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होली से पहले पूर्वोत्तर में छाया भगवा, त्रिपुरा में BJP को बहुमत, मेघालय-नगालैंड में भी गठबंधन की सरकार

पूर्वोत्तर की सियासत में बीजेपी का दबदबा और ज्यादा बढ़ गया है. त्रिपुरा-नगालैंड और मेघालय में पार्टी सरकार बनाने जा रही है. आठ में सात पूर्वोत्तर के राज्य में बीजेपी सरकार में है. यानी कि पूर्वोत्तर पर भगवा गहरा हो गया है. लेकिन पार्टी के लिए ये कमाल कैसे हुआ, क्या वो रणनीति रही जिसने बीजेपी के सितारे बुलंद कर दिए?

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होली से पहले पूर्वोत्तर में छाया भगवा
होली से पहले पूर्वोत्तर में छाया भगवा

साल 2023 चुनावों के लिहाज से बीजेपी के लिए शुभ समाचार के साथ शुरू हुआ है. पूर्वोत्तर के तीन राज्य त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रही है. इन तीन राज्यों में बीजेपी सरकार का मतलब है कि पूर्वोत्तर भगवा हो चुका है. इस समय त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के अलावा असम, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की सरकार है. यानी कि 8 पूर्वोत्तर राज्यों में से सात में बीजेपी ने जीत का परचम लहराया है. सिर्फ मिजोरम में एमएनएफ की सरकार है.

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क्या कहते हैं चुनावी नतीजे?

अब त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड चुनाव की बात करें तो इन तीनों राज्यों में से दो में तो बीजेपी को स्पष्ट जनादेश मिला है, वहीं मेघालय में त्रिशंकु विधानसभा है. लेकिन वहां भी मुख्यमंत्री संगमा ने गृह मंत्री अमित शाह से फोन पर बात कर ली है, नई सरकार बनाने के लिए समर्थन मांगा है. वो समर्थन भी मिल गया है, ऐसे में इस राज्य में कम सीटों के बावजूद एक बार फिर बीजेपी सरकार में शामिल होने जा रही है. एनपीपी और बीजेपी मिलकर मेघालय में सरकार बनाने जा रही है. तीनों राज्यों के नतीजों की बात करें तो त्रिपुरा में बीजेपी को 33, लेफ्ट-कांग्रेस को 14, टीएमपी को 13 सीटें मिली हैं. नगालैंड में एनडीपीपी और बीजेपी गठबंधन को 37 सीटें मिली हैं, यानी कि पूर्ण बहुमत. वहीं कांग्रेस इस बार अपना खाता खोलने में विफल रही है. एनपीएफ को मात्र 2 सीटें मिली हैं और अन्य के खाते में 21 सीटें गई हैं. मेघालय की बात करें तो यहां पर त्रिशंकु विधानसभा बनी है. एनपीपी सबसे बड़ी पार्टी बन उभरी है, उसके खाते में 26 सीटें गई हैं, वहीं बीजेपी 3 सीट जीतने में कामयाब रही है. कांग्रेस को पांच सीटों से संतुष्ट करना पड़ा है और अन्य को 25 सीटें मिली हैं.

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2014 से पहले पूर्वोत्तर में बीजेपी

अब इन तीन चुनावी नतीजों के बाद पूर्वोत्तर में भगवा और ज्यादा गहरा हो गया है. 8 में से 7 राज्यों में कमल खिल चुका है. लेकिन ये परिस्थिति 2014 के बाद से बदली है. एक दौर ऐसा भी था जब इन राज्यों में सिर्फ कांग्रेस और कुछ क्षेत्रीय दलों का दबदबा था. बीजेपी को तो हिंदी भाषी पार्टी बोलकर ही खारिज कर दिया जाता था. पार्टी ने कोशिश तो 2014 से पहले भी की, लेकिन उसे सफलता सिर्फ 2003 में मिली जब अरुणाचल में बीजेपी की सरकार बनी थी. तब कांग्रेस के एक दिग्गज नेता ने पार्टी के अंदर ही बगावत की थी और कई नेता बीजेपी में शामिल हो गए थे. उस वजह से पहली बार किसी पूर्वोत्तर राज्य में बीजेपी की सरकार बनी थी. लेकिन उसके बाद बीजेपी के लिए पूर्वोत्तर में सियासी सूखा ही रहा और जमीन पर समीकरण 2014 के बाद बदलने शुरू हुए.

कैसे कांग्रेस मुक्त होता गया पूर्वोत्तर?

इसे ऐसे समझ सकते हैं कि 2014 तक असम, मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में कांग्रेस का राज था. वहीं त्रिपुरा में लेफ्ट का शासन चल रहा था और सिक्किम में एसडीएफ की सरकार थी. तब नगालैंड में भी एनपीएफ सत्ता में थी जिसे इस चुनाव में मात्र दो सीटें मिली हैं. लेकिन 2016 से पूर्वोत्तर में बीजेपी के गर्दिश में चल रहे सितारे बुलंद होने शुरू हो गए थे. इसकी शुरुआत हुई थी असम विधानसभा चुनाव से जहां पार्टी ने हिमंता बिस्वा सरमा की मदद से कांग्रेस के शासन को उखाड़ फेंका था और पहली बार राज्य में सरकार बनाई थी. उसके बाद दूसरा सबसे बड़ा उलटफेर 2018 में देखने को मिला जब बीजेपी ने पहली बार त्रिपुरा में अपनी सरकार बनाई. वो जीत बीजेपी के लिए सबसे बड़ा बूस्टर रही. जिस लेफ्ट की विचारधारा का सबसे ज्यादा विरोध किया, उसको उसी के सबसे ताकतवर राज्य में मात दी गई थी. 25 साल के शासनकाल को ध्वस्त कर डाला था. देखते ही देखते इसके बाद सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर में भी बीजेपी ने अपनी सरकार बनाई और पूर्वोत्तर का सियासी नक्शा बदलकर रख दिया. बड़ी बात ये है कि बीजेपी सरकार बनाने के बाद सत्ता में वापसी भी दोबारा कर रही है. फिर चाहे बात असम की हो या हाल में हुए इन तीन विधानसभा चुनावों की.

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पीएम मोदी पूर्वोत्तर विस्तार की अहम कड़ी

सवाल ये उठता है कि 2014 के बाद ऐसा क्या बदला कि बीजेपी को पूर्वोत्तर में इतनी जबरदस्त बढ़त मिल गई? इसका जवाब छिपा है मोदी सरकार की नॉर्थ ईस्ट पॉलिसी में. असल में 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर नॉर्थ ईस्ट का दौरा किया है, वे समय-समय पर कई राज्यों का दौरा करते रहे हैं. कभी किसी योजना के चलते तो कभी किसी राजनीतिक कार्यक्रम के लिए. लेकिन लोगों के मन में ये छाप छूटी कि देश का प्रधानमंत्री लगातार उनके बीच आ रहा है. बीजेपी दावा करती है कि इससे पहले कोई दूसरा पीएम इस तरह से पूर्वोत्तर का दौरा नहीं करता था, कोई भी नियमित रूप से वहां की जनता से नहीं मिलता था. ये परसेप्शन वहां के लोगों के बीच भी पैठ जमा चुका है, ऐसे में पीएम की लोकप्रियता में अच्छा उछाल है. 

बीजेपी का लाभार्थी वोटबैंक

पूर्वोत्तर में बीजेपी की ग्रोथ का एक कारण सरकारी योजनाओं का जमीन पर पहुंचना भी है. बीजेपी ने ये पिछले कुछ चुनावों से साबित कर दिया है कि अगर समाज के अंतिम पायदान तक किसी योजना का फायदा पहुंचे तो वो लोग जाति-धर्म से ऊपर उठकर भी वोटिंग करते हैं. इसे लाभार्थी वोटबैंक कहा जाता है जो उस दल को वोट करता है जिससे उसे सबसे ज्यादा फायदा पहुंचा हो. अब त्रिपुरा, नगालैंड, मेघालय में मोदी सरकार की कई योजनाओं का सीधा फायदा वहां की जनता को मिला है. फिर चाहे बात रोड कनेक्टिविटी की रही हो या फिर पीएम आवास योजना से मिले आवासों की, इन योजनाओं ने बीजेपी को जबरदस्त फायदा पहुंचाया है. आंकड़े बताते हैं कि अकेले त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में आवास योजना के जरिए 60 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को पक्के घर दिए गए हैं. इसके अलावा केंद्र सरकार का नॉर्थ ईस्ट के लिए जो बजट रहा है, वो भी लगातार बढ़ता रहा है. इस साल पूर्वोत्तर के लिए अकेले 5892 करोड़ रुपये दिए गए हैं.

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जहां बीजेपी कमजोर, वहां क्षेत्रीय दलों से मिलाया हाथ

अब सरकारी योजनाओं की वजह से तो पूर्वोत्तर में बीजेपी को फायदा पहुंचा ही है, इसके अलावा पार्टी की 2014 के बाद से रणनीति में भी काफी बदलाव आया है. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त करने के लिए नॉर्थ-ईस्‍ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) का गठन किया गया था. 2015 में कट्टर कांग्रेसी हिमंता बिस्वा सरमा को पार्टी में शामिल किया गया और फिर वे ही पूर्वोत्तर में बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा बन गए. उनके साथ सर्बानंद सोनोवाल, पवन कुमार चामलिंग, कलिखो पुल और टीआर जीलियांग जैसे नेताओं ने भी जमीन पर बीजेपी के लिए सियासी पिच को मजबूत करने का काम किया. बीजेपी का पूर्वोत्तर में सक्सेस मंत्र ये रहा कि जहां वो कमजोर रही वहां उसने क्षेत्रीय दलों के साथ हाथ मिलाया, जहां पर अकेले सरकार बनानी थी, वहां उन चेहरों को पार्टी में शामिल किया जो सियासी रूप से वहां सक्रिय रहे. ऐसा कर पार्टी ने उन राज्यों में अपनी सरकार बनाई जहां कभी कांग्रेस का दबदबा रहता था.

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