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चुनावी गणित, क्षेत्रीय समीकरण और कास्ट फैक्टर... राज्यसभा के लिए बीजेपी के उम्मीदवार चयन का ये रहा फॉर्मूला

बीजेपी ने आठ राज्यों की नौ राज्यसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. इनमें चुनावी राज्य हरियाणा और महाराष्ट्र की एक-एक सीटें भी हैं. बीजेपी के उम्मीदवार चयन का फॉर्मूला क्या रहा?

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बीजेपी केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक (फाइल फोटो)
बीजेपी केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक (फाइल फोटो)

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने आठ राज्यों की नौ सीटों पर उपचुनाव के लिए उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है. पार्टी ने बिहार में एक सीट अपने गठबंधन सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा के लिए छोड़ी है. पार्टी ने चुनावी राज्य हरियाणा से किरण चौधरी को उम्मीदवार बनाया है तो वहीं दो केंद्रीय मंत्रियों जॉर्ज कुरियन और रवनीत सिंह बिट्टू को राज्यसभा भेजने के लिए मध्य प्रदेश और राजस्थान को चुना गया है. बीजेपी में राज्यसभा उपचुनाव के लिए उम्मीदवार चयन का फॉर्मूला क्या रहा और टिकट देने के पीछे क्या कारण रहे?

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हरियाणाः किरण चौधरी-टिकट क्यों?

कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के इस्तीफे से रिक्त हुई राज्यसभा सीट पर उपचुनाव में बीजेपी से रवनीत सिंह बिट्टू के नाम की चर्चा थी. सूबे में एक अक्टूबर को विधानसभा चुनाव भी होने हैं. ऐसे में पंजाब से आने वाले बिट्टू को उम्मीदवार बनाने से कहीं नुकसान न हो जाए, इसलिए पार्टी ने बाद में इरादा बदल लिया. चर्चा पूर्व सीएम मनोहरलाल खट्टर के करीबी तरुण भंडारी के नाम की भी थी. पंचकूला के पूर्व मेयर भंडारी को हिमाचल प्रदेश में नंबरगेम पक्ष में नहीं होने के बावजूद बीजेपी उम्मीदवार हर्ष महाजन की जीत का श्रेय दिया जाता है.

बंसीलाल की विरासत पर नजरः कैप्टन अभिमन्यु, ओपी धनखड़, रणजीत सिंह चौटाला जैसे जाट दिग्गज भी टिकट की रेस में शामिल बताए जा रहे थे. कुलदीप बिश्नोई के साथ ही प्रदेश में पार्टी के दलित चेहरे अशोक तंवर और बंतो कटारिया भी राज्यसभा बर्थ की रेस में थे लेकिन बाजी किरण चौधरी के हाथ आई. बीजेपी ने पार्टी में इतने कद्दावर चेहरों को दरकिनार कर किरण चौधरी को उम्मीदवार बनाया है तो उसके पीछे भी अपना गणित है. हरियाणा में गैर जाट की सियासत पर फोकस करने वाली बीजेपी की नजर इस बार किरण चौधरी के चेहरे पर बंसीलाल की विरासत का फायदा उठाने की है.

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जाट वोटबैंकः बीजेपी की रणनीति इस बार जाट वोटबैंक में सेंधमारी करने की है. बीजेपी को उम्मीद है कि कांग्रेस की भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर अति निर्भरता की वजह से गैर जाट जातियां उसके पक्ष में गोलबंदी होंगी. ऐसे में किरण के चेहरे पर थोड़े-बहुत जाट वोट भी उसके साथ आए तो सूबे की सत्ता तक पहुंचने की राह आसान हो सकती है. गौरतलब है कि प्रदेश में करीब 25 फीसदी जाट आबादी है.

महिला वोटर्सः किरण चौधरी महिला चेहरा हैं और लंबे समय से एक्टिव पॉलिटिक्स में हैं. नारी शक्ति वंदन अधिनियम को उपलब्धि के रूप में महिला मतदाताओं के बीच ले जा रही बीजेपी की रणनीति किरण को राज्यसभा भेजकर यह संदेश देने की भी है कि पार्टी महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने का काम भी कर रही है. 

मध्य प्रदेशः जॉर्ज कुरियन को टिकट क्यों?

बीजेपी ने मध्य प्रदेश से केंद्रीय मंत्री जॉर्ज कुरियन, राजस्थान से रवनीत सिंह बिट्टू को टिकट दिया है. दोनों ही राज्यों में टिकट के कई दावेदार थे. ऐसे में सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या बीजेपी ने स्थानीय समीकरण साधने के लिए बाहरी को टिकट दिया है? मध्य प्रदेश की बात करें तो लोकसभा के लिए निर्वाचित होने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.

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टिकट के दावेदार थे कई कद्दावरः सिंधिया के इस्तीफे से रिक्त हुई राज्यसभा सीट से टिकट की रेस में पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा और जयभान सिंह पवैया से लेकर सुरेश पचौरी तक, कई कद्दावर नेताओं के नाम थे. 2019 के आम चुनाव में तब कांग्रेस उम्मीदवार रहे सिंधिया को शिकस्त देने वाले केपी यादव,  चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी, रजनीश अग्रवाल और कांतदेव सिंह के साथ ही कांग्रेस से आए पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी भी टिकट के दावेदार थे.

अंतर्कलह की आशंकाः स्थानीय दावेदारों में से किसी भी नाम पर सहमति नहीं बन पा रही थी. किसी के नाम पर नेता नाराजगी जता रहे थे किसी के नाम पर कार्यकर्ता. किसी को उतारने से जातीय गणित बिगड़ने के तर्क दिए जा रहे थे तो किसी के आने से अंतर्कलह की आशंकाएं जताई जा रही थीं. इन सबको देखते हुए बीजेपी ने स्थानीय चेहरे की बजाय केरल से आने वाले जॉर्ज कुरियन को उतार दिया.

राजस्थानः रवनीत बिट्टू पर क्यों लगाया दांव?

गुटबाजीः राजस्थान की एक सीट के लिए ज्योति मिर्धा से लेकर सतीश पुनिया, राजेंद्र राठौड़ और अरुण चतुर्वेदी जैसे दिग्गज टिकट की रेस में थे. गुटबाजी को हवा न मिल जाए, इसे देखते हुए बीजेपी ने पंजाब से नाता रखने वाले रवनीत सिंह बिट्टू को उपचुनाव के मैदान में उतार दिया. 

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श्रीगंगानगर फैक्टरः पंजाब की सीमा से सटे राजस्थान के श्रीगंगानगर और आसपास के इलाकों में सिख समाज का अच्छा प्रभाव है. बिट्टू को राज्यसभा भेजने से पार्टी को इस इलाके की सियासत का गणित साध लेने का भरोसा है.

बिहारः मनन मिश्रा को टिकट क्यों, उपेंद्र कुशवाहा के लिए क्यों छोड़ी सीट?

ब्राह्मण चेहराः बिहार से बीजेपी ने मनन कुमार मिश्रा को उम्मीदवार बनाया है.सुप्रीम कोर्ट के वकील मनन ब्राह्मण चेहरा हैं और सूबे के गोपालगंज से नाता रखते हैं. पार्टी ने अपने सिंबल पर अगड़ा चेहरे को उतारा है.

कुशवाहा के लिए क्यों छोड़ी सीटः बीजेपी ने एक सीट अपने गठबंधन सहयोगी आरएलएम प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के लिए छोड़कर ओबीसी को भी साधने की कोशिश की है. बिहार की दो सीटों से टिकट के लिए ऋतुराज सिन्हा के साथ ही पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह भी दावेदारी कर रहे थे.

कोइरी वोटर्स की नाराजगीः उपेंद्र कुशवाहा कोइरी जाति से आते हैं और सूबे की सियासत में नीतीश कुमार के साथ लव-कुश (कोइरी-कुर्मी) को मजबूती देने वाले नेता माने जाते हैं. आम चुनाव में काराकाट सीट से बिहार बीजेपी के कार्यकारिणी सदस्य रहे पवन सिंह की उम्मीदवारी से कोइरी समाज में नाराजगी की भी चर्चा है. बिहार में कोइरी-कुशवाहा की आबादी करीब 10 फीसदी है जो ओबीसी जातियों में यादव के बाद सबसे अधिक है.

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कोइरी वर्ग के समर्थन में आई कमीः सीएसडीएस-लोकनीति के मुताबिक हालिया लोकसभा चुनाव में कोइरी-कुर्मी समुदाय के 67 फीसदी मतदाताओं ने एनडीए को वोट किया था जो 2019 में मिले 79 फीसदी वोट से 12 फीसदी कम है. इसके उलट पिछले चुनाव में इस वर्ग से 10 फीसदी वोट हासिल कर पाने वाले इंडिया ब्लॉक की पार्टियों को इस बार 19 फीसदी वोट मिले. साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव की बात करें तो कोइरी (कुशवाहा) समुदाय ने एनडीए को 51% वोट दिए थे और विपक्षी महागठबंधन को महज 16 फीसदी समर्थन ही मिल सका था.

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कोइरी वोट पर आरजेडी का फोकसः आम चुनाव में मामूली ही सही, बढ़े समर्थन के बाद आरजेडी ने अभय कुशवाहा को लोकसभा में पार्टी के संसदीय दल का नेता नियुक्त कर यह संदेश दे दिया कि उसका फोकस अब इस वोटबैंक पर है. इससे सतर्क बीजेपी अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले नाराज कुशवाहा वोटर्स को फिर से अपने पाले में गोलबंद करने की रणनीति पर काम करने में जुट गई है.

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महाराष्ट्र में धैर्यशील पाटिल पर दांव के पीछे क्या?

महाराष्ट्र में कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनावी साल में मराठा आरक्षण आंदोलन सरकार के लिए मुसीबत का शबब बन गया है. मराठा आरक्षण आंदोलन की अगुवाई कर रहे मनोज जरांगे पाटिल ने सूबे के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को आरक्षण विरोधी बताते हुए मोर्चा खोल रखा है. ऐसे में माहौल में बीजेपी ने उदयन भोसले और पीयूष गोयल के इस्तीफे से रिक्त हुई राज्यसभा सीटों में से एक पर धैर्यशील पाटिल को उतार दिया है. इस फैसले को एक तीर से तीन शिकार करने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है.

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मराठा कार्डः धैर्यशील पाटिल भी मराठा समाज से आते हैं. बीजेपी को हालिया आम चुनाव में महाराष्ट्र में सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. ऐसे में विधानसभा चुनाव को लेकर सतर्क बीजेपी मराठा समाज की नाराजगी को कम से कम करने की कोशिश में है. इसी रणनीति के तहत पार्टी ने मराठा कार्ड चल दिया है.

कोंकण रीजनः सिर्फ मराठा कार्ड ही रीजन होता तो रावसाहब दानवे से लेकर तमाम मराठा नेता भी बीजेपी के पास थे. धैर्यशील के जरिये बीजेपी की रणनीति कोंकण रीजन का गणित दुरुस्त करने पर है. इस रीजन में 39 सीटें हैं. ये इलाका शिवसेना का गढ़ रहा है.  

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नेताओं को संदेशः धैर्यशील पिछले ही साल पीडब्ल्यूपी छोड़ बीजेपी में आए थे. पार्टी ने पहले अशोक चव्हाण और अब धैर्यशील पाटिल, दूसरे दलों से आए नेताओं को राज्यसभा भेजकर दूसरे दलों के नेताओं को ये संदेश दिया है कि पार्टी में बाहर से आने वालों का भी पूरा सम्मान है.

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