लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में नई सरकार का गठन हो चुका है. कैबिनेट मंत्रियों ने शपथ ले ली है. मंत्रालयों का बंटवारा हो चुका है और नए मंत्रियों ने चार्ज भी संभाल लिया है. सरकार गठन के मोर्चे पर देखें तो सभी काम पूरे हो चुके हैं लेकिन अभी भी एक महत्वपूर्ण काम बाकी है और यह काम है- लोकसभा स्पीकर का चुनाव. 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून से शुरू होने की संभावनाएं हैं और इस दौरान ही नए स्पीकर का चुनाव होना है. सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की अगुवाई कर रही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) स्पीकर की कुर्सी अपने पास रखना चाहती है तो वहीं तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) भी यह पद चाह रही है.
अब संकट ये है कि बीजेपी 16वीं और 17वीं लोकसभा की तरह ऐसी स्थिति में नहीं है कि सीधे नाम का ऐलान कर दे कि ये अगले स्पीकर होंगे. बीजेपी ने 2014 और 2019 के चुनाव में जहां अकेले पूर्ण बहुमत के लिए जरूरी 272 के जादुई आंकड़े से अधिक सीटें जीती थीं. वहीं इस बार पार्टी 240 सीटें ही जीत सकी. बहुमत के आंकड़े से पीछे रहने की वजह से बीजेपी के लिए स्पीकर चुनने में भी सहयोगियों का साथ जरूरी हो गया है. दूसरी तरफ, बीजेपी की सहयोगी टीडीपी और जेडीयू को विपक्षी पार्टियां भी स्पीकर पोस्ट अपने पास रखने के लिए उकसा रही हैं. जेडीयू ने उकसावे के बीच ये साफ किया है कि बीजेपी जिसे नामित करेगी, हम उसका समर्थन करेंगे लेकिन टीडीपी की ओर से इसे लेकर कोई बयान नहीं आया है.
स्पीकर चुनाव से पहले अब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एक्टिव हो गए हैं. संवाद के माहिर राजनाथ सिंह ने एनडीए के कुनबे को एकजुट रखने का जिम्मा संभाला और अपने आवास पर गठबंधन के नेताओं की बैठक बुला ली. राजनाथ के आवास पर हुई बैठक में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान, जेडीयू की ओर से ललन सिंह बैठक में मौजूद थे. बैठक में स्पीकर के लिए सांसदों के नाम पर चर्चा हुई और इसके लिए विपक्षी पार्टियों से भी समर्थन जुटाने की रणनीति पर चर्चा हुई.
राजनाथ के आवास पर हुई बैठक में इस बात को लेकर भी चर्चा हुई कि संसद सत्र के दौरान विपक्षी इंडिया ब्लॉक की रणनीति से कैसे निपटा जाएगा. विपक्ष पिछले पांच साल डिप्टी स्पीकर का पद खाली रहने को लेकर आक्रामक है और संसद सत्र के दौरान सरकार को घेरने की तैयारी में है. विपक्ष ने ये भी साफ कर दिया है कि डिप्टी स्पीकर की पोस्ट नहीं मिली तो वे स्पीकर के लिए भी कैंडिडेट उतारेंगे. मोदी सरकार 3.0 के पहले संसद सत्र से पहले राजनाथ के एक्टिव होने को लेकर अब ये चर्चा भी शुरू हो गई है कि क्या नई सरकार में उनका कद बढ़ गया है?
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पिछली लोकसभा के कार्यकाल यानि मोदी सरकार 2.0 की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां नेता सदन थे तो उपनेता की जिम्मेदारी राजनाथ के ही पास थी. गृह मंत्री की हैसियत से सरकार में नंबर दो का ओहदा भले ही अमित शाह के पास था और इस बार भी है लेकिन शपथ के क्रम और लोकसभा में पीएम मोदी के बाद राजनाथ सिंह का ही नंबर था. हां, तब बीजेपी के पास सरकार चलाने के लिए जरूरी संख्याबल था. इस बार समीकरण 2014 और 2019 से अलग हैं. इस बार बीजेपी को सरकार चलाने के लिए सहयोगियों को भी साधे रखना होगा और ऐसी स्थिति में राजनाथ की भूमिका अहम हो जाती है.
राजनाथ का रोल अहम क्यों?
राजनाथ सिंह मोदी सरकार में अटल-आडवाणी युग की बीजेपी के चुनिंदा चेहरों में से एक हैं. राजनाथ, अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार में भी बतौर मंत्री काम कर चुके हैं, दो बार बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं. बहुमत से पीछे रहते हुए सहयोगियों के सहारे कार्यकाल पूरा करने वाली सरकार में मंत्री रहे राजनाथ मोदी सरकार में गठबंधन पॉलिटिक्स के सबसे अनुभवी चेहरों में से भी हैं.
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राजनाथ को उनकी मृदुभाषी, संवाद से समस्याएं सुलझाने वाले नेता की इमेज और बीजेपी से लेकर एनडीए की दूसरी पार्टियों में स्वीकार्यता भी अहम बनाती है. राजनाथ की फैन फॉलोइंग विपक्षी पार्टियों में भी है और कई अहम मौकों पर संसद में गतिरोध की स्थिति आने पर सरकार पहले भी राजनाथ को आगे कर चुकी है. बीजेपी इस बार अकेले बहुमत के आंकड़े से पीछे रह गई, ऐसे में राजनाथ जैसे स्वीकार्य और मान्य नेता का रोल अहम हो गया है.