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Mission 2024: 3 राज्यों की 80 सीटों पर 'चुनावी मैनेजर' सुनील बंसल की अगली अग्नि परीक्षा, BJP ने दिया नया टास्क

उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत में अहम भूमिका अदा करने वाले सुनील बंसल का प्रमोशन कर राष्ट्रीय महामंत्री बनाकर पश्चिम बंगाल, तेलंगना और ओडिशा जैसे राज्य की जिम्मेदारी सौंपी गई है. इस तरह से बीजेपी ने सुनील बंसल को काफी मुश्किल टॉस्क सौंपा है, जहां उन्हें क्षेत्रीय दलों के दुर्ग को भेदकर 2024 के चुनाव में कमल खिलाने की चुनौती होगी?

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सुनील बंसल
सुनील बंसल

उत्तर प्रदेश के बीजेपी के महामंत्री संगठन रहे सुनील बंसल को पार्टी ने प्रमोशन देकर राष्ट्रीय महामंत्री नियुक्त किया है. यूपी में बीजेपी के जीत के बैक स्टेज हीरो रहे सुनील बंसल को अपने सबसे कठिन मोर्चे का जिम्मा सौंपा है. उन्हें पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और ओडिशा का प्रभारी बनाया है. 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी ने ममता बनर्जी, केसीआर और नवीन पटनायक जैसे क्षत्रपों के मजबूत दुर्ग भेदने की जिम्मेदारी सुनील बंसल को दी है. ऐसे में देखना है कि यूपी की तरह बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना में बीजेपी के लिए पथरीली पड़ी जमीन पर कैसे कमल खिला पाते हैं? 

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यूपी में जिस तरह से 80 लोकसभा सीटें है, उसी तरह बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना तीनों राज्यों में कुल 80 संसदीय सीटें आती हैं. ऐसे में साफ है कि बीजेपी यूपी के बराबर की उन्हें टारगेट दिया. इन तीनों ही राज्यों में पूरी तरह से क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व कायम है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, ओडिशा में नवीन पटनायक और तेलंगाना में केसीआर का सियासी दबदबा और तीनों ही अपने-अपने राज्य में अजेय माने जाते हैं. ऐसे में सुनील बंसल के लिए तीनों ही राज्यों में बीजेपी को सफलता दिलाने का सबसे कठिन जिम्मेदारी दी गई है.  

बता दें कि सुनील बंसल ने यूपी में महामंत्री संगठन का जिम्मा ऐसे वक्त में संभाला था जब बीजेपी के लिए सूबे में सूखा पड़ा था और पार्टी के 9 सांसद और 51 विधायक थे. अमित शाह के सहयोगी बनकर आए सुनील बंसल ने यूपी में सपा-बसपा जैसे क्षेत्रीय दलों सियासी वर्चस्व को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया. 'मोदी लहर' के सहारे बीजेपी 2014 के चुनाव में 71 सीटें जीतने में कामयाब रही. इसके बाद बीजेपी का फिर चुनाव-दर-चुनाव जीत का सिलसिला जारी रहा. 

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ममता के किले को क्या ध्वस्त कर पाएंगे?

आठ साल से ज्यादा समय यूपी में गुजारने के बाद सुनील बंसल को अब बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना के मिशन का जिम्मा सौंपा गया है. बीजेपी के लिए पश्चिम बंगाल सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है. 2019 के चुनाव में बीजेपी पश्चिम बंगाल में दो से 18 संसदीय सीटें जीतने में कामयाब रही थी और टीएमसी 34 से घटकर 22 सीट पर आ गई थी. हालांकि, 2021 विधानसभा चुनाव में बीजेपी अपनी पूरी ताकत झोंकने के बाद भी टीएमसी को मात नहीं दे पाई. ममता बनर्जी तीसरी बार सीएम बनने में कामयाब रही, जिसके बाद टीएमसी छोड़कर बीजेपी में जाने वाले नेता घर वापसी शुरू की तो अभी तक जारी है. 

2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने बंगाल का प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय की जगह सुनील बंसल को बनाया है. बंसल के सामने पहली चुनौती बीजेपी को छोड़कर टीएमसी में जाने वाले नेताओं को रोकना है तो दूसरी तरफ 2024 के चुनाव में पिछले नतीजे को दोहराने ही नहीं बल्कि उससे ज्यादा सीटें जीतने की चुनौती है. बंसल के लिए यह चुनाती इसीलिए भी मुश्किल हो रही है क्योंकि ममता बनर्जी इस बार बंगाल की 42 सीटों में से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने पर जोर लगा रही है ताकि विपक्षी खेमे से पीएम पद की दावेदारी कर सकें. ऐसे में सुनील बंसल को बीजेपी के लिए किस तरह की जमीन तैयार कर पाते हैं?  

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पटनायक को पटकनी दे पाएंगे बंसल

बीजेपी ने सुनील बंसल को पश्चिम बंगाल के साथ-साथ ओडिशा का प्रभार सौंपा है, जहां पर 2024 में लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव भी है. बीजेडी अध्यक्ष नवीन पटनायक का ओडिशा मजबूत गढ़ माना जाता है. 2019 में बीजेपी ओडिशा की 21 में से 8 संसदीय सीटें जीतने में कामयाब रही थी जबकि 12 सीटें बीजेडी को और एक कांग्रेस को मिली थी. बीजेपी लोकसभा सीटें जरूर जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन विधानसभा में नवीन पटनायक के दुर्ग को नहीं भेद सकी. 

सरल स्वभाव के नवीन पटनायक दिल्ली की सियासत से दूर ओडिशा पर ही अपना ध्यान केंद्रित कर रखा है, जिसके चलते उनका किला मजबूत है. इसके अलावा केंद्रीय स्तर पर बीजेडी और बीजेपी के बीच रिश्ते भी काफी मधुर रहे हैं. इसके चलते नवीन पटनायक को लेकर बीजेपी बहुत आक्रमक नहीं रहती. ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी 2024 के चुनाव में ओडिशा की ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटें जीतने की कवायद में हो, लेकिन राज्य की सत्ता के लिए नवीन पटनायक के युग के बाद का इंतजार कर रही है. ऐसे में सुनील बंसल के कंधों पर ओडिशा में बीजेपी की मजबूत नींव रखने का जिम्मा और 2024 में संसदीय सीटों पर काबिज होने का भार है. 

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तेलंगना पर बीजेपी का पूरा फोकस

बीजेपी का दक्षिण भारत में पहला टारगेट केसीआर के मजबूत गढ़ तेलंगाना को भेदेने की है. बीजेपी ने अपनी कार्यकारिणी की बैठक तेलंगना के हैदराबाद में किया था, जहां पीएम मोदी ने वंशवाद की राजनीति के बहाने केसीआर पर जमकर हमले किए थे. 2019 लोकसभा चुनाव में 17 सीटों में से 4 सीटें जीतने के बाद से बीजेपी ने अपना पूरा फोकस तेलंगाना पर केंद्रित कर रखा है. हैदराबाद नगर निगम चुनाव में बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर अमित शाह और योगी आदित्यनाथ तक रैली की थी, जिसके चलते पार्टी दूसरे नंबर रही थी. 

वहीं, बीजेपी ने सुनील बंसल को तेलंगना का प्रभारी बनाकर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है, लेकिन उनके लिए केसीआर के गढ़ में बीजेपी के सियासी ग्राफ को बढ़ाने की चुनौती होगी. सूबे की 17 लोकसभा सीटें है, जिनमें से टीआरएस के पास 9, बीजेपी के पास चार, कांग्रेस के पास 3 और AIMIM के पास एक सीट है. बीजेपी की पूरी कोशिश तेलंगना में कांग्रेस के जगह को कब्जाने का और फिर केसीआर के दुर्ग को भेदने की रणनीति है. 
 

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