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UP Election Results 2022: उत्तर प्रदेश की सियासत में एक समय था, जब मुस्लिम-यादव सत्ता की दशा-दिशा तय किया करते थे तो पश्चिम यूपी में जाट-मुस्लिम कॉम्बिनेशन निर्णायक माने जाते थे. मुस्लिम-यादव यानी M-Y समीकरण के दम पर सपा कई बार सूबे की सत्ता पर काबिज हुई, तो जाट-मुस्लिम फैक्टर के सहारे चौधरी चरण सिंह से लेकर चौधरी अजित सिंह किंगमेकर बनते रहे हैं. लेकिन बीजेपी के सियासी उभार के बाद सूबे की सियासी फिजा ऐसी बदल गई है कि न विपक्ष का कोई सियासी प्रयोग सफल हो रहा है न ही कोई कास्ट फैक्टर.
जाटों पर नहीं चला जयंत का जादू
2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने 273 सीटों पर जीत दर्ज की है. जबकि सपा गठबंधन को 125 सीटें मिली हैं. वहीं, कांग्रेस को दो और बसपा को एक सीट पर ही संतोष करना पड़ा है. हालांकि, किसान आंदोलन और जाट समाज की नाराजगी के चलते माना जा रहा था कि पश्चिमी यूपी में बड़ा नुकसान हो सकता है. इसकी वजह यह थी कि वेस्ट यूपी के किसानों ने बढ़-चढ़कर किसान आंदोलन में हिस्सा लिया और आंदोलन की कमान राकेश टिकैत के हाथों में आ गई.
राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी को लगा कि इस बार वेस्ट यूपी का जाट समुदाय उनके भाग्य का सितारा चमकाते हुए उन्हें उस मुकाम तक जरूर पहुंचा देगा, जहां जाने की उनकी ख्वाहिश है. 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के चलते बिखरे जाट-मुस्लिम किसान आंदोलन के चलते फिर से एकजुट हो रहे थे. पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम फैक्टर को देखते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी के साथ गठबंधन किया.
जयंत चौधरी के साथ-साथ किसान नेता और जाट समुदाय से आने वाले राकेश टिकैत ने जाट बेल्ट में घूम-घूमकर बीजेपी और योगी-मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में किसी तरह की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. इसके बावजूद बीजेपी के विजय रथ को रोक नहीं सके. शामली, मुजफ्फरनगर और मेरठ छोड़कर पश्चिमी यूपी के किसी भी जाट बहुल इलाक में सपा-रालोद गठबंधन अपना असर नहीं दिखा सका. बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, हापुड़, मथुरा, आगरा और हाथरस जैसे जिले की जाट बहुल सीटों पर बीजेपी ने एकतरफा जीत दर्ज की है.
सपा के साथ गठबंधन करने के बाद भी जयंत चौधरी की आरएलडी महज आठ सीटों पर चुनाव जीत सकी है, जबकि उसने 31 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. जाट बेल्ट में बीजेपी गुर्जर, कश्यप, सैनी, ठाकुर, वाल्मिकी, शर्मा, त्यागी जैसी जातियों के समीकरण बिठाने में कामयाब रही. ये तमाम जातियों की गोलबंदी बीजेपी के जाट बेल्ट में जीत का आधार बनी. इस तरह से बीजेपी ने पश्चिम यूपी में जाट बेल्ट में जाट-मुस्लिम समीकरण को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया.
पश्चिमी यूपी में जाट समुदाय की 'चौधराहट' को अपने आप ही अलग-थलग पड़ गया. यूपी में बीजेपी फिर से सरकार बनाने जा रही है और जयंत-अखिलेश यादव की लाख कोशिशों के बाद भी बीजेपी पश्चिमी यूपी में बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रही. सपा मेरठ और सहारनपुर छोड़कर पश्चिमी यूपी में कोई खास असर नहीं दिखा सकी तो आरएलडी का जादू शामली और मुजफ्फरनगर में दिखा.
मुस्लिम समुदाय कैसे अप्रासंगिक
2022 के विधानसभा चुनाव में माना जा रहा था कि भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर होगी, लेकिन नतीजों में ऐसा नहीं दिखा. बीजेपी ने 80 V/s 20 का जुमला उछला. वहीं सपा की ओर से कयास लगाए गए कि प्रदेश का मुसलमान बीजेपी को हराने के लिए वोट करेगा. मुस्लिम समुदाय भी सपा गठबंधन के पक्ष में खड़ा नजर आया. इसके बावजूद बीजेपी मुस्लिम बहुल 146 सीटों में से 90 सीटें जीतने में कामयाब रही. जबकि सपा-रालोद गठबंधन को 14 सीटें मिली हैं. कांग्रेस, बसपा और AIMIM एक भी सीट नहीं जीत सकी.
दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के साथ ही भाजपा ने जब सबका साथ, सबका विकास का नारा बुलंद किया तभी साफ हो गया था कि अब क्षेत्रवाद, जातिवाद, तुष्टीकरण के दिन लदने वाले हैं. किसी भी चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बीजेपी के लिए जीत की गारंटी माना जाता है. पिछले चुनाव की तरह इस बार भी इसी आधार पर मतदान हुआ और बीजेपी प्रचंड बहुमत से जीतने में कामयाब रही. हालांकि, यूपी विधानसभा में पिछली बार से ज्यादा मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बढ़ा है, लेकिन देवबंद, मेरठ दक्षिण, बुलंदशहर, तुलसीपुर, जौनपुर जैसी मुस्लिम बहुल सीट बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब रही.
मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम सपा के साथ खड़ा दिखा और वह इसलिए क्योंकि उसे भाजपा को हराना था और सूबे में उसे दूसरा बड़ा विपक्षी दल नहीं दिख रहा था. सपा के पक्ष में मुस्लिमों के मजबूती से खड़े होने के चलते हिंदू वोटों का रिवर्स ध्रुवीकरण हुआ. बहुसंख्यक समाज का वोट सपा के खिलाफ एकजुट होकर बीजेपी के पक्ष में लामबंद हो गया, जो चुनाव नतीजे में भी तब्दील हुआ. मुसलमानों के लिए एड़ी-चोटी के जोर लगाने के बाद भी बीजेपी की तस्वीर नहीं बदली. अब जब एक बार फिर से बीजेपी स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है, तो मुस्लिम समुदाय पूरी तरह से अलग-थलग दिख रहा है.
यादव वोटर भी नहीं बदल सके तस्वीर
यूपी में ओबीसी समुदाय में सबसे बड़ी आबादी यादव समुदाय की है. राम नरेश यादव से लेकर मुलायम सिंह और अखिलेश यादव अपने यादव समुदाय के बदौलत सत्ता पर विराजमान होते रहे हैं, लेकिन 2017 के चुनाव के बाद से यादव सियासत कोई करिश्मा नहीं दिखा पा रही है. इसी का नतीजा है कि यादव बेल्ट में बीजेपी के हाथों सपा को सियासी मात खानी पड़ी है. बीजेपी ने सपा के खिलाफ गैर-यादव समीकरण बनाया है, जो 2014, 2017, 2019 और अब 2022 के चुनाव में सफल रहा.
सपा के यादव बेल्ट मैनपुरी, इटावा, कासगंज, कन्नौज, बदायूं , संभल, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद, कानपुर देहात, उन्नाव इलाके में सपा को बहुत बेहतर सफलता नहीं मिली. एक समय यह सपा का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है. लेकिन, बीजेपी ने जिस तरह से गैर-यादव ओबीसी की राजनीति को जमीन पर उतारकर सपा के खिलाफ ऐसा सियासी एजेंडा सेट किया, जिससे में कुर्मी, कुशवाहा, लोध, पाल जैसे तमाम ओबीसी जातियां एकजुट होकर बीजेपी के साथ खड़ी नजर आई. इसके चलते बीजेपी ने बृज और अवध के क्षेत्र में सपा का सफाया कर दिया.
हालांकि, सपा को पूर्वांचल के यादव बेल्ट में जरूर सियासी फायदा मिला, जिसमें आजमगढ़, गाजीपुर, अंबेडकरनगर और जौनपुर जिले में क्लीन स्वीप किया. पूर्वांचल के इन इलाकों में यादव-मुस्लिम के साथ-साथ ओबीसी की दूसरी जातियां सपा के पक्ष में लामबंद रहीं. जबकि दूसरे क्षेत्र में यह फार्मूला नहीं दिखा. इस तरह से यादव बहुल इलाके में बीजेपी 88 सीटें जीतने में कामयाब रही, जबकि सपा-रालोद गठबंधन को 53 सीटों पर जीत मिली और एक सीट अन्य के खाते में गई.
दरअसल, बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में नई सियासी राजनीति खड़ी की है, जिसमें धार्मिक और जातीय समीकरण ध्वस्त हो गए हैं. मोदी-योगी की डबल-इंजन सरकारों द्वारा लाई गईं लाभार्थी योजनाएं (जैसे गरीबों तथा बेरोज़गारों के लिए मुफ्त राशन और वित्तीय सहायता) थीं, जिन्होंनें बीजेपी के पक्ष में जमकर वोटिंग हुई. इसके अलावा महिला वोटरों के बीच भी बीजेपी ने अपना आधार मजबूत किया. इसके अलावा तमाम पिछड़ी जातियों के मतदाताओं तक अपनी पकड़ मजबूत की, जो जीत का फार्मूला बना और यादव, मुस्लिम, जाट जैसी प्रभुत्व वाली जातियां सियासी तौर पर धरी की धरी रह गईं.
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