महाराष्ट्र का सियासी उथल पुथल पूरे देश ने देखा. सूबे में सत्ता परिवर्तन हो गया. उद्धव ठाकरे सरकार गिर गई. एकनाथ शिंदे ने भाजपा के समर्थन से सरकार बना ली. इतना ही नहीं शिंदे गुट ने विधानसभा में बहुमत भी हासिल कर लिया है. वहीं सामना अखबार की ओर से कहा गया है कि जिन्हें ऐसा लगता है कि बहुमत परीक्षण जीतने के कारण अगले 6 महीने तक इस सरकार को खतरा नहीं है, वे भ्रम में हैं. क्योंकि सत्ता हमेशा किसी के पास नहीं रही है. सामना ने कहा कि बीजेपी के लोग ही इस सरकार को गिराएंगे और महाराष्ट्र को मध्यावधि चुनाव की खाई में धकेलेंगे.
शिंदे के बागी गुट को शुद्ध मकसद से सत्ता पर बैठाने जितना बड़ा मन इन लोगों का नहीं है. क्योंकि 106 विधायकों की पार्टी का नेता सीएम नहीं बनता और महज 39 बागियों का साथ लेकर एक व्यक्ति सूबे का मुख्यमंत्री बन जाता है. इसमें गोलमाल है. इस तरह की चेतावनी पूर्व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने भी दी. लेकिन अभी ये बात शिंदे गुट में शामिल लोगों को समझ नहीं आएगी. क्योंकि उनकी आंखें बंद हैं. लेकिन जब उन्हें ये समझ आएगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. अखबार ने लिखा है कि शिंदे के साथ गए विधायकों का भविष्य अंधकारमय है.
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अखबार ने लिखा है कि हिंगोली के विधायक संतोष बांगर विधानसभा अध्यक्ष पद के चुनाव तक शिवसेना के पक्ष में खड़े थे, लेकिन 24 घंटे में ऐसा क्या हुआ कि विश्वास मत प्रस्ताव के समय वह शिंदे गुट में शामिल हो गए. शिवसेना में रहने की वजह से निष्ठावान विधायक का हिंगोली की जनता ने स्वागत किया था. उनकी निष्ठा पर लोगों ने फूल बरसाए. बहुमत परीक्षण के समय भाजपा समर्थित शिंदे समूह को 164 विधायकों ने समर्थन दिया और विरोध में 99 मत पड़े. कांग्रेस, राष्ट्रवादी के कुछ विधायक बहुमत परीक्षण के समय अनुपस्थित रहे. अशोक चव्हाण, विजय वडेट्टीवार जैसे वरिष्ठ मंत्री विधानसभा में नहीं पहुंच सके, इस पर हैरानी होती है. देवेंद्र फडणवीस ने बहुमत परीक्षण सफल बनाने वालों का आभार जताया. शिंदे कितने मजबूत नेता हैं, इस पर भी उन्होंने भाषण दिया. लेकिन फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से रोकनेवाली अदृश्य शक्ति कौन है? यह सवाल महाराष्ट्र के सामने खड़ा है.
सामना अखबार के मुताबिक विधानसभा में भाजपा और शिंदे गुट ने विश्वास मत प्रस्ताव पास करा लिया, यह चुराया हुआ बहुमत है. यह महाराष्ट्र की 11 करोड़ जनता का विश्वास नहीं है. शिंदे गुट पर विश्वास करने के दौरान भाजपा के विधायकों का भी दिमाग विचलित हो गया होगा. महाराष्ट्र में जिस तरह से देवेंद्र फडणवीस सत्ता में आए हैं, ये उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा. पहले के ढाई साल वे आए ही नहीं और अभी भी दिल्ली की जोड़-तोड़ से वह लंगड़े घोड़े पर बैठे हैं. एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं, ये उन्हें भूलना नहीं चाहिए.
सामना ने लिखा है कि पार्टी के आदेश को नजरअंदाज करके विधायक मतदान करते हैं. न्यायालय के आदेश का पालन नहीं करते हैं, ऐसे लोगों के समर्थन से सरकार स्थापित करना और उस सरकार में दूसरे नंबर का पद स्वीकार करके जूनियर कनिष्ठ नेता की प्रशंसा करना, क्या इसी को फडणवीस की राजनीतिक प्रतिष्ठा का लक्षण समझा जाए? सत्ता का अमरपट्टा कोई भी साथ लेकर नहीं आया है. शिंदे की सरकार इसी तरह है. सूरत, गुवाहाटी, गोवा से वो सरकार किसी कंकाल की तरह भाजपा की एंबुलेंस में ही अवतरित हुई है.
सामना अखबार के मुताबिक भाजपा ने साल 2019 में शिवसेना का मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया. फिर आज फडणवीस किस बात की शेखी बघार रहे हैं. भास्कर जाधव ने विधानसभा में मुद्दे की बात की. महाविकास अघाड़ी सरकार के पहले ही दिन से सरकार को उखाड़ने का प्रयास चल रहा था. नियति किसी को छोड़ती नहीं है, जिनके पीछे ED लगाई, उन्हीं के घर के नीचे केंद्र सरकार को पहरा बैठाकर सुरक्षा देनी पड़ी. जाधव ने कहा कि अब इस पर बोलो. इसी 'ED-PD' विधायकों के समर्थन के दम पर भाजपा शिंदे गुट से साथ मिलकर सत्ता में आई है. क्या ये बहुमत है?
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शिवसेना के बागी विधायक कह रहे हैं कि शिवसेना खत्म हो रही थी, इसलिए हमने बगावत की. ये सब व्यर्थ की बातें हैं. तुम खत्म हो जाओगे, लेकिन शिवसेना कभी खत्म नहीं होगी. शिंदे की बगावत मतलब देश की आजादी की लड़ाई की बगावत नहीं है. शिंदे के साथ बागी विधायक गुड़ के ढेले की तरह चिपके हुए हैं, वे कोई क्रांतिवीर नहीं हैं. बागियों का बोलना कुछ ही दिन का है. सत्ता और संपत्ति के लिए हुई बगावत ऐतिहासिक और तत्वों से जुड़ी नहीं होती है. इसमें नैतिकता का कितना भी मुलम्मा चढ़ा दिया जाए, फिर भी उस बगावत को तेज प्राप्त नहीं होता है. भाजपा द्वारा कराई गई बगावत की यही अवस्था है. बहुमत जीत गए, अब 6 महीने सत्ता भोगो. यही सार है.