प्रशांत किशोर ने भले ही I-PAC छोड़ दिया हो लेकिन उनकी टीम को ममता ने 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव तक के लिए जिम्मेदारी सौंपी है. ममता के करीबी बताते हैं कि वह प्रशांत किशोर को जाने नहीं देना चाहती थीं और अब उनके पास पीके के लिए कुछ अलग प्लान है. तो इन दिनों प्रशांत किशोर क्या कर रहे हैं? इस परिस्थिति को टीएमसी के एक सीनियर नेता इस तरह से परिभाषित करते हैं. वह कहते हैं कि दिन में कोई तारे नहीं देख सकता जबकि दिन में भी बहुत सारे तारे आकाश में होते हैं.
कहा जा रहा है कि पीके अनाधिकारिक तौर पर ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी, पार्टी और राज्य सरकार का सहयोग कर रहे हैं. हालांकि, टीएमसी में पीके की भूमिका को लेकर कोई औपचारिक सफाई नहीं दी गई है.
प्रशांत किशोर से ममता की मुलाकात साल 2015 में पटना में नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में हुई थी. उस समय प्रशांत, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को बीजेपी को हराने के लिए एकजुट कर रहे थे. तब से ममता और अभिषेक के साथ प्रशांत के घनिष्ठ संबंध हैं. हाल ही में एनसीपी चीफ शरद पवार से उनकी मुलाकात को लेकर काफी चर्चा हुई थी. कई लोगों का मानना है कि प्रशांत किशोर अब ममता के लिए क्षेत्रीय नेताओं से बात कर रहे हैं.
प्रशांत किशोर और पवार की मीटिंग को लेकर सूत्रों का कहना है कि प्रशांत ने एनपीसी प्रमुख से कहा कि किसी भी स्थिति में महाराष्ट्र में सरकार अस्थिर नहीं होनी चाहिए. कांग्रेस की महत्वकांक्षाएं बढ़ रही हैं. चर्चाएं हैं कि वो अपना समर्थन वापस ले सकती है. ऐसे में बीजेपी सरकार बनाने के लिए आगे आ सकती है, बीजेपी शिवसेना या एनसीपी के साथ भी सरकार बना सकती है. प्रशांत किशोर ने कहा कि ममता बनर्जी को यह रास नहीं आएगा.वह एनसीपी प्रमुख पर निर्भर हैं.
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टीएमसी अन्य राज्यों में भी अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करना चाहती है. प्रशांत की एक टीम पहले से त्रिपुरा में मौजूद है. सूत्रों का कहना है कि टीएमसी यूपी में भी कुछ सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. हालांकि विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद बीजेपी बंगाल के लिए अपने प्लान से पीछे नहीं हटी है. ऐसे में ममता चाहती हैं कि प्रशांत किशोर टीएमसी के साथ रहें. टीएमसी प्रमुख को लगता है कि हाल के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रदर्शन के बाद सभी विपक्षी मुख्यमंत्रियों के पास साथ आने का एक और मौका है.
प्रशांत किशोर अमरिंदर सिंह, एमके स्टालिन और अरविंद केजरीवाल से भी मिल सकते हैं, वह इन लोगों के साथ काम भी कर चुके हैं. पंजाब में अगले साल चुनाव होने हैं. ऐसे में यह भी दिलचस्प है कि एसएडी और बीएसपी का नया गठबंधन किस दल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है.
हालांकि, प्रशांत किशोर एंटी-बीजेपी क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे. कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पूरे भारत में भाजपा के आक्रामक विस्तारवाद के चलते क्षेत्रीय दलों के लिए थोड़ी जगह बनेगी. प्रशांत किशोर इसी भावना के साथ ममता के इशारे पर खेलना चाहते हैं.
जयंत घोषाल
(लेखक कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार हैं)