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शरद यादव और नीतीश की वो दोस्ती जिसने लालू को निपटाया, लेकिन हाल जॉर्ज जैसा हो गया

पूर्व केंद्रीय मंत्री और लगातार 13 साल जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे शरद यादव को ऐसे राजनेता के तौर पर हमेशा याद किया जाएगा, जिसने कई सरकारों को बनाने और गिराने में अहम भूमिका निभाई. जिनसे दोस्ती की, वक्त आने पर उनसे दुश्मनी भी खूब निभाई.

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नीतीश कुमार और शरद यादव (फाइल फोटो)
नीतीश कुमार और शरद यादव (फाइल फोटो)

जेपी आंदोलन और मंडल की सियासत में अपनी पहचान बनाने वाले दिग्गज नेता शरद यादव की जिंदगी का सफर थम चुका है. 75 साल की उम्र में गुरुग्राम के फोर्टिस हॉस्पिटल में गुरुवार की रात उनका निधन हो गया. मध्य प्रदेश के जबलपुर से शुरू हुआ शरद यादव का राजनीतिक सफर उत्तर प्रदेश के रास्ते होता हुआ बिहार पहुंचा. शरद यादव को ऐसे राजनेता के तौर पर हमेशा याद किया जाएगा, जिसने कई सरकारों को बनाने और गिराने में अहम भूमिका निभाई. जिनसे दोस्ती की, वक्त आने पर उनसे दुश्मनी भी खूब निभाई. 

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सत्तर के दशक में जेपी आंदोलन से लालू प्रसाद, शरद यादव और नीतीश कुमार सियासत में उभरे. इन तीनों गुरुभाइयों के बीच की कड़ी बने थे शरद यादव, लेकिन बाद में सियासी दुश्मनी भी तीनों के बीच हो गई. लालू ने शरद को तो शरद ने लालू को मधेपुरा में सियासी मात दी. नीतीश कुमार के कंधे पर हाथ रखकर शरद यादव ने बिहार की सियासत से लालू यादव को निपटाया, लेकिन वक्त आने पर नीतीश ने ही शरद यादव को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल दिया. 

बता दें कि शरद यादव, नीतीश कुमार और लालू यादव ने एक साथ अपनी-अपनी राजनीतिक पारी को बढ़ाया, लेकिन शरद यादव सबसे सीनियर थे. नीतीश-लालू यादव बिहार से आते थे, जबकि शरद यादव मध्य प्रदेश से थे. तीनों नेता समाजवादी विचारधारा के थे, लेकिन इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने इनके रिश्ते में दरार डाली. मंडल कमीशन के बाद शरद यादव ने यूपी से बिहार में अपनी राजनीति को शिफ्ट किया तो लालू यादव और नीतीश कुमार दोनों के लिए सियासी चुनौती बने. 

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90 के दशक में लालू यादव स्थापित हो चुके थे, लेकिन नीतीश कुमार की राजनीतिक ख्वाहिश के चलते दोनों नेताओं की राहें जुदा हो गईं. हालांकि लालू यादव और शरद यादव एक खेमे के थे, जबकि नीतीश कुमार और जार्ज फर्नांडीस एक साथ खड़े थे. 1997 में लालू और शरद यादव के रिश्ते टूटे तो फिर ऐसी अदावत पड़ी, जो लंबे समय तक चली. नीतीश कुमार ने जनता दल से अलग होकर समता पार्टी बना ली थी तो लालू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल का गठन कर लिया था. जनता दल की कमान शरद यादव के हाथों में ही रही, लेकिन बाद में उन्होंने जनता दल (यू) नाम से पार्टी बना ली. 

अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में एनडीए का गठन हुआ, तो जार्ज फर्नाडीस की समता पार्टी और शरद यादव की जेडीयू भी उसका हिस्सा बनीं. ऐसे वक्त में शरद यादव और नीतीश कुमार के आपसी संबंध सुधारे. 1999 में अटल सरकार बनीं तो दोनों ही नेता केंद्र में मंत्री बने. ऐसे में लालू यादव के सामने बिहार में शरद ने नीतीश को बढ़ाने का फैसला लिया. इस तरह से नीतीश कुमार ने भी जॉर्ज फर्नांडीस को समता पार्टी का जेडीयू में विलय करने के लिए मजबूर किया. अक्टूबर 2003 में शरद यादव, नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडीस एक हो गए. 

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नीतीश कुमार की समता पार्टी, जिसके अध्यक्ष जार्ज फर्नांडीस थे और राम विलास पासवान की लोकशक्ति पार्टी ने शरद यादव की जनता दल के साथ मिलकर जनता दल (यूनाइटेड) बनाया. इसमें समता पार्टी का चुनाव चिह्न तीर को लिया गया और पार्टी व झंडा शरद यादव की जनता दल के नाम पर रखा गया. हालांकि, इसके कुछ दिन बाद ही पासवान ने अलग होकर अपनी पार्टी एलजेपी बना ली, लेकिन शरद यादव ने नीतीश का साथ नहीं छोड़ा.

बिहार की सियासत में नई इबारत लिखने के लिए 2003 को नीतीश कुमार को शरद यादव के रूप में एक मजबूत सियासी सारथी मिला था. नीतीश ने शरद यादव को 2004 में राज्यसभा भेजा और जार्ज फर्नांडीस से कमान लेकर जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया. शरद को मिलाकर नीतीश ने पहले जार्ज फर्नांडीस को निपटाया और उन्हें 2009 के चुनाव में मुजफ्फपुर सीट से टिकट तक नहीं दिया. ऐसे में निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन जीत नहीं सके. 

नीतीश कुमार के लिए शरद हमेशा ढाल की तरह रहे, चाहे जार्ज फर्नांडीस को सियासी वनवास पर भेजने की बात हो, लालू से सत्ता का सिंहासन छीनने की बात हो या मोदी के नाम पर एनडीए से अलग राह चलने की. बिहार की सत्ता के सिंहासन पर काबिज होने के लिए नीतीश कुमार ने शरद यादव के मजबूत कंधों का सहारा लिया था. इसके बाद बीजेपी से भी हाथ मिलाया और 24 अक्टूबर 2005 में लालू प्रसाद यादव के सियासी तिलिस्म को तोड़कर सूबे की सत्ता की चाबी अपने हाथ में ली.

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नीतीश के ढाल बने रहे शरद यादव

नीतीश के हर कदम पर शरद साथ खड़े रहे, उनके राजनीतिक सारथी बनकर उन्हें सहारा देते रहे. नीतीश कुमार बिहार की सियासत संभालते रहे तो शरद दिल्ली के सियासी गलियारों और मीडिया के जरिए उनकी छवि में चार चांद लगाने का काम करते रहे. यही नहीं शरद यादव के जरिए नीतीश कुमार बिहार में मुस्लिम और यादव मतों को जोड़ने में कामयाब हुए. जबकि पहले ये दोनों समुदाय के वोट बैंक के साथ हुआ करते थे. जेडीयू का बीजेपी के साथ होने के बावजूद मुस्लिम और यादवों का बड़ा तबका उनके साथ जुड़ गया था.

मोदी के नाम पर ही अलग हुए थे

सितंबर 2013 में बिहार की सियासत ने नई करवट ली. ये वही समय था जब बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का एलान किया तो नीतीश कुमार ने अपना नाता ही तोड़ लिया. इस तरह 13 साल की एनडीए से दोस्ती टूट गई. ऐसे मुश्किल वक्त में शरद यादव ने आगे आकर मोर्चा थामा. शरद यादव दिल्ली में सियासी बिसात बिछाकर नीतीश कुमार की ढाल बने. शरद यादव ने साफ किया कि हमारी पार्टी लाइन सेक्युलर है अगर मोदी आते हैं, तो हम बीजेपी की इस लाइन पर साथ नहीं चल सकते.

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 हालांकि, शरद यादव और नरेंद्र मोदी के बीच किसी तरह के राजनीतिक वर्चस्व की बात नहीं थी जबकि नीतीश और मोदी के बीच सियासी वर्चस्व की जंग जरूर थी. बावजूद इसके शरद यादव नीतीश के बचाव में खड़े हुए. एक सच्चे सारथी के नाते वो साथ देते रहे. शरद यादव ही थे, जिन्होंने लालू यादव और नीतीश कुमार को एक सूत्र में बांधने का काम किया. 2015 में लालू और नीतीश के बीच गठबंधन कराया. 

दरअसल, नरेंद्र मोदी के केंद्रीय राजनीति में आने के बाद नीतीश कुमार के सामने अपने वजूद को बचाए रखने का संकट खड़ा हुआ तो शरद यादव फिर उनके सारथी बने. शरद ने लालू प्रसाद यादव के जरिए मिलकर फिर बिहार में महागठबंधन बनाया. 2015 के सूबे के चुनाव में बीजेपी को शिकस्त देकर नीतीश ने सत्ता बरकरार रखी, लेकिन जुलाई 2017 में लालू और नीतीश के बीच दरार आ गई. फिर उन्होंने भ्रष्टाचार के मामले का आरोप लगाकर लालू का साथ छोड़ दिया और बीजेपी से हाथ मिला लिया. 

शरद यादव इस खबर से बेखबर थे. इसी वजह से शरद ने नीतीश के खिलाफ बगावत का झंडा उठा लिया. ऐसे में नीतीश का 13 साल पुराना सारथी जुदा हो गया. यानी नीतीश ने 13 साल की दोस्ती जहां बीजेपी से तोड़ी थी तो वहीं 13 साल पुराने साथी को भी छोड़ दिया. नीतीश कुमार ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में शरद यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. उन्हें राज्यसभा की सदस्यता भी गंवानी पड़ी और अपना बंगला भी खाली करना पड़ा. इसके बाद 2018 में शरद यादव ने लोकतांत्रिक जनता दल बनाई, जिसका विलय उन्होंने 2022 में राष्ट्रीय जनता दल में कर दिया है. इस तरह से शरद यादव को नीतीश कुमार ने सियासी तौर पर निपटा दिया, लेकिन आखिरी वक्त में फिर से रिश्ते सुधर गए थे.

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