scorecardresearch
 

जिस राज्य में एक भी विधायक नहीं जीता, वहां से बीजेपी ने उतारा राज्यसभा उम्मीदवार, जानें गेम प्लान

जिस राज्य के चुनाव में बीजेपी का एक भी विधायक नहीं जीत सका था, पार्टी ने उस राज्य से भी एक राज्यसभा सीट के लिए उम्मीदवार उतार दिया है. क्या है नंबर गेम और क्या है बीजेपी का प्लान?

Advertisement
X
जेपी नड्डा (फाइल फोटो)
जेपी नड्डा (फाइल फोटो)

देश लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है और सरगर्मियां राज्यसभा चुनाव को लेकर तेज हो गई हैं. राज्यसभा चुनाव को लेकर पूर्वोत्तर का सिक्किम चर्चा में है. इसकी वजह है चीन की सीमा से सटे इस राज्य से राज्यसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का उम्मीदवार उतारना. बीजेपी ने सिक्किम की एकमात्र राज्यसभा सीट के लिए दोरजी त्शेरिंग लेप्चा को उम्मीदवार बनाया है.

Advertisement

अब चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि 2019 के सिक्किम चुनाव में बीजेपी खाता तक नहीं खोल सकी थी. जिस सूबे के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का एक भी विधायक नहीं जीता था, उस सूबे में पार्टी ने राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार उतार दिया है तो इसके पीछे का गेम प्लान क्या है, क्या समीकरण हैं? बात इसे लेकर भी हो रही है.

क्षेत्रीय दलों के मुफीद रहा है सिक्किम का सियासी मिजाज

सिक्किम की सियासत का मिजाज क्षेत्रीय दलों के मुफीद और राष्ट्रीय पार्टियों के विपरीत रहा है. बीजेपी हो या कांग्रेस, सिक्किम में कभी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए. सूबे की सत्ता के साथ ही लोकसभा और राज्यसभा की एक-एक सीट पर भी क्षेत्रीय दलों का ही कब्जा रहा है. 1994 से लेकर 2019 तक सूबे में सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) की सरकार रही और पार्टी के मुखिया पवन चामलिंग मुख्यमंत्री रहे. 2019 के चुनाव में सत्ता बदली लेकिन कहानी फिर वही रही. एक क्षेत्रीय पार्टी हटी तो दूसरी क्षेत्रीय पार्टी सत्ता पर काबिज हुई.

Advertisement
सिक्किम के मुख्यमंत्री पीएस गोले (फाइल फोटो)
सिक्किम के मुख्यमंत्री पीएस गोले (फाइल फोटो)

बीजेपी का उम्मीदवार बनाएगा रिकॉर्ड?

सूबे की सत्ता पर काबिज पार्टी के ही लोकसभा सीट जीतने की परंपरा भी कायम रही लेकिन इस बार राज्यसभा सीट का रिवाज बदलता नजर आ रहा है. सिक्किम की एकमात्र राज्यसभा सीट से बीजेपी ने उम्मीदवार उतार दिया है. बीजेपी ने दोरजी त्शेरिंग लेप्चा को उम्मीदवार बनाया है. सिक्किम में बीजेपी और एसकेएम का गठबंधन है और संख्याबल के लिहाज से सूबे की दूसरे नंबर की पार्टी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त भी है. अगर ऐसा हुआ तो यह पहला मौका होगा जब सिक्किम की राज्यसभा सीट से किसी राष्ट्रीय पार्टी का कोई उम्मीदवार उच्च सदन में पहुंचेगा.

राज्यसभा सीट छोड़ने पर कैसे राजी हो गए गोले?

अब सवाल यह भी उठ रहे हैं कि 32 सदस्यों वाली सिक्किम विधानसभा में 19 विधायकों के साथ संख्याबल के लिहाज से सबसे बड़ी पार्टी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) के प्रमुख और मुख्यमंत्री पीएस गोले राज्यसभा सीट बीजेपी के लिए छोड़ने को तैयार कैसे हो गए? सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि 2019 के विधानसभा चुनाव में एसकेएम, बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने की तैयारी में थी लेकिन सीटों पर बात अटक गई. अब गोले ने अगर एकमात्र राज्यसभा सीट बीजेपी के लिए छोड़ दी है तो इसके सियासी मायने तलाशे जाने लगे हैं.

Advertisement

ये भी पढ़ें- दोरजी त्शेरिंग लेप्चा होंगे सिक्किम की राज्यसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार

एसकेएम के राज्यसभा सीट बीजेपी के लिए छोड़ने के फैसले को 2019 के सिक्किम चुनाव से पहले और चुनाव बाद के सियासी सीन से जोड़कर देखा जा रहा है. दरअसल, पीएस गोले पर 1996 में पवन चामलिंग के नेतृत्व वाली पहली सरकार में मंत्री रहते भ्रष्टाचार का आरोप लगा था. पूर्व मुख्यमंत्री नरबहादुर भंडारी और नुक छिरिंग भूटिया ने 2003 में यह आरोप लगाया था कि गोले के पशुपालन मंत्री रहते 1996 में गाय वितरण योजना में भ्रष्टाचार हुआ था. इस आरोप के आधार पर विजिलेंस ने मुकदमा दायर किया था.

बीजेपी ने की मदद, पार्टी के नजदीक आए गोल

कोर्ट ने इस मामले में पीएस गोले को दोषी करार देते हुए एक साल कैद की सजा सुनाई थी और 10 हजार रुपये जुर्माना लगाया था. सजा सुनाए जाने के बाद पीएस गोले को विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य भी घोषित कर दिया गया था. पीएस गोले सजा काटकर 10 अगस्त 2018 को जेल से बाहर आए थे. भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी करार दिए गए व्यक्ति को कैद की सजा चाहे जितनी सुनाई गई हो, नियमों के मुताबिक दोषी करार दिए जाने के साथ ही वह छह साल तक चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाता है.

Advertisement
सिक्किम से बीजेपी के राज्यसभा उम्मीदवार दोरजी त्शेरिंग लेप्चा (फाइल फोटो)
सिक्किम से बीजेपी के राज्यसभा उम्मीदवार दोरजी त्शेरिंग लेप्चा (फाइल फोटो)

नियमों के मुताबिक पीएस गोले 2024 तक चुनाव लड़ने के अयोग्य थे. गोले ने इसी वजह से 2019 में खुद चुनाव नहीं लड़ा था. चुनाव में उनकी पार्टी को एसकेएम को बहुमत के साथ सरकार चलाने का जनादेश मिला और विधायक दल की बैठक में उन्हें नेता चुन लिया गया. पीएस गोले ने सीएम पद की शपथ तो ले ली लेकिन इसके बाद संशय इस बात को लेकर था कि 2024 तक वह चुनाव लड़ ही नहीं पाएंगे तो इस पद पर कैसे और कब तक रह पाएंगे? चुनाव आयोग ने सितंबर 2019 में पीएस गोले की अयोग्यता अवधि पांच साल कम कर दी थी जिसके बाद पीएस गोले के उपचुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचने का रास्ता साफ हो गया था. आयोग के इस फैसले पर भी सवाल उठे थे और कहा ये भी गया कि बीजेपी ने गोले की मदद की है.

इसलिए ऑफर की राज्यसभा सीट

सिक्किम के वरिष्ठ पत्रकार जोसफ लेप्चा ने कहा कि पूर्वोत्तर की सियासत का मिजाज क्षेत्रीय दलों के मुफीद रहा है ऐसे में अब बीजेपी की कोशिश एसकेएम की उंगली पकड़कर सूबे में अपनी सियासी जमीन तैयार करने की है. 2019 के चुनाव से पहले भी बीजेपी और एसकेएम के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत हुई थी लेकिन एसकेएम ने बाद में अकेले चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया था. चुनाव नतीजों के बाद पीएस गोले और पवन चामलिंग की पार्टी के बीच कोई बड़ा गैप नहीं था. पवन चामलिंग सियासत के पुराने खिलाड़ी हैं और एसकेएम में तोड़फोड़ कर सरकार बना सकते थे लेकिन बीजेपी ने उनके 10 विधायक तोड़कर यह सुनिश्चित किया कि गोले सरकार पांच साल तक किसी खतरे से महफूज रहे.

Advertisement

एसडीएफ के 10 विधायकों ने पवन चामलिंग का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया तो इसमें दोरजी की भूमिका भी चर्चा में रही. अब पीएस गोले ने एसकेएम की जीत सुनिश्चित होने के बावजूद राज्यसभा सीट बीजेपी के लिए छोड़ दी है तो इसे सरकार सेफ करने के लिए सहयोगी दल और दोरजी के लिए एक तरह से रिटर्न गिफ्ट की तरह देखा जा रहा है.

कैसे बना दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन

दरअसल, 32 सदस्यों वाली सिक्किम विधानसभा के चुनाव 2019 में हुए थे. तब प्रेम सिंह तमांग गोले (पीएस गोले) के नेतृत्व वाले सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेए) को 17 और पवन चामलिंग के नेतृत्व वाले सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) को 15 सीटों पर जीत मिली थी. इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री पवन चामलिंग समेत एसडीएफ के दो और एसकेएम के एक उम्मीदवार को दो सीट से जीत मिली थी. यानी सिक्किम विधानसभा में एसकेएम का संख्याबल 16 और विपक्षी एसडीएफ का 13 विधायकों पर रुक गया. तीन सीटें दो-दो सीट से निर्वाचित विधायकों के एक-एक सीट से इस्तीफे की वजह से रिक्त हो गईं.

पवन चामलिंग (फाइल फोटो)
पवन चामलिंग (फाइल फोटो)

इसके बाद 2019 के ही अगस्त महीने में बड़ा उथल-पुथल हुआ. पवन चामलिंग की पार्टी एसडीएफ के 10 विधायकों ने जेपी नड्डा और राम माधव की मौजूदगी में बीजेपी का दामन थाम लिया. विधानसभा चुनाव में शून्य पर सिमटी बीजेपी 10 विधायकों के साथ एसकेएम के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई. एसडीएफ में पार्टी प्रमुख पवन चामलिंग समेत तीन विधायक बच गए. इन तीन में से दो विधायकों ने भी बाद में सत्ताधारी एसकेएम का दामन थाम लिया. बीजेपी और एसकेएम का दिल्ली में गठबंधन था और पार्टी ने सिक्किम में भी सरकार का समर्थन कर दिया. तीन सीट के उपचुनाव में एसकेएम से गठबंधन कर उतरी बीजेपी ने दो सीटें जीतीं और एक सीट एसकेएम को मिली.

Advertisement

ये भी पढ़ें- स्वाति मालीवाल होंगी AAP की राज्यसभा उम्मीदवार, संजय सिंह भी जेल से कर पाएंगे नॉमिनेशन

सिक्किम विधानसभा में इस समय मुख्यमंत्री पीएस गोले की पार्टी एसकेएम के 19 और बीजेपी के 12 विधायक हैं. पवन चामलिंग एसडीएफ के इकलौते विधायक हैं. सिक्किम की सियासत में जिस पार्टी की सरकार, उसी पार्टी का लोकसभा और राज्यसभा सांसद रहा है. एसडीएफ का भी केंद्र की सत्ता पर काबिज पार्टियों के साथ गठबंधन रहा लेकिन पवन चामलिंग की पार्टी ने लोकसभा और राज्यसभा की सीट दूर, विधानसभा की एक सीट भी किसी सहयोगी दल के लिए कभी नहीं छोड़ी. बीजेपी सिक्किम से राज्यसभा में अपना प्रतिनिधि भेजने वाली पहली राष्ट्रीय पार्टी बनने को गौरव से जोड़ रही है. 

Live TV

Advertisement
Advertisement