पूरा देश आज (23 जनवरी) नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती मना रहा है. इस दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के शहीद मीनार मैदान में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए. एक सभा को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा, 'हम पहली बार कोलकाता में नेताजी की जयंती नहीं मना रहे हैं, हर साल हम ऐसा करते हैं. उन्होंने राष्ट्र के लिए बलिदान दिया, इसलिए उन्हें याद करना हमारा कर्तव्य है. प्रतिभाशाली होते हुए उन्होंने अपना जीवन राष्ट्र के लिए 'वनवास' की तरह बिता दिया.'
मोहन भागवत ने आगे कहा, 'हमारा जीवन दूसरों (नेताजी) की तपस्या पर बना है. उनके कारण समाज में चेतना पैदा हुई. न जाने कितनी बार उन्हें जेल जाना पड़ा. उन्हें देश के बाहर जाकर सेना खड़ी करनी पड़ी. लेकिन देश के लिए उन्होंने खुशी-खुशी यह किया. उन्होंने कड़ी मेहनत की. बदले में उन्हें कुछ नहीं मिला, हमने उनके लिए कुछ नहीं किया. हालांकि, उन्होंने देश के लिए बलिदान देते समय इसके बदले किसी से कोई उम्मीद भी नहीं की.'
आरएसएस प्रमुख ने कहा, 'स्वामी विवेकानंद के पदचिन्हों पर चलने वाले अगर कोई थे, तो वे नेताजी थे. आज हम उन्हें नेताजी के रूप में याद करते हैं. वह लोगों के बीच रहते थे. उन्होंने उन लोगों के खिलाफ एक नई फोर्स बनाई, जिनके साम्राज्य में कभी सूर्य अस्त नहीं होता था. नेताजी ने उन्हें भी चुनौती दी. यदि भाग्य ने नेताजी का साथ दिया होता तो वे भारत में पहले प्रवेश कर चुके होते और भारत पहले ही आजाद हो गया होता. नेताजी ने सबसे पहले सत्याग्रह में भाग लिया, लेकिन जब उन्होंने महसूस किया कि इतना काफी नहीं है, तो उन्होंने और इसके आगे कदम उठाने शुरू कर दिए.'
भागवत ने आगे कहा, 'दुनिया को एक बनाना और दुनिया को एक साथ लाना हमारा लक्ष्य है. कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान जब डॉ. हेडगेवार कोलकाता आए और नेताजी से मिले तब प्रकाशित हुई एक किताब मेरे हाथ लगी. उस किताब में लिखा है कि भारत दुनिया के सामने एक छोटी सी मिसाल है. जब से हम परतंत्र हुए हैं, हम राष्ट्रहित को भूल गए हैं और व्यक्तित्व पूजा में लग गए हैं.'
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण देश है. हमें पहले देश की पूजा करनी चाहिए. भगवान की गिनती इसके बाद होती है. इसलिए भारत माता की जय के साथ ही प्रार्थना खत्म होती है. हम भूल गए थे कि कोई भी साधना जो देश के लिए नहीं है, उसका कोई मूल्य नहीं है. सुभाष बाबू ने कहा था कि हमें पूरे समाज को एक साथ लाना है, हमें चुनाव नहीं जीतना है.