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क्या त्रिपुरा में बीजेपी की मजबूती ने लेफ्ट-कांग्रेस के दिल मिलवा दिए?

त्रिपुरा चुनाव को लेकर सभी पार्टियां जमीन पर सक्रिय हो गई हैं. इस चुनाव में पहली बार लेफ्ट ने कांग्रेस से हाथ मिलाया है. दूसरी तरफ टीएमसी भी अपनी किस्मत आजमाने जा रही है. वहीं बीेजेपी तो एक बार फिर पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने की बात कर रही है.

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त्रिपुरा चुनाव में लेफ्ट-कांग्रेस साथ
त्रिपुरा चुनाव में लेफ्ट-कांग्रेस साथ

पूर्वोत्तर के राज्य त्रिपुरा में चुनावी शंखनाद हो चुका है. जमीन पर सभी पार्टियों की तरफ से जोरदार प्रचार भी शुरू कर दिया गया है. एक तरफ बीजेपी के सामने सत्ता बचाने की चुनौती है तो दूसरी तरफ लेफ्ट को अपने खोए किले को फिर वापस पाने की इच्छा है. कांग्रेस शून्य से अपनी टैली को फिर बढ़ाना चाहती है तो वहीं टीएमसी पूरे दमखम के साथ खेला होबे की उम्मीद लगाए बैठी है. इस बार के त्रिपुरा चुनाव को लेकर अलग ही तैयारी चल रही है. इस तैयारी में ऐसे राजनीतिक समझौते भी हुए हैं जो वैसे कभी देखने को नहीं मिलते.

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कांग्रेस-लेफ्ट साथ कैसे आ गए?

त्रिपुरा एक ऐसा राज्य रहा है जहां पर बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई. लेकिन इसी राज्य में कई सालों तक लेफ्ट का राज रहा, कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल. शायद ही तब ऐसा कोई दिन जाता था जब लेफ्ट और कांग्रेस के बीच में आरोप-प्रत्यारोप का दौर देखने को नहीं मिलता. लेकिन अब जब त्रिपुरा में चुनावी समीकरण बदल चुके हैं और बीजेपी काफी ताकतवर मानी जा रही है, ऐसी स्थिति में लेफ्ट और कांग्रेस के दिल भी मिल गए हैं. कहने को एक दूसरे कट्टर विरोधी, लेकिन बीजेपी को हराने के लिए साथ आ गए हैं. इस चुनाव में लेफ्ट 47 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है तो कांग्रेस को 13 सीटें दी गई हैं. अब कांग्रेस को कम सीटें मिलने के कई कारण हैं. पहला ये कि उसका त्रिपुरा में सियासी जनाधार कमजोर होता गया है, दूसरा ये कि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान उसका खाता तक नहीं खुल पाया था.

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त्रिपुरा का होगा बंटवारा, कौन कर रहा मांग?

अब बीजेपी से कांग्रेस में आए सुदीप रॉय बर्मन ने कम सीटों को एक बलिदान बता दिया है. वे कहते हैं कि ये अप्रत्याशित समय है. विरोधियों ने भी बीजेपी को हराने के लिए हाथ मिलाए हैं. कांग्रेस इस चुनाव में सिर्फ 13 सीटें इसलिए लड़ रही है क्योंकि किसी को तो बदिलान देना था. सुदीप ने आजतक से बात करते हुए एक बड़ा सियासी हिंट भी दिया. उन्होंने कहा कि चुनावी नतीजों के बाद त्रिपुरा में तिप्रा मोथा के साथ भी गठबंधन किया जा सकता है. तिप्रा मोथा राज्य का एक क्षेत्रीय दल है. ये वो पार्टी है जो लंबे समय से त्रिपुरा के बंटवारे की बात कर रही है, एक अलग राज्य की चाह रखती है. अब कांग्रेस इस पार्टी से हाथ मिलाने की बात तो कर रही है, लेकिन अलग राज्य वाले स्टैंड को स्वीकार नहीं करती है. दूसरी तरफ शाही परिवार से आने वाले प्रद्योत किशोर माणिक्य देब बर्मा टिपरा मोथा पार्टी के साथ हर किसी का समीकरण बिगाड़ने के लिए तैयार हैं. वे देब बर्मा ट्राइब का मुद्दा लेकर मैदान पर उतरे हैं...जिन्हें अपने साथ मिलाने की कोशिश में लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन और टीएमसी है...लेकिन माणिक्य देबबर्मा अकेले ही जीत का दम भरते नजर आ रहे हैं... यही वजह है कि वो बीजेपी के खास निशाने पर हैं.

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CPIM का कांग्रेस के साथ प्रयोग

वैसे इस त्रिपुरा चुनाव में कांग्रेस ने लेफ्ट से हाथ मिलाया, ये इतनी बड़ी बात नहीं है, लेकिन लेफ्ट को कांग्रेस को अपने साथ मिलाना पड़ा, ये बड़ा संदेश देता है. त्रिपुरा एक समय लेफ्ट का अजय दुर्ग माना जाता था. यहां पर CPIM के लिए जीतना कोई बड़ी बात नहीं मानी जाती थी. लेकिन अब जब से जमीन पर बीजेपी मजबूत हुई है, कई वर्गों तक उसकी पैठ बनी है, लेफ्ट ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. उधर शाही परिवार से आने वाले प्रद्योत किशोर माणिक्य देब बर्मा टिपरा मोथा पार्टी के साथ हर किसी का समीकरण बिगाड़ने के लिए तैयार है... देब बर्मा ट्राइब का मुद्दा लेकर मैदान पर उतरे हैं...जिन्हें अपने साथ मिलाने की कोशिश में लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन और टीएमसी है...लेकिन माणिक्य देबबर्मा अकेले ही जीत का दम भरते नजर आ रहे हैं... यही वजह है कि वो बीजेपी के खास निशाने पर हैं. 

टीएमसी चुनाव में कहां खड़ी?

इस बार ममता बनर्जी की टीएमसी भी अपनी चुनावी किस्मत आजमा रही है. पश्चिम बंगाल में बीजेपी को हरा सरकार में वापसी करने वालीं ममता त्रिपुरा में भी खेला होबे वाला दांव चाहती हैं. उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी इस वजह से लगातार राज्य का दौरा कर रहे हैं. उनकी तरफ से जन संपर्क अभियान चलाया जा रहा है. अभिषेक बनर्जी कहते हैं कि कई सालों तक सीपीएम का राज देखा. उन्होंने त्रिपुरा को खत्म कर दिया. अब सीएमएम के गुंडों ने ही बीजेपी की जर्सी डाल ली है. अब इन तमाम सियासी दावों के बीच त्रिपुरा चुनाव के लिए बीजेपी की चुनावी मशीन भी सक्रिय हो गई है. बीजेपी के दिग्गज नेताओं का रुख नार्थ ईस्ट की ओर घूम गया है. गृह मंत्री अमित शाह ने तो पहले ही जीत का दावेदारी ठोंक दी है. वे कहते हैं कि आदिवासी समाज के लिए इस सरकार ने जितना काम किया है, उतना किसी दूसरी सरकार में नहीं हुआ. ओबीसी और आदिवासी समाज को बिजली, साफ पानी व्यवस्था मिली है.

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जानकारी के लिए बता दें कि त्रिपुरा चुनाव के लिए 16 फरवरी को वोट पड़ने वाले हैं और 2 मार्च को नतीजे आएंगे. पूर्वोत्तर के इस राज्य में साल 2018 में बीजेपी ने इतिहास रचा था. 25 साल के लाल किले को एक प्रचंड बहुमत के साथ ध्वस्त कर दिया था. उस चुनाव में 60 विधानसभा सीटों में से बीजेपी और उसके सहयोगी दल ने साथ मिलकर 43 सीटें जीत ली थीं. वहीं सीपीएम को 16 सीटों से संतुष्ट करना पड़ा था.

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