कर्नाटक की सियासत में नए मुख्यमंत्री को लेकर लंबे समय से चल रही खींचतान गुरुवार को आखिरकार समाप्त हो गई. कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री के तौर पर वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया के नाम पर मुहर लगा दी. वह जल्द ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं. वहीं, डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम चुना गया है.
साल 2006 में कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के बाद से उनका पार्टी में कद लगातार बढ़ता गया है. लेकिन एक साधारण सी पृष्ठभूमि से निकलकर राज्य के सबसे अहम पद तक पहुंचने वाले सिद्धारमैया का सियासी और निजी दोनों ही सफर आसान नहीं रहा. उन्होंने तमाम चुनौतियों को पार कर सूबे की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई है.
किसान परिवार में जन्मे सिद्धारमैया
कर्नाटक के मैसूर जिले के वरुणा होबली में एक गरीब किसान परिवार में 12 अगस्त 1948 को सिद्धारमैया का जन्म हुआ. उनका बचपन गरीबी में बीता. गरीबी इतनी कि उन्होंने पढ़ाई बीच में छोड़कर मवेशियों को चराना शुरू कर दिया ताकि परिवार भूखा ना सो सके. लेकिन सिद्धारमैया की पढ़ाई को लेकर ललक बेइंतहा थी. इसे भांपकर उनके गांव की कुछ टीचर्स ने उन्हें सीधे चौथी कक्षा में दाखिला दे दिया. अब तक मवेशियों को चराने वाला यह बच्चा प्राथमिक और सेकंडरी शिक्षा पूरी करने के बाद मैसूर के कॉलेज में दाखिला लेने पहुंच गया. उन्होंने मैसूर के युवराज कॉलेज में दाखिला लिया और बीएससी की डिग्री हासिल की.
सिद्धारमैया के पिता चाहते थे कि वह डॉक्टर बने लेकिन सिद्धारमैया ने अलग राह चुनी. उन्होंने कानून की पढ़ाई करनी शुरू की. वह शारदा विलास कॉलेज से लॉ की डिग्री लेने के बाद गेस्ट लेक्चरार के तौर पर पढ़ाने भी लगे. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.
राममनोहर लोहिया से प्रभावित हुए सिद्धारमैया
सामाजिक चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया से प्रभावित होने का बाद सिद्धारमैया शोषितों और वंचित वर्ग की कठिनाइयों पर फोकस करने लगे. बचपन की गरीबी और छात्रजीवन के संघर्षों को याद करते हुए वह लगातार शोषितों के लिए काम भी करते रहे.
सिद्धारमैया ने एक बार कहा भी था कि मैं गरीबों की जरुरतों को समझता हूं. क्योंकि मैंने खुद भी उसी तरह की दिक्कतों का सामना किया है.
तालुका से विधानसभा तक का सफर
सिद्धारमैया एक ओर लीगल प्रैक्टिस कर रहे थे. लेकिन सामाजिक न्याय की उनकी चाह की वजह से वह लीगल प्रैक्टिस छोड़कर राजनीति में प्रवेश कर गए. वह 1978 में तालुका विकास बोर्ड के सदस्य बने. वह किसान आंदोलनों से काफी प्रभावित रहे और कर्नाटक में किसान संघर्षों की ललक जगा रहे प्रोफेसर एमडी ननजुंडास्वामी से जुड़े. उन्होंने 1980 में मैसूर से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन जीत दर्ज नहीं कर पाए. 1983 में लोकदल के टिकट से चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट से जीत दर्ज करने के बाद उनके राजनीतिक करियर की रफ्तार बढ़ी.
उन्होंने कांग्रेस के डी. जयदेवराजा को हराकर यह जीत हासिल की थी. इस जीत में मैसूर तालुक के नेता केम्पावीराइहा की भूमिका काफी निर्णायक थी. जब सिद्धारमैया जीतकर विधानसभा पहुंचे तो उस समय रामाकृष्णा हेगड़े की सरकार थी. हेगड़े सरकार को बीजेपी और निर्दलीयों का समर्थन था. इस वजह से उन्हें भी राज्य सरकार को अपना समर्थन देना पड़ा. इसके बाद उन्हें कन्नड़ वॉचडॉग कमेटी का चेयरमैन बनाया गया.
लेकिन जब विधानसभा के लिए मध्यावधि चुनाव हुए तो वह जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर दोबारा विधानसभा पहुंचे. उन्हें राज्य सरकार में पशुपालन मंत्री बनाया गया. वह एसआर बोम्मई सरकार में परिवहन मंत्री भी रहे. 1989 में जनता पार्टी दो टुकड़ों में बंट गई और इस तरह जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी अस्तित्व में आई. वह जनता दल से जुड़ गए लेकिन बाद के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. 1991 में वह कोप्पल निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन हार गए. यह वह समय था जब वह प्रशासनिक कार्यों की बजाए अन्य मोर्चों पर लड़ रहे थे.
हार और बेदखली का दंश झेला
चुनावी हार से बेपरवाह सिद्धारमैया जनता दल के उम्मीदवार के तौर पर 1994 का विधानसभा चुनाव लड़े और जीतकर तीसरी बार विधानसभा पहुंचे. उन्हें एचडी देवगौड़ा सरकार में वित्त मंत्री बनाया गया. जब वह वित्त मंत्री के तौर पर अपने पहले बजट की तैयारी कर रहे थे तो उन पर इस तरह की छींटाकशी की जाती थी कि एक चरवाहा फाइनेंस के बारे में क्या जानता होगा. लेकिन इन सब पर ध्यान नहीं देते हुए उन्होंने 13 बार बजट पेश किया, जिन्हें कई प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने सराहा भी. जब 1996 में देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने तो वह जेएच पटेल सरकार में कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री बने.
1999 में जनता दल एक बार फिर बंटी. सिद्धारमैया जनता दल (सेक्युलर) के साथ हो गए. इसके बाद का विधानसभा चुनाव वह हार गए लेकिन 2004 के विधानसभा चुनाव में उन्हें जीत मिली और इस तरह वह कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार में उपमुख्यंमत्री चुने गए. लेकिन एक बार फिर परिस्थितियां बदली और उन्हें जेडीएस से निष्कासित कर दिया गया.
टर्निंग प्वॉइन्ट
जेडीएस से निष्कासित होने के बाद सिद्धारमैया 22 जुलाई 2006 को सोनिया गांधी की उपस्थिति में कांग्रेस में शामिल हो गए. यह उनके राजनीतिक करियर का सबसे बड़ा टर्निंग प्वॉइन्ट था. वह बाद में चामुंडेश्वरी सीट से विधानसभा का उपचुनाव जीते. 2008 में वह वरुणा सीट से विधानसभा चुनाव लड़े और जीत दर्ज की. इस तरह वह विपक्ष के नेता चुने गए. यह वही समय था जब उन्होंने बेंगलुरु से बेल्लारी तक बेल्लारी पदयात्रा शुरू की थी. इसी पदयात्रा ने कर्नाटक की राजनीति में उनका कद बहुत बढ़ा दिया.
पहली बार बने कर्नाटक के मुख्यमंत्री
साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कर्नाटक में कांग्रेस की जात के बाद सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. पद की शपथ लेने के बाद उन्होंने गरीबों और वंचितों के लिए कई तरह की योजनाओं का ऐलान किया. उन्होंने अपने पहले बजट में ही चुनावी घोषणापत्र में किए गए 165 में से 60 वादों को पूरा किया. दूसरे बजट में अन्य 30 वादों को पूरा किया गया. इसके बाद एक-एक कर सभी चुनावी वादों को पूरा किया गाय.
2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन सरकार के अस्तित्व में आने के कई कारण थे. लेकिन यह गठबंधन सरकार ज्यादा चल नहीं पाई और गिर गई. इसके बाद सिद्धारमैया को कर्नाटक में विपक्ष का नेता चुना गया.
सिद्धारमैया हमेशा कहते रहे कि छात्र के रूप में मैसूर के एक किराए के कमरे में सिमटे रहे उनके जीवन ने उन्हें काफी कुछ सीखा दिया. इन्हीं कठिनाइयों की वजह से उन्हें आगे चलकर गरीबों और शोषितों के कल्याण के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं बनाने में मदद मिली. गरीबों को निशुल्क या कम दरों पर अनाज देने के लिए अन्ना भाग्य, दूध मुहैया कराने के लिए क्षीरा भाग्या और विद्याश्री जैसी योजनाएं उनके राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी उपलब्धियां हैं, जिनसे एक बड़ी आबादी को लाभ मिलता रहा है.