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स्थायी उन्माद-बोगस राष्ट्रवाद, PM मोदी पर हमला कर बोलीं सोनिया गांधी- नफरत की आग से देश को बचाएं

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक अंग्रेजी अखबार में लिखे लेख के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर करारा प्रहार किया है. उन्होंने कहा कि भारत का सत्ता प्रतिष्ठान नागरिकों को विश्वास दिलाना चाहता है कि देश में स्थायी उन्माद उनके हित में है.

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कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी (फाइल फोटो)
कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 'नफरत बढ़ाने में हमारे संसाधनों का प्रयोग'
  • सोनिया ने कर्नाटक, अल्पसंख्यकों का किया जिक्र
  • बोगस राष्ट्रवाद का जिक्र कर बीजेपी पर हमला

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने देश के मौजूदा तनाव भरे सामाजिक-राजनीतिक हालात पर एक अखबार में लेख लिखकर पीएम नरेंद्र मोदी पर सख्त टिप्पणी की है. सोनिया ने कहा है कि क्या भारत को स्थायी तौर पर ध्रुवीकरण की स्थिति में होना चाहिए? सत्ता प्रतिष्ठान स्पष्ट रूप से चाहता है कि भारत के नागरिक यह विश्वास करें कि ऐसा वातावरण उनके सर्वश्रेष्ठ हित में है. चाहे वह पहनावा हो, भोजन हो, आस्था हो, त्योहार हो या फिर भाषा, भारतीयों को भारतीयों के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश की जाती है और कलह पैदा करने वाली ताकतों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हर प्रोत्साहन दिया जाता है. 

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प्राचीन और समकालीन दोनों तरह के इतिहास की लगातार व्याख्या करने की कोशिश की जाती है ताकि पूर्वाग्रह शत्रुता और प्रतिशोध को बढ़ावा दिया जा सके. यह एक त्रासदी है कि अपने संसाधनों का इस्तेमाल देश के लिए उज्ज्वल और नया भविष्य गढ़ने और युवा मन को सकारात्मक कामों में लगाने के लिए हमारे संसाधनों का उपयोग करने के बजाय, एक काल्पनिक अतीत के संदर्भ में वर्तमान को नया रूप देने के प्रयासों में समय और मूल्यवान संपत्ति का उपयोग किया जा रहा है. 

भारत की विविधताओं को स्वीकार करने के बारे में प्रधानमंत्री जी की ओर से बहुत चर्चा हो रही है. लेकिन कड़वी हकीकत यह है कि उन्हीं के शासन काल में जिस अपार विविधता ने सदियों से हमारे समाज को परिभाषित और समृद्ध किया है, उसका इस्तेमाल हमें बांटने के लिए किया जा रहा है. 

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अब ये स्थापित सत्य हो चुका है कि हमें आर्थिक विकास की गति को जारी रखना होगा ताकि धन पैदा किया जा सके फिर इसी धन को फिर से बांटा जा सके, लोगों का जीवन स्तर सुधारा जा सके और सबसे बड़ी बात कि राजस्व अर्जन किया जा सके जिसकी जरूरत सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों के लिए है. इसके अलावा हमारे युवाओं को पर्याप्त रोजगार देने के लिए पैसा कमाया जा सके.  

कर्नाटक की घटना के खिलाफ कॉरपोरेट मुखर हुए
 
लेकिन सामाजिक उदारवाद का गिरता स्तर और कट्टरता का बिगड़ता माहौल, नफरत और विभाजन का फैलाव आर्थिक विकास की नींव को हिलाकर रख देता है. यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कुछ साहसी कॉरपोरेट एक्जीक्यूटिव कर्नाटक में हो रही घटनाओं के बारे में मुखर हो रहे हैं, जो कि उद्यमशीलता और गतिशीलता के लिए जाना जाता है. सोशल मीडिया में आवाज उठाने वाले ऐसे साहसी लोगों के खिलाफ आशा के अनुरूप ही तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है. लेकिन हमारी चिंताएं इससे बड़ी और वास्तविक हैं. यह कोई रहस्य नहीं है कि पिछले कुछ वर्षों में हमारे यहां ऐसे बिजनेसमैन की संख्या में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई है जो स्वयं को अनिवासी भारतीय घोषित कर रहे हैं. 

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नफरत का बढ़ता शोर...अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराध

नफरत का बढ़ता शोर, उत्तेजना को बिना छिपाये भड़काना और यहां तक कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराध... हमारे समाज की मिलनसार, समावेशी परंपराओं से बहुत दूर के लक्षण हैं. त्योहारों का साझा उत्सव, अलग-अलग धर्मों के समुदायों के बीच अच्छे पड़ोसी संबंध, कला, सिनेमा और रोजमर्रा की जिंदगी में आस्था और विश्वास का व्यापक मेल-मिलाप-जिसके हजारों भी उदाहरण हैं- ये सालों से हमारे समाज की एक गौरवपूर्ण और टिकाऊ विशेषता रही हैं. संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए इसे कमजोर करना भारतीय समाज और राष्ट्रीयता की समग्र और समन्वित नींव को कमजोर करना है. 

असहमति को निर्ममता से कुचलने की कोशिश

भारत को स्थायी उन्माद की स्थिति में रखने के पीछे इस नई, व्यापक विभाजनकारी योजना में कुछ और भी घातक है. सभी असहमतियों और विचारों को जो कि सत्ता के खिलाफ हैं उसे निर्ममता से कुचलने की कोशिश की जाती है. राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाया जाता है और राज्य मशीनरी की पूरी शक्ति उनके विरुद्ध झोंक दी जाती है. एक्टिविस्टों को धमकाया जाता है और उन्हें चुप करा दिया जाता है. सोशल मीडिया का विशेष रूप से ऐसे तथ्यों का प्रचार करने के लिए उपयोग किया जाता है जिसे केवल झूठ और जहरीला ही बताया जा सकता है. डर, धोखा और धमकी तथाकथित 'मैक्सिम गवर्नेंस, मिनिमम गवर्नमेंट' रणनीति के स्तंभ बन गए हैं. मोदी सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने की प्रथा शुरू की है क्योंकि इस दिन संविधान सभा ने 1949 में संविधान को अंगीकार किया था. लेकिन यह सरकार देश की हर संस्था को व्यवस्थित रूप से खत्म करते हुए संविधान का पालन करने का दिखावा करती है. यह सरासर पाखंड है. 

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विदेशों में एक्सक्लूसिव दिखना चाहते हैं, घर में कितना इनक्लूसिव हैं

हम विश्व स्तर पर कितना विशिष्ट दिखना चाहते हैं, यह महत्वपूर्ण रूप से इस बात पर निर्भर करेगा कि हम घर पर कितने समावेशी बनते हैं, ऐसा सिर्फ नारों के माध्यम से नहीं बल्कि वास्तविक कार्यों के माध्यम से होगा. आखिर हेट स्पीच बोलने वालों के खिलाफ चाहे वह किसी भी दिशा से आए, सार्वजनिक और से स्पष्ट रूप से एक्शन लेने से प्रधानमंत्री को कौन रोकता है? आदतन अपराधी आजाद घुमते हैं, इनके द्वारा भड़काऊ भाषण दिए जाने पर कोई रोक नहीं है. वास्तव में ऐसा लगता है कि ऐसे लोग किसी किस्म की आधिकारिक शह का आनंद लेते हैं और इसलिए भड़काऊ और मुकदमा चलने वाले बयानों के बचकर निकल जाे हैं.  

विपरित विचारधारा का स्वागत अब भूतकाल की चर्चाएं

जोरदार बहस, चर्चाएं और यहां तक कि ऐसी कोई भी बातचीत जहां विपरित विचारधारा का स्वागत किया जाता है ऐसी चीजें अब भूतकाल की बात हो गई हैं. और इससे हम सब गरीब ही हुए हैं. यहां तक कि शिक्षा जगत, जिसे कभी नई विचार प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित करने के लिए सम्मानित किया जाता था, अब ऐसे लोग दुनिया के अन्य हिस्सों के समकक्षों के साथ संवाद स्थापित करने के लिए शक के दायरे में हैं. जैसे-जैसे आस्था को कमतर दिखाना और पूरे समुदायों की आलोचना करना सामान्य हो गया है, अब हम ये देखने लगे हैं कि विभाजनकारी राजनीति हमारे वर्किंग प्लेस को प्रभावित करने लगी है. यही नहीं इस ट्रेंड को अब हम पड़ोस और लोगों के घरों में प्रवेश करते हुए देख रहे हैं. नफरत को इस देश ने इस तरह से दिन प्रतिदिन के स्तर पर कभी नहीं देखा था जो कि हमारे नागरिकों को गुजरना पड़ रहा है. 

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हमारी यह अद्भुत भूमि विविधता, बहुलता और रचनात्मकता का घर रही है और इसने महान विभूतियों और व्यक्तित्वों को जन्म दिया है जिनके कार्यों को दुनिया भर में पढ़ा और स्वीकार किया गया है. देश का अब तक का उदारवादी वातावरण और समावेशी नीति, समायोजन और सहिष्णुता की भावना ने इसे संभव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. एक बंद समाज जो एकतरफा सोच को प्रोत्साहित करता है, वहां से शायद ही नए विचारों का प्रवाह संभव हो पाए. 

बोगस राष्ट्रवाद की वेदी पर शांति और बहुलतावाद की बलि नहीं देख सकते

नफरत, कट्टरता, असहिष्णुता और असत्य का एक कयामत आज हमारे देश में व्याप्त है. यदि हम इसे नहीं रोकते हैं तो यह हमारे समाज ऐसे तहत नहस करेगा जिसकी मरम्मत करनी मुश्किल होगी. हम इसे जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकते हैं और न ही देना चाहिए. हम एक व्यक्ति के रूप में खड़े होकर बोगस राष्ट्रवाद की वेदी पर शांति और बहुलतावाद की बलि नहीं देख सकते हैं. आइए नफरत के इस प्रचंड आग को रोकें, नफरत की यह सुनामी जो कि पिछली पीढ़ियों द्वारा इतनी मेहनत से तैयार माहौल को ढहाने को तैयार दिखती है इसे रोकें.  

एक सदी से भी पहले, भारतीय राष्ट्रवाद के कवि ने दुनिया को अपनी अमर गीतांजलि दी थी, जिसका शायद 35वां श्लोक सबसे प्रसिद्ध और सबसे अधिक उद्धृत किया गया है. गुरुदेव टैगोर की प्रार्थना, इसकी मूल पंक्तियों के साथ शुरू होती है, “Where the mind is without fear….” यह आज अधिक प्रासंगिक है और आज इसकी प्रतिध्वनि बढ़ गई है. 

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