किसी कारण से वह हमारे साथ नहीं आईं. हमें तो बहुत दुख हुआ. उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस, सपा और बसपा साथ आ जाते तो परिणाम कुछ और होता. बीजेपी नहीं जीत पाती. राहुल गांधी ने बसपा के इंडिया ब्लॉक में शामिल नहीं होने की टीस जाहिर की तो मायावती ने एक्स पर एक के बाद एक कई पोस्ट कर कांग्रेस की मंशा पर सवाल उठा दिए.
मायावती ने कहा कि कांग्रेस पार्टी जिन राज्यों में मजबूत है या जहां उसकी सरकारें हैं, वहां बसपा और उसके अनुयायियों के साथ उसका द्वेषपूर्ण जातिवादी रवैया है. यूपी जैसे राज्य में जहां कांग्रेस कमजोर है, वहां बसपा से गठबंधन की बरगलाने वाली बातें करना उसका दोहरा चरित्र नहीं तो और क्या है. उन्होंने यह भी कहा कि बसपा ने जब-जब कांग्रेस जैसी जातिवादी पार्टियों से गठबंधन किया है, हमारा वोट तो उनको ट्रांसफर हुआ है लेकिन उनके वोट हमें नहीं मिले. मायावती ने दिल्ली चुनाव और इसके नतीजों का जिक्र करते हुए भी कांग्रेस पर हमला बोला है.
उन्होंने एक्स पर पोस्ट कर कहा है कि कांग्रेस ने इस बार दिल्ली चुनाव बीजेपी की बी टीम बनकर लड़ा, यह चर्चा आम है. इसकी वजह से बीजेपी सत्ता में आ गई. वरना कांग्रेस का इतना बुरा हाल नहीं होता कि ज्यादातर उम्मीदवार जमानत भी न बचा पाए. मायावती ने कहा कि इस पार्टी के सर्वेसर्वा राहुल गांधी को किसी भी मामले में दूसरों पर, खासकर बसपा प्रमुख पर उंगली उठाने से पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए. यही बेहतर होगा और यही हमारी सलाह है.
बसपा की सियासी गुगली से परेशान क्यों हैं राहुल गांधी?
राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी बसपा की सियासी गुगली से परेशान क्यों है? इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा. लोकसभा चुनाव से पहले जब कांग्रेस अभी रणनीति पर मंथन कर रही थी, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अधिवेशन हुआ था. पार्टी ने इस अधिवेशन में बीजेपी को हराने के लिए विपक्षी एकजुटता पर बल देते हुए कहा था कि किसी तीसरी ताकत का उभार बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकता है. विपक्षी एकजुटता की मुहिम चल रही थी और इंडिया ब्लॉक आकार ले रहा था, तब कांग्रेस पार्टी ने अपने स्तर पर बसपा को भी इंडिया ब्लॉक में लाने की पुरजोर कोशिश की.
कांग्रेस पार्टी के नेता बसपा और मायावती को लेकर तल्ख बयान देने से परहेज करते रहे, अंतिम समय तक बसपा के गठबंधन में आने की उम्मीद जताते रहे. कांग्रेस को यह भरोसा था कि बसपा भी साथ आ गई तो सत्ता विरोधी वोट एकमुश्त पोल होगा और यूपी में बीजेपी को इसका बड़ा नुकसान होगा. गठबंधन के पक्ष में एकतरफा नतीजे आएंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. यूपी में बसपा विपक्षी एकजुटता की कांग्रेस की कोशिशों से तब किनारा कर गई और मान-मनौव्वल के तमाम प्रयासों के बावजूद मायावती की पार्टी इंडिया ब्लॉक में शामिल नहीं हुई.
राहुल गांधी की परेशानी को 2024 के चुनाव नतीजों से भी समझा जा सकता है. 2024 के चुनाव नतीजों पर नजर डालें तो समाजवादी पार्टी 37 सीटें जीतकर यूपी के सबसे बड़े दल के रूप में उभरी. पार्टी का वोट शेयर 33.8 फीसदी रहा था. कांग्रेस 9.5 फीसदी वोट शेयर के साथ 6 सीटें जीती थी. कांग्रेस और सपा, दोनों का वोट शेयर जोड़ लें तो यह 43.3 फीसदी पहुंचता है. तब बसपा ने 79 सीटों पर चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के ही बराबर 9.5 फीसदी वोट प्राप्त किए थे. मायावती की पार्टी का वोट गठबंधन सहयोगियों को ट्रांसफर होता है. ऐसे में अगर बसपा इंडिया ब्लॉक में होती तो विपक्षी गठबंधन का वोट शेयर 52 फीसदी के करीब पहुंच सकता था और सीटों की संख्या भी अधिक हो सकती थी.
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यूपी की ही बात करें तो सूबे में लंबे समय तक कांग्रेस की सरकारों के पीछे दलित-सवर्ण और मुस्लिम वोटों का गणित रहा है. सूबे में करीब 20 फीसदी दलित आबादी है जिसमें करीब आधी हिस्सेदारी जाटव समाज की है जिसे बसपा का कोर वोटर माना जाता है. कांग्रेस आंबेडकर, संविधान के मुद्दे पर जय भीम, जय संविधान रैलियों के जरिये अपने पुराने कोर वोटबैंक में जड़ें तलाश रही है. कांग्रेस की गठबंधन सहयोगी समाजवादी पार्टी भी पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) का नारा देकर नया वोट गणित गढ़ने की कोशिश में जुटी है. पीडीए का डी यानी दलित समाज को अपने पाले में लाने की कोशिश कांग्रेस और सपा दोनों दल कर रहे हैं. दलित पॉलिटिक्स की पिच पर कोई पार्टी उतरे, यूपी में उसके लिए मायावती और बसपा ही चुनौती हैं.
मायावती को लेकर राहुल गांधी की टीस क्या?
मायावती को लेकर राहुल गांधी की टीस के पीछे दो प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं. एक ये कि बसपा को गठबंधन में लाने की पहल सपा की नाराजगी के बावजूद कांग्रेस ने की थी जिसमें गांधी परिवार एक्टिव था. तब खबरें यहां तक आई थीं कि खुद प्रियंका गांधी ने गठबंधन को लेकर मायावती से बात की है. ऐसा तब था जब इंडिया ब्लॉक की बैठक में बसपा को लेकर स्टैंड क्लियर करने की मांग करते हुए अखिलेश यादव ने गठबंधन से निकलने तक की धमकी दे दी थी.
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एक वजह बसपा के उम्मीदवार उतारने से इंडिया ब्लॉक को 16 सीटों पर हुआ नुकसान भी है. बीजेपी ने 33 सीटें जीती थीं और इनमें से 16 सीटों पर बसपा को इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार की हार के अंतर से अधिक वोट मिले थे. बुलंदशहर, मथुरा से लेकर अमरोहा तक, कम अंतर से बीजेपी विपक्षी इंडिया ब्लॉक पर भारी पड़ी तो इसकी वजह मायावती के उम्मीदवार बताए गए. अमरोहा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार दानिश अली 28 हजार वोट से हार गए थे. यहां तीसरे नंबर पर रहे बसपा के मुजाहिद हुसैन को 1 लाख 64 हजार से ज्यादा वोट मिले थे.
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बांसगांव में भी कांग्रेस उम्मीदवार को 3150 वोट से मात मिली थी और बसपा को 64 हजार से ज्यादा वोट मिले थे. राहुल गांधी की टीस इसे लेकर भी है. बसपा भी अगर इंडिया ब्लॉक में होती और उसके वोट सहयोगी दलों को एकमुश्त ट्रांसफर होते तो हो सकता था कि कांग्रेस की सीटों की संख्या भी दोहरे अंकों में होती और बीजेपी की सीटें 20 से भी कम.