मौजूदा समय में सोशल मीडिया पोस्ट, ट्रेंडिंग टॉपिक और हैशटैग जनता की भवानाओं के परिचायक हो चले हैं. इसका असर राजनीतिक परिदृश्य या यू कहें राजनीतिक चर्चा पर भी पड़ता है. भारत में राजनीतिक पार्टियों के सोशल मीडिया सेल और आईटी सेल का राजनीतिक प्रचार प्रसार में कुछ समय के लिए एकाधिकार रहा है लेकिन अब यह तेजी से बदल रहा है.
नए ऑनलाइन ग्रुप अब देश में राजनीतिक चर्चाओं की दिशाओं पर खासा असर डाल रहे हैं. India Today Open-Source Investigation (OSINT) टीम ने यह पाया है कि इन छोटो ग्रुप के मेंबर आपसी सहयोग के साथ राजनीतिक तौर पर सेंसटिव और वायरल कैंपेन चलाते हैं. ऐसे ग्रुप के तरफ से चलाए गए अभियान दिन के ट्रेंडिंग टॉपिक बनते हैं और ये इतने असरदार होते हैं कि मुख्यधारा की पार्टियों को भी इस अभियान में उतरना ही पड़ता है.
हाल ही में इजरायल और फिलिस्तीन के बीच हुए टकराव के दौरान 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. अगले दिन ही भारत में ट्विटर पर #BoycottIsrael ट्रेंडिंग टॉपिक की लिस्ट में शीर्ष पर था. जबकि यह अभियान टीपू सुल्तान पार्टी की तरफ से शुरू किया गया था जिसे काफी कम लोग जानते हैं.
पार्टी की वेबसाइट के मुताबिक टीएसपी राजीतिक दल के तौर पर साल 2019 में स्थापित हुई थी. यह महाराष्ट्र के अम्बाजोगई के बाहरी क्षेत्र आधारित है. पार्टी की साइट का दावा है कि पार्टी सीएए और एनआरसी प्रदर्शन को लीड कर रही थी.
चुनाव आयोग के मुताबिक इस पार्टी के उम्मीदवारों ने दिल्ली और तमिलनाडु में चुनाव लड़ा था लेकिन कोई खास प्रदर्शन पार्टी का नहीं रहा था. लेकिन आठ मई को जब पार्टी ने ट्विटर हैंडल पर अपने 14,400 फॉलोवर्स को #BoycottIsrael ट्रेंड कराने को कहा तो यह टॉप ट्रेंड में शुमार हो गया. यहां तक कि कुछ अन्य नेताओं ने भी इस कैंपेन को ज्वाइन किया. सलमान निजामी भी इस कैंपने से जुड़े जिनकी खुद की लोकप्रियता इस पार्टी से ज्यादा है.
कुछ ऐसा ही प्रभावी असर प्रशासक समिति का भी दिखा था. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद पीएस (PS) के सदस्यों की तरफ से किए गए ट्वीट कॉर्डिनेटड और एम्पलिफाइड थे.चार मई को एक वीडियो ट्विटर पर शेयर किया गया और कहा गया कि टीएमसी कार्यकर्ताओं ने पुलिस पर अटैक कर दिया. जबकि इंडिया टुडे एंटी फेक न्यूज वॉर रूम ने पाया कि यह दावा फर्जी था. प्रशासक समिति ने उकसाने वाला और अनुचित कंटेट का इस्तेमाल कर ट्विटर पर हाई लेवल का एंगेजमेंट हासिल किया था.
इस ग्रुप ने अपने टेलीग्राम चैनल का भी इस्तेमाल किया जहां ट्वीट, हैशटैग और टारगेट ग्रुप के सदस्यों को दिए गए थे.
कॉर्डिनेश का एक और उदाहरण यह है कि सॉकेट पपेट अकाउंट से एक जैसे कई कंटेंट पेस्ट किए गए.
सॉकेट पपेट ऑनलाइन आइडेंटिटि होती है जो कंटेट के एम्पलिफिकेशन के लिए इस्तेमाल होती है.
इनमें से कई अकाउंट के हैंडल में प्रशासक समिति की ब्रान्डिंग भी थी. ट्विटर ने नियमों के उल्लंघन के चलते अकाउंट सस्पेंड भी कर दिया था.
ऐसे ग्रुप्स के पास जमीनी स्तर पर स्रोत और सोच कम हो लेकिन सोशल मीडिया पर संवेदनशील मसलों पर इनके कैंपेन मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों से एक समय पर कहीं ज्यादा मजबूत नजर आता है.
(इनपुट -आकाश शर्मा)