EWS आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को अब दस फीसदी आरक्षण का रास्ता साफ हो गया है. पूर्व चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने बहुमत से फैसला सुनाया है और देश के सभी शिक्षण संस्थानों में दाखिले और सरकारी नौकरियों में भर्ती में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण पर मुहर लगा दी है. केंद्र सरकार ने कानूनी जंग भले ही जीत लिया है, लेकिन उसके सामने नई चुनौतियों की लिस्ट फिर से तैयार हो गई है.
आरक्षण को लेकर पहले से उठती रही अलग-अलग राज्यों में मांगें अब फिर से सिर उठा सकती है, क्योंकि अधिकतम 50 प्रतिशत आरक्षण होने का दायरा भी टूट गया है. इंदिरा साहनी फैसले के चलते सुप्रीम कोर्ट अभी तक जाट, मराठा, पाटीदार, कापू आदि आरक्षणों को खारिज करता रहा है और कहता रहा है कि आरक्षण को 50 फीसदी से ऊपर नहीं बढ़ाया जा सकता है. लेकिन ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद सवाल उठने लगा है कि 50 फीसदी आरक्षण का स्लैब क्या टूट गया है?
50 फीसदी आरक्षण की सीमा टूटी?
दिल्ली विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर लक्ष्मण यादव कहते हैं कि ईडब्ल्यूएस पर आज के फैसले से इंदिरा साहनी के 50 फीसदी आरक्षण का दायरा भी खत्म हो गया है, क्योंकि आरक्षण का दायरा अब 60 फीसदी हो गया है. सुप्रीम कोर्ट भले ही कहे कि EWS को बाकी बचे 50 फीसदी में से 10 फीसदी आरक्षण दिया गया, लेकिन सामान्य वर्ग के लिए 50 फीसदी का जो निर्धारित कोटा था, वो सभी जातियों को लिए ओपेन था. ऐसे में अब ईडब्ल्यूएस आरक्षण के बाद न्यायालय 50 फीसदी का स्लैब तोड़ने को तैयार हो गया है. इससे भविष्य में अन्य तरह के आरक्षणों के लिए भी जगह बन गई है.
जाट-मराठा-गुर्जर-कापू आरक्षण की मांग
बता दें कि हरियाणा में जाट, गुजरात में पाटीदार, महाराष्ट्र में मराठा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कापू समुदाय के आरक्षण की मांग करता रहा है. ईडब्ल्यूएस आरक्षण का रास्ता साफ होने के बाद सामान्य वर्ग के गरीबों के साथ-साथ इन समुदायों को भी 10 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलेगा, लेकिन इनकी मांग इससे अलग है. ये तमाम समुदाय अपने लिए आरक्षण की अलग से मांग कर रहे हैं या फिर ओबीसी में शामिल होने की डिमांड करते हैं.
पिछले साल जब मराठा आरक्षण को लेकर सुनवाई चल रही थी तो सुप्रीम कोर्ट ने पक्ष-विपक्ष की तमाम दलीलों को सुनने के बाद सभी राज्यों को नोटिस जारी किया था और उनसे इस बात पर जवाब मांगा था कि क्या 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दिया जा सकता है. उस वक्त यह सवाल उठा था कि यदि 50 फीसदी की सीमा के परे जाकर मराठाओं को आरक्षण दिया जाएगा तो क्या पूरे देश में हर जाति के लोग आरक्षण की मांग नहीं करने लगेंगे? जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू आरक्षण की डिमांड भी जोर नहीं पकड़ेगी, क्योंकि उसी तरह गुर्जर, जाट, पाटीदार और कापू जाति के लोग भी जब तब आंदोलन करते रहे हैं.
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम और बीजेपी के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि ईडब्ल्यूएस 10 फीसदी आरक्षण पीएम मोदी की वजह से मिला है. हमारी पार्टी महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के लिए कोशिश कर रही है. दस फीसदी आरक्षण का लाभ महाराष्ट्र के लोगों को उठाना चाहिए. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसला का स्वागत किया और कहा कि मराठा समुदाय को भी ईडब्ल्यूएस 10 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलेगा.
जाट आरक्षण की फिर उठेगी मांग
ईडब्ल्यूएस को मिले 10 फीसदी आरक्षण को उदाहरण बनाकर आंदोलनकारी समाज या जाति समूह ने अपनी मांग तेज करने की तैयारी शुरू कर दी है. अगले महीने 11 दिसंबर को हरियाणा के रोहतक में जाट समुदाय की एक बैठक होनी, जहां पर आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन फिर से शुरू करने की रणनीति बनेगी. इसके अलावा ओबीसी समुदाय अपनी आबादी के हिसाब से आरक्षण की मांग के लिए जातिगत जनगणना की मांग तेज कर सकता है.
अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के संयोजक यशपाल मलिक कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के EWS फैसले से जाट समुदाय के आरक्षण की उम्मीद जागी है, क्योंकि कोर्ट अभी तक जाट आरक्षण को 50 फीसदी स्लैब के चलते खारिज करता रहा है. कोर्ट ने अब खुद आरक्षण 50 फीसदी बैरियर को तोड़ दिया है तो फिर जाट समुदाय को आरक्षण देने की मांग मान लेनी चाहिए. अब न तो राजनीतिक दलों के पास कोई बहाना बचता है और न ही सरकार व कोर्ट के पास. रोहतक की बैठक में जाट आरक्षण आंदोलन को फिर से खड़े करने की प्लानिंग बनेगी और फरवरी-मार्च में हम अपना आंदोलन जिले स्तर पर शुरू कर देंगे.
ओबीसी आरक्षण बढ़ाने की डिमांड
मंडल कमीशन ने अपनी सिफारिशों में बताया था कि देश में ओबीसी की करीब आबादी 52 फीसदी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय कर रखी थी. इसलिए मंडल आयोग ने ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की थी. अब सामान्य वर्ग के गरीबों को जब से 10 फीसदी आरक्षण दिया गया है, तब से ही पिछड़ी जातियों के समूह ने ओबीसी आरक्षण को 27 फीसदी से बढ़ाने की मांग करती रही हैं. तर्क दिया जा रहा है कि ईडब्ल्यूएस पर फैसले के बाद 50 फीसदी से ज्यादा कोटे का रास्ता साफ हो गया है.
जातिगत जनगणना की मांग उठेगी
ओबीसी अपनी आबादी के हिसाब से आरक्षण की मांग उठा सकते हैं. ऐसे में जातिगत जनगणना की मांग एक बार फिर से जोर पकड़ सकती है. आरजेडी, सपा, जेडीयू जैसे क्षेत्रीय दल इसी मांग कर सकते हैं. ईडब्ल्यूएस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कांग्रेस ने स्वागत किया है. कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने याद दिलाया कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने 2005-2006 में यह प्रक्रिया शुरू की थी, जिसके कारण 103वां संविधान संशोधन हुआ. इसके बाद व्यापक विचार-विमर्श किया गया और 2014 तक विधेयक तैयार हो गया था, लेकिन मोदी सरकार ने उस विधेयक को लागू करने में पांच साल लगा दिए.
जयराम रमेश ने साथ ही कहा कि सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना 2012 तक पूरी हो गई थी, उस समय तो मैं खुद केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री था. मोदी सरकार ने उस पर अभी तक अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है. जाति जनगणना कराने की कांग्रेस पार्टी समर्थन करती है और इसे शुरू करने की मांग करती है. कांग्रेस नेता उदित राज ने इंदिरा साहनी के फैसला का कोर्ट हमेशा हवाला देता रहा हैजब भी एससी-एसटी-ओबीसी आरक्षण के मामले आए तब सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा 50 फीसदी आरक्षण की लिमिट याद दिलाई, लेकिन अब यू-टर्न ले लिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ में 1993 के अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि आरक्षित सीटों, पदों की कुल संख्या उपलब्ध सीटों या पदों के 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकती है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट यह भी कहा था कि आरक्षण की संवैधानिक प्रावधान के तहत अकेले आर्थिक पिछड़ापन एक मानदंड नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट सोमवार को उस फैसले के खिलाफ से इतर अलग रुख अख़्तियार किया और 10 फीसदी आरक्षण आर्थिक आधार पर गरीब सामान्य वर्ग के लोगों देने का निर्णय लिया.
कई राज्यों में कई जातियां आरक्षण की मांग करती रही हैं और राज्य सरकारें और अलग-अलग दल भी इसका समर्थन करते रहे हैं. कर्नाटक 70, आंध्र प्रदेश 55 और तेलंगाना 62 फ़ीसदी तक आरक्षण बढ़ाना चाहते हैं. राजस्थान और हरियाणा में भी कुछ जातियां आरक्षण की जोरदार मांग करती रही हैं और यहां हिंसक प्रदर्शन तक हो चुके हैं. ऐसे में अब आरक्षण की मांग फिर कर सकती हैं?