Sharad Yadav Death: समाजवाद के प्रखर नेता शरद यादव (75 साल) का निधन हो गया. उन्होंने गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में गुरुवार की शाम आखिरी सांस ली. शरद यादव जदयू के पूर्व अध्यक्ष रहे और 7 बार लोकसभा के सांसद चुने गए. इसके साथ ही वे केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे और जयप्रकाश नारायण से लेकर चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ लंबे समय तक राजनीति में सक्रिय रहे. शरद यादव ने अपने पॉलिटिकल करियर के आखिरी पड़ाव में लालू यादव से हाथ मिलाया और अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का विलय किया था. आइए जानते हैं शरद यादव के जदयू से बाहर होने से लेकर नई पार्टी लॉन्च करने तक का सफर...
शरद यादव ने अपने राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे. उन्होंने चुनौतियों को बड़े अवसर में बदला और दिग्गज नेताओं के साथ मिलकर राजनीति में समाजवाद की विचारधारा को आगे बढ़ाया. खासकर बिहार की राजनीति में शरद यादव ने कई बार अहम भूमिका निभाई. शरद और नीतीश ने लंबे समय तक साथ में काम किया. लेकिन, बाद में कई मुद्दों को लेकर दोनों के बीच मतभेद बढ़ते चले गए और उनकी राहें जुदा हो गईं.
अस्वस्थ्य होने की वजह से राजनीति से बना ली थी दूरी
शरद यादव को प्रमुख समाजवादी नेता माना जाता था. जब 70 के दशक में जय प्रकाश नारायण ने देशव्यापी आंदोलन छेड़ा तो उसमें शरद यादव ने भी हिस्सा लिया. तब शरद कांग्रेस विरोधी लहर में राजनीति में ऊपर उठे और दशकों तक प्रमुख विपक्षी चेहरे के तौर पर बने रहे. उन्होंने लोकदल और जनता पार्टी के जरिए करियर को आगे बढ़ाया. हालांकि, अस्वस्थता की वजह से अंतिम कुछ वर्षों में वे हाशिये पर पहुंच गए. शरद यादव लंबे समय से गुर्दे से संबंधित समस्या से पीड़ित थे और नियमित रूप से डायलिसिस करवाते थे. बीते दिनों दिल्ली में छतरपुर स्थित आवास पर गिरने की वजह से अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
27 साल की उम्र में पहली बार बने सांसद
शरद यादव का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में हुआ था और उन्होंने वहीं से अपना राजनीतिक करियर शुरू किया. बाद में बिहार उनकी 'कर्मभूमि' बन गया. शरद जब छात्र नेता था, तब उन्होंने 1974 में जबलपुर से लोकसभा उपचुनाव लड़ा और कांग्रेस उम्मीदवार को हरा दिया था. उस समय उनकी उम्र 27 साल थी. उन्हें जयप्रकाश नारायण समेत विपक्षी दलों ने अपना प्रत्याशी बनाया था. शरद की इस जीत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई को मजबूती देने का काम किया था. 1975 में इमरजेंसी लगा दी गई और 1977 में फिर चुनाव हुए तो शरद ने दोबारा जीत हासिल की. इमरजेंसी विरोधी आंदोलन से चमके कई नेताओं में एक नाम शरद यादव का भी था. उसके बाद उन्होंने मुड़कर पीछे नहीं देखा और एक ऐसी छवि तैयार की, जिसने उन्हें पिछले पांच दशकों तक सांसद बनाए रखा.
दो बार केंद्रीय मंत्री बने शरद यादव
शरद यादव ने 1999 से 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री के रूप में कार्य किया. वे उससे पहले 1989 में वीपी सिंह सरकार में केंद्रीय मंत्री थे. इतना ही नहीं, 1990 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बनने के लिए लालू प्रसाद यादव को शरद का समर्थन बेहद महत्वपूर्ण माना गया था. हालांकि, ये गठबंधन ज्यादा दिनों तक नहीं चलने वाला था, क्योंकि बिहार के नेता अपने राज्य में राजनीति तौर पर हावी थे और दूसरों पर भारी पड़ रहे थे. वे बाहर से आने वाले नेताओं को नहीं जमने देना चाहते थे. आगे यही हुआ.
बाद में नीतीश कुमार और शरद यादव के अलावा दिवंगत दलित नेता रामविलास पासवान बिहार में तीन प्रमुख समाजवादी नेता के तौर पर उभरे, जिन्होंने करिश्माई दोस्त-दुश्मन का मुकाबला करने के लिए अपने-अपने रास्ते तैयार किए.
'बिहार में लालू-राबड़ी राज को खत्म किया था'
साल 1999 के लोकसभा चुनाव में शरद यादव को बिहार में बड़ी स्वीकार्यता मिली. दरअसल, तब शरद और राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू आमने-सामने थे और चुनाव में जीत शरद यादव के हिस्से में आई. नीतीश कुमार से जुड़ाव और भाजपा के साथ गठबंधन ने शरद को बिहार से 15 साल के लालू-राबड़ी राज को समाप्त करवाने में भी बड़ी सफलता दिलाई. हालांकि, माना जाता रहा है कि शरद यादव अपने खुद के बड़े आधार वाले नेता कभी नहीं रहे हैं. वे संसद पहुंचने के लिए लालू और नीतीश कुमार पर निर्भर रहे, लेकिन पॉलिटिकल वेट मिलते रहने से ऊंचाइयां छूने का सिलसिला आगे बढ़ता रहा. यही वजह रही कि एक समय वे दिल्ली में राष्ट्रीय राजनीति के उच्च स्तर पर पहुंचे. उन्हें मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करवाने में भी महत्वपूर्ण किरदार माना जाता है.
इस वजह से नीतीश से नाराज हो गए थे शरद
नीतीश कुमार द्वारा 2013 में बीजेपी से नाता तोड़ने का फैसला किया. हालांकि, शरद यादव साथ नहीं छोड़ना चाहते थे, क्योंकि वे भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक थे. 2014 की हार के बाद नीतीश और शरद के बीच खटास आना शुरू हो गई थी. नीतीश कुमार ने बिहार में 2015 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को हराने के लिए शरद के कट्टर प्रतिद्वंद्वी माने जाने वाले लालू प्रसाद यादव से हाथ मिला लिया.
पार्टी के फैसलों को लेकर धीरे-धीरे नीतीश और शरद यादव में अनबन बढ़ती गई. इस बीच, नीतीश कुमार ने 2017 में फिर से भाजपा के साथ हाथ मिला लिया. कहा जाता है कि नीतीश कुमार के इस फैसले ने शरद यादव का धैर्य तोड़ दिया. उन्होंने विपक्षी खेमे में रहने का फैसला किया और 2018 में लोकतांत्रिक जनता दल नाम की नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया. हालांकि, ये नई पार्टी कभी उड़ान नहीं भर सकी और शरद यादव के खराब स्वास्थ्य ने उनकी सक्रिय राजनीति को लगभग समाप्त कर दिया. ऐसे में उन्होंने मार्च 2022 में अपनी पार्टी का राजद में विलय कर दिया. तब शरद यादव ने कहा था कि दो यादव एक साथ आ रहे हैं. एक लालू यादव और दूसरे शरद यादव.
- राजनीतिक करियर की शुरुआत एचडी देवगौड़ा, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार के साथ की. जबकि शरद, नीतीश और लालू को जेपी का शिष्य माना जाता है.
- शरद का जन्म एमपी के होशंगाबाद में बंदाई गांव में एक किसान परिवार में हुआ. वे जबलपुर से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट थे.
- इमरजेंसी के दौरान मीसा आंदोलन में शरद जेल भी भेजे गए.
- बिहार के मधेपुरा से 4 बार लोकसभा सांसद चुने गए.
- उत्तर प्रदेश की बदायूं और जबलपुर लोकसभा सीट से दो बार सांसद बने.
- वे कुल सात बार लोकसभा और तीन बार राज्यसभा सदस्य बने.
- जदयू के गठन यानी 2003 से 2016 तक अध्यक्ष रहे.
- 2014 के लोकसभा चुनावों में मधेपुरा सीट से हारे.