राजस्थान कांग्रेस की सियासत में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सियासी वर्चस्व की जंग छिड़ी है. यह सियासी बवाल ऐसे समय हो रहा है जब गुजरात विधानसभा चुनाव में महज चंद महीने ही बचे हैं. ऐसे में राजस्थान की सियासी तपिश कहीं कांग्रेस को गुजरात चुनाव में झुलसा न दे, क्योंकि चुनावी रणनीति की जिम्मा अशोक गहलोत और उनके सिपहसलारों के कंधों पर है. गहलोत गुजरात चुनाव के मुख्य पर्यवेक्षक हैं तो रघु शर्मा प्रभारी है. इसके अलावा राजस्थान और गहलोत के करीबी नेता ही गुजरात चुनाव की कमान संभाल रहे हैं.
गुजरात में कांग्रेस पिछले 27 सालों से सत्ता का वनवास झेल रही है, लेकिन 2017 में अशोक गहलोत की रणनीति ने वापसी की उम्मीद जगाई थी. यही वजह है कि कांग्रेस ने गहलोत को एक बार फिर से गुजरात चुनाव के पर्यवेक्षक का जिम्मा दे रखा है तो उनके करीबी नेताओं को चुनावी मोर्चे पर लगाया गया है. सीएम अशोक गहलोत ही गुजरात चुनाव में कांग्रेस के मुख्य रणनीतिकार हैं.
गुजरात चुनाव की तैयारी में जुटे हैं गहलोत कैबिनेट के 13 मंत्री
गहलोत के भरोसेमंद और उनकी कैबिनेट में मंत्री रहे रघु शर्मा गुजरात के कांग्रेस प्रभारी हैं तो राजस्थान के करीब दो दर्जन नेता अलग-अलग जिम्मेदारी गुजरात में चुनाव की संभाल रहे हैं. गहलोत कैबिनेट के लगभग 13 मंत्री और 10 विधायक गुजरात चुनाव में पर्यवेक्षक की भूमिका में पिछले दो महीने से काम कर रहे हैं. कांग्रेस ने एक तरह से राजस्थान नेताओं के कंधों पर ही गुजरात का जिम्मा दे रखा है.
राजस्थान में चल रहे सियासी घटनाक्रम से गुजरात में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के लिए छिड़ी जंग जल्द खत्म नहीं दिख रही है. ऐसे में गुजरात में अपनी रणनीति को नए सिरे से तैयार करना पड़ सकता है, क्योंकि अगर गहलोत ऐसे ही उलझे रहे तो चुनाव पर फोकस नहीं कर सकेंगे. गुजरात चुनाव की पूरी रणनीति अशोक गहलोत पर निर्भर है और गुजरात प्रभारी रघु शर्मा भी गहलोत के भरोसेमंद हैं. इस तरह से गहलोत राजस्थान पर अपना ध्यान केंद्रित रखेंगे कि गुजरात पर यह देखने वाली बात होगी.
प्रियंका गांधी करा सकती हैं गहलोत-पायलट की सुलह?
कांग्रेस के नेता मनीष दोशी का कहना है कि राजस्थान की घटना का गुजरात चुनाव में किसी तरह का कोई असर नहीं पड़ने वाला है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी 30 सितंबर को नवरात्रि के मौके पर गुजरात दौरे पर जाएंगी. इस दौरान प्रियंका गांधी महिला सम्मेलन को संबोधित कर सकती हैं. कांग्रेस नेताओं को भरोसा है कि राजस्थान में तो कांग्रेस की सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन गुजरात में कुछ नया करने के अरमानों पर पानी फिरता दिख रहा है.
वहीं, प्रियंका गांधी को गुजरात दौरे का न्योता तो भेजा गया है, लेकिन उनकी तरफ से अबतक कुछ साफ नहीं है. ऐसे में राजस्थान में जिस तरह से सियासी उठापटक हो रही है उसमें प्रियंका के दौरे पर ग्रहण भी लग सकता है. प्रियंका दिल्ली में रहकर राजस्थान के सियासी संकट को सुलझाने का जिम्मा संभाल सकती हैं, क्योंकि 2020 में गहलोत और पयालट के बीच सुलह-समझौता उन्होंने ही कराया था.
बता दें कि बीजेपी और आम आदमी पार्टी गुजरात विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंके हुए हैं और कांग्रेस में मचे सियासी संग्राम से चुनावी प्रचार पर असर पड़ सकता है. राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत का संकट और बढ़ता है तो गुजरात में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है, क्योंकि समय कम होने की वजह से नई रणनीति पर अमल मुश्किल है. कांग्रेस ऐसे ही लगातार 27 सालों से चुनाव हार रही है.
अशोक गहलोत की अगुवाई में 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 77 सीट हासिल की थी. साल 1995 के चुनाव के बाद यह कांग्रेस का सबसे बेहतर प्रदर्शन था, लेकिन वह अपने विधायकों को साथ रखने में विफल साबित हुई थी. पिछले पांच सालों में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 77 से घटकर 63 पर आ गई है और पार्टी के कई नेता साथ छोड़कर बीजेपी और आम आदमी पार्टी में जा चुके हैं. ऐसे में राजस्थान की सियासी तपिश से गुजरात में भी कांग्रेस झुलसती हुई नजर आ रही है.